महामना आचार्यश्री भिक्षु, महान ॠषि व जितेंद्रिय पुरुष थे
पेटलावद
आचार्य भिक्षु उपशांत कषाय वाले, सकारात्मक चिंतन, विनम्र व्यवहार, सतयान्वेषण मनोवृत्ति आत्मनिष्ठा संपन्न मनोबली व्यक्तित्व के धनी संत थे। वे तेज पुंज थे, आलोक पुंज थे। उक्त उद्गार मुनि वर्धमान कुमार जी ने भिक्षु चरमोत्सव पर तेरापंथ भवन में व्यक्त किए। आपने कहा कि वे महान योगी, महान ध्यानी, महान तार्किक, महान दार्शनिक, महान चिंतक, महान साहित्यकार, महान प्रवचनकार थे। आचार्य भिक्षु ने धर्म की स्पष्ट परिभाषा प्रदान करते हुए कहा था कि असंयमी के जीने की वांछा करना राग, मरने की वांछा द्वेष और संसार समुद्र से तरने की वांछा करना वीतराग देव का धर्म है। इस अवसर पर कन्या मंडल ने गीतिका प्रस्तुत की। संघगान के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ। भिक्षु चरमोत्सव पर अपने आराध्य महामना आचार्य भिक्षु के प्रति अपनी भावांजलि के रूप में अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने मुनिश्री से उपवास, एकासन के प्रत्याख्यान ग्रहण किए।