सम्यक् और विवेकपूर्ण पुरुषार्थ करें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सम्यक् और विवेकपूर्ण पुरुषार्थ करें : आचार्यश्री महाश्रमण

भैक्षवगण के सरताज आचार्यश्री महाश्रमणजी आज बारडोली पधारे। महामनीषी ने पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में काल एक द्रव्य है। चार दृष्टियां बतायी जाती हैं- द्रव्यत:, क्षेत्रत:, कालत: और भावत:। हमारे जीवन में काल और समय का अनिवार्य स्थान है। कोई भी कार्य करना है तो काल (टाइम), क्षेत्र (स्पेस), कार्य करने वाला व्यक्ति और करणीय कार्य चाहिए, इतना होने पर प्रयास करने से कार्य सम्पन्न हो सकता है। आदमी सफलता पाना चाहता है और कार्य करने में आलस्य करता है, तो सफलता कैसे प्राप्त हो? आलस्य मनुष्यों का एक ऐसा शत्रु है जो शरीर में रहता है और आदमी के विकास में बाधक बन जाता है। आलस्य महान शत्रु है, तो श्रम-उद्यम आदमी का बन्धु है। धूप और छाया की तरह आलस्य और पुरुषार्थ में कोई मेल नहीं है। धर्म का कार्य करना है, सब अनुकूलताए हैं तो उसे कल पर क्यों छोड़ते हो? आज और अभी कार्य शुरू करो। शास्त्र में कहा गया है- कल की बात वह सोचता है, जिसकी मौत के साथ दोस्ती है अथवा जो दौड़ने में तेज हो जिसे मौत पकड़ न पाए अथवा जो अमर है। पर वास्तव में ऐसा कुछ नहीं होता है। अच्छा कार्य, धर्म का कार्य हमें कल पर नहीं छोड़ना चाहिए। सम्यक् और विवेकपूर्ण परिश्रम करना चाहिए।
जो उद्योगी परिश्रमी व्यक्ति होता है, लक्ष्मी उसका वरण करती है। भाग्य को प्रधान मानने वाले कुत्सित पुरुष हैं। भाग्य भरोसे मत रहो और पुरुषार्थ करो। पुरुषार्थ करने पर भी सफलता नहीं मिले फिर तुम्हारा कोई दोष नहीं है। मानव जीवन हमें प्राप्त है, मानव जीवन का फायदा उठाना चाहिए। ऐसा जीवन दुर्लभ है, इसमें सम्यक् पुरुषार्थ और धर्म का पुरुषार्थ करें। धर्म को सुन लिया, जान लिया, फिर भी प्राप्त धर्म को छोड़कर पाप के रास्ते पर चला जाता है, ऐसा व्यक्ति अपने घर में लगे हुए कल्पतरू के वृक्ष को उखाड़ फेंकता है और धतूरे के पौधे को लगा देता है। चिंतामणी रत्न को पाकर उसे फेंक देता है और कांच के टुकड़े को उठाता है। श्रेष्ठ हाथी पास में है उसे बेचकर गधे को खरीद लेता है। ऐसा व्यक्ति संसार में मूर्ख-नादान होता है।
जीवन में विपत्ति आए तो आए पर धर्म को नहीं छोड़ना चाहिए। अर्हन्नक श्रावक की तरह धर्म में दृढ़ रहें। धर्म को छोड़ देंगे तो संसार सागर में डूब जाएंगे। कठिनाई में तो धर्म की परीक्षा होती है, धर्म में आस्था अडौल रहे। आलस्य के कारण धर्म का कार्य कल पर नहीं छोड़ें, उसे आज और अभी करने का प्रयास करें। हम भाग्यवाद को जान लें पर पुरुषार्थवाद को काम में लें, यह काम्य है। पूज्यवर के स्वागत में स्थानीय सभा अध्यक्ष महावीर दक, अणुव्रत समिति अध्यक्ष राजेश चोरड़िया, टीपीएफ से सुशील सरनोट, तेयुप अध्यक्ष संजय बडोला, तेममं अध्यक्षा धर्मिष्ठा मेहता, गौतम बाफना, राजेंद्र बाफना, जयेश मेहता, गिरधारीलाल बोहरा, समर्थलाल बाबेल आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। तेरापंथ महिला मंडल एवं तेयुप ने गीत से अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला ज्ञानाथिर्यों ने मुनि गजसुकुमाल पर एक सुन्दर नाटिका की प्रस्तुति दी। कन्यामंडल ने छ: आरों पर प्रस्तुति दी। किशोरमंडल की भी सुन्दर प्रस्तुति हुई। ललिता कुमठ ने 25 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।