आचार्यश्री महाश्रमण जी का 15वाँ पदाभिषेक दिवस मनाया
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ सभा गोरेगांव के तत्वावधान में बांगुर नगर स्थित बांगड़ सेवा सदन में आयोजित आचार्य महाश्रमण पदाभिषेक समारोह में उपस्थित विशाल जनमेदिनी को सम्बोधित करते हुए साध्वी डॉ. मंगलप्रजा जी ने कहा- जिस प्रकार समुद्र की विशाल जल राशि को तराजू से मापना मुमकिन नहीं, वैसे ही अनगिन गुणराशि की व्याख्या करना मेरे लिए संभव नहीं है। साध्वीश्री ने कहा- मुझे सौभाग्य से आचार्य प्रवर के प्रथम पट्टोत्सव की साक्षी बनने का अवसर मिला। ऐसे महामानव के जन्म से सरदारशहर की धरा धन्य बन गई। यह भी विरल बात है कि वैशाख माह में जन्मोत्सव, पट्टोत्सव और दीक्षोत्सव होना भी आचार्यश्री के जीवन का वैशिष्ट्य है। आपका व्यवहार कौशल, आचार कौशल श्रेयस्कर है, प्रणम्य है। आपकी संयम चेतना, सुदीर्घ चिन्तन और विवेक सम्पन्नता की हर दर्शनार्थी और हर शरणार्थी को अभिभूत करने वाली है।
साध्वीश्री जी ने कहा- आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अपने जीवन में अब तक नए-नए अनेक कीर्तिमान रचे हैं। कालुगणी ने एक साथ 22 दीक्षाएं दी। आचार्य श्री तुलसी ने एकसाथ - 31 दिक्षा और आचार्यश्री महाश्रमण जी ने तुलसी जन्मशताब्दी के अवसर पर एक साथ 43 दीक्षा देकर स्वर्णिम इतिहास रचा है। इतना ही नहीं देश और विदेश धरा पर प्रभावक यात्रा कर मानवता का कल्याण किया। इस बार मुंबई नन्दनवन में आचार्य श्री महाश्रमण जी नें चातुर्मास कर धर्मध्यान की अलख जगाई। परिभ्रमण कर वृहत्तर सिंचन कर जन जन का पथ प्रसस्त किया। यह मुंबई वासियों के लिए वरदान सिद्ध हुआ। ऐसे पुण्य प्रतापी तेरापंथ अधिनायक के प्रति हम मंगल कामना करते हैं, उनकी मंगल अनुशासन में धर्म संघ वर्धमान बने।
साध्वी सुदर्शनप्रभाजी द्वारा महाश्रमण अष्टकम से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। भीकमचंद नाहटा ने गुरुदेव के प्रति श्रद्धासिक्त विचार व्यक्त किए और गुरु कृपा के अनुभव साझा करते हुए आगन्तुकों एवं उपस्थित परिषद का स्वागत किया। तेरापंथ सभा मंत्री सुरेश ओस्तवाल, तेरापंथ महिला मण्डल की पूर्व अध्यक्षा कांता सिसोदिया, संगठन मंत्री शिप्रा सिंघी, तेरापंथ युवक परिषद अध्यक्ष रमेश सिंघवी, उपासक बाबुलाल बाफना ने श्रद्धामय उद्गार व्यक्त किए। महिला मंडल ने सामूहिक अभिवंदना-स्वर प्रस्तुत किए। तेरापंथ सभा एवं युवक परिषद सदस्यों ने समवेत स्वर में संगान किया। साध्वी राजुलप्रभाजी, साध्वी चैतन्यप्रभाजी ने 'शासन रे सरताज ने घणी घणी खम्मा' गीत का संगान किया। साध्वी राजुलप्रभाजी ने गुरुदेव के साथ की गई यात्रा के संस्मरण सुनाते हुए कहा- आचार्यश्री करुणा के महासागर हैं। कार्यक्रम का कुशल संचालन साध्वी सुदर्शनप्रभाजी ने किया।