अहिंसा, संयम और तप की त्रिवेणी में स्नान करने वाला पा सकता है मोक्ष : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अहिंसा, संयम और तप की त्रिवेणी में स्नान करने वाला पा सकता है मोक्ष : आचार्यश्री महाश्रमण

भैक्षव शासन के सरताज आचार्यश्री महाश्रमणजी खान्देश यात्रा के अंतर्गत द्विदिवसीय प्रवास हेतु अपनी धवल सेना के साथ जलगांव पधारे। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए परम पावन ने फरमाया- शास्त्र में कहा गया है कि देव भी उसको नमस्कार करते है जिसका मन सदा धर्म में रत रहता है। जिस आदमी के मन में धर्म है, उसे मनुष्य नमस्कार करे यह तो सामान्य बात है। उसे देव भी नमस्कार करते हैं यह गरिमापूर्ण बात हो सकती है। इससे भी बड़ी धर्म की गरिमा यह हो सकती है कि धर्म की साधना से भीतरी सुख-शान्ति औैर आनन्द मिलता है। परम धाम मोक्ष की प्राप्ति, सर्व दुःख मुक्ति, शाश्वत सुखों की प्राप्ति धर्म के द्वारा होती है। वह धर्म है- अहिंसा, संयम और तप। यह त्रिवेणी है, इसमें जो स्नान कर लेगा, डुबकी लगा लेगा वह आदमी मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
कोई भी व्यक्ति अहिंसा का पालन अपने जीवन में करेगा, उसका कल्याण होगा। संयम को कोई भी आत्मसात करेगा, उसका भला होगा और तप की आराधना जो भी करेगा उसकी शुद्धि हो सकेगी। जीवन में अहिंसा होनी चाहिए। अहिंसा महाव्रत साधुओं के द्वारा ग्रहण किया जाता है। साधु के लिए तो अहिंसा की साधना बहुत बड़ी है। रात्रि भोजन न करना, रात में पानी भी नहीं पीना कितनी बड़ी संयम की साधना है। तन से, मन से, वचन से किसी को दुःख देने का प्रयास नहीं करना, ऐसे दयामूर्ति, क्षमामूर्ति, समतामूर्ति साधु होते हैं। दुनिया का सौभाग्य है कि हमेशा कहीं न कहीं तीर्थंकर विद्यमान होते हैं, संत रहते हैं। साधु अहिंसा के पुजारी, संयम और तप का जीवन जीने वाले होते हैं। गृहस्थों के जीवन में भी एक सीमा में अहिंसा, संयम और तप की साधना देखी जा सकती है। श्रावक-श्राविका भी तीर्थ हैं, अनेक प्रकार की साधना उनके जीवन में चलती है। साधु रत्नों की बड़ी माला है, तो श्रावक छोटी माला है। बहुत बड़ी बात है कि हमें मानव जीवन प्राप्त है, इसे धर्म की साधना में उपयोग करने का प्रयास करें।
साधु के पास संयम रूपी अमूल्य रत्न है। साधु का संन्यास रुपी हीरा इस जीवन में न छूटे, गृहस्थ का भी धर्म का जो हीरा है वह नहीं छूटे। विपत्ति आने पर भी धर्म को नहीं छोड़ना चाहिए, धर्म को पकड़कर रखें। पूज्यप्रवर ने एक कथानक के माध्यम से समझाया कि जहाँ सत्य है, ईमानदारी है, वहाँ लक्ष्मी निवास करती है। शुद्धता की आभा रहती है, गृहस्थों के जीवन में ईमानदारी रहे। जैन हो, अजैन हो, आस्तिक हो या नास्तिक, ईमानदारी तो सबके लिए कल्याणकारी होती है। जीवन में उतार-चढ़ाव तो आ सकते हैं, सच्चाई के सामने परेशानियां भी आ सकती है, पर अंतिम सफलता सच्चाई की ही होती है। मानव जीवन में सच्चाई और ईमानदारी के प्रति सुझान रहे। करोड़ जाए तो जाए पर सच्चाई जीवन में रहे। जलगांव के सन्दर्भ में पूज्यप्रवर ने फ़रमाया कि आचार्य श्री महाप्रज्ञ के साथ जलगांव आना हुआ था, करीब 20 वर्षों के बाद आज पुनः आना हुआ है। मानो हमारी हाजरी हो गयी कि जलगांव में आ गए हैं। यहां की जनता में धार्मिकता का भाव बना रहे।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने फरमाया कि विहार चर्या को ऋषियों के लिए प्रशस्त माना गया है। परमपूज्य आचार्यवर इसी सूत्र का अनुसरण कर रहे हैं। आचार्यवर जनोद्धारक आचार्य हैं, जनोद्धारक आचार्य श्रम भी करते हैं और श्रम का प्रतिफल भी मिलता है। आचार्यवर का आभामंडल पवित्र परमाणुओं से भरा हुआ है, आचार्यप्रवर का जीवन पवित्रता का पुंज है। पूज्यवर के स्वागत में सभाध्यक्ष जितेंद्र चौरड़िया, सकल जैन संघ के अध्यक्ष दलीचंद जैन, स्वागताध्यक्ष सुरेश दादा जैन ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। महाराष्ट्र सरकार के पालक मंत्री गुलाबराव पाटिल, ग्रामीण विकास एवं पर्यटक मंत्री गिरीश महाजन, जलगांव सांसद स्मिता वाघ, पूर्व सांसद ईश्वर जैन, विधायक सुरेश भोले ने अपने विचार व्यक्त किये। ज्ञानशाला की सुन्दर प्रस्तुति हुई एवं महिला मंडल ने स्वागत गीत को स्वर दिए। पूज्य गुरुदेव के पदार्पण के उपलक्ष में कंचन देवी छाजेड़ ने 51 एवं शारदा देवी पुगलिया ने 31 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। मीनाक्षी देवी बैद ने धर्मचक्र की पूर्णाहुति के प्रत्याख्यान किये। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।