श्रमण महावीर

स्वाध्याय

श्रमण महावीर

पुष्य उस समय का प्रसिद्ध सामुद्रिक था। उसका ज्ञान अचूक था। दूर-दूर के लोग उसके पास अपना भविष्य जानने के लिए आते थे। उसे अपनी सफलता पर गर्व था। एक दिन वह घूमता-घूमता गंगा के तट पर पहुंचा। उसने वहां तत्काल अंकित चरण-चिह्न देखे। वह आश्चर्य के सागर में डूब गया।
'ये किसके चरण हैं?' उसने मन-ही-मन इसे दो-चार बार दोहराया। 'जिसके ये चरण-चिह्न हैं, वह कोई साधारण आदमी नहीं है, वह कोई साधारण राजा नहीं है, वह चक्रवर्ती होना चाहिए। चक्रवर्ती और अकेला, यह कैसे? चक्रवर्ती और पदयात्री, यह कैसे? चक्रवर्ती और नंगे पैर, यह कैसे? कहीं मैं स्वप्न तो नहीं देख रहा हूं?' वह सन्देह के सागर में डूब गया।
वह चरण-चिह्नों के पास जाकर बैठा। गहरी तन्मयता और सूक्ष्मता से उन्हें देखा। 'मैं स्वप्न में नहीं हूं'- उसे अपने पर भरोसा हो गया। उसके मन में वितर्क हुआ-यदि सामुद्रिक शास्त्र सच्चा है और मैंने श्रद्धा के साथ उसे अपने गुरु से समझा है तो निश्चित ही यह व्यक्ति चक्रवर्ती होना चाहिए। यदि यह चक्रवर्ती नहीं है तो सामुद्रिक शास्त्र झूठा है। उसे मैं गंगा की जलधारा में बहा दूंगा और मैं इस निष्कर्ष पर आ जाऊंगा कि मेरे गुरु ने मुझे वह शास्त्र पढ़ाया, जिसकी प्रामाणिकता आज कसौटी पर खरी नहीं उतरी।
वह चरण-चिह्नों का अनुसरण करते-करते थूणाक सन्निवेश के पास पहुंच गया। उसने देखा, सामने एक व्यक्ति ध्यान मुद्रा में खड़ा है। ये चरण-चिह्न इसी व्यक्ति के हैं। वह भगवान् के सामने जाकर खड़ा हो गया। शरीर पर एक अर्थ भरी दृष्टि डाली-पैर से सिर तक। वह फिर असमंजस में खो गया। इसके शरीर के लक्षण बतलाते हैं कि यह चक्रवर्ती है और इसकी स्थिति से प्रकट होता है यह पदयात्री भिक्षु है। वह कुछ देर तक दिग्भ्रांत-सा खड़ा रहा। भगवान् ध्यान से विरत हुए। पुष्प अभिवादन कर बोला, 'भंते! आप अकेले कैसे?'
'इस दुनिया में जो आता है, वह अकेला ही आता है और अकेला ही चला जाता है, दूसरा कौन साथ देता है?'
'नहीं भंते! मैं तत्त्व की चर्चा नहीं कर रहा हूं। मैं व्यवहार की बात कर रह रहा हूं।'
'व्यवहार की भूमिका पर मैं अकेला कहां हूं?'
'भंते! आप परिवार-विहीन होकर भी अकेले कैसे नहीं हैं?'
'मेरा परिवार मेरे साथ है।'
'कहां है भंते! यही जानना चाहता हूं।'
'संवर (निर्विकल्प) ध्यान मेरा पिता है। अहिंसा मेरी माता है। ब्रह्मचर्य मेरा भाई है। अनासक्ति मेरी बहन है। शांति मेरी प्रिया है। विवेक मेरा पुत्र है। क्षमा मेरी पुत्री है। उपशम मेरा घर है। सत्य मेरा मित्र-वर्ग है। मेरा पूरा परिवार निरन्तर मेरे साथ घूम रहा है, फिर मैं अकेला कैसे?'
'भंते! मुझे पहेली में मत उलझाइए। मैं अपने मन की उलझन आपके सामने रखता हूं, उस पर ध्यान दें। आपके शरीर के लक्षण आपके चक्रवर्ती होने की सूचना देते हैं और आपकी चर्चा साधारण व्यक्ति होने की सूचना दे रही है। मेरे सामने आज तक के अर्जित ज्ञान की सच्चाई का प्रश्न है, जीवन-मरण का प्रश्न है। इसे आप
सतही प्रश्न मत समझिए।' '
पुष्य! बताओ, चक्रवर्ती कौन होता है?'
'भंते! जिसके आगे-आगे चक्र चलता है।'
'चक्रवर्ती कौन होता है?'
'भंते! जिसके पास बारह योजन में फैली हुई सेना को त्राण देने वाला छत्ररत्न होता है।'
'चक्रवतीं कौन होता है?'
'भंते! जिसके पास चर्मरत्न होता है, जिससे प्रातःकाल बोया हुआ बीज शाम को पक जाता है।'