धर्म और अध्यात्म ही है शरण और त्राण देने वाला : आचार्यश्री महाश्रमण
अध्यात्म की राह दिखाने वाले तीर्थकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान कराते हुए फरमाया - शास्त्र में कहा गया है कि वे लोग जो तुम्हारे स्वजन, मित्र आदि हैं, तुम्हारे त्राण के लिए सक्षम नही हो सकेंगे, न शरण दे सकेगें। तुम भी उनके लिए त्राण और शरण देने में समर्थ नही हो सकते। कोई किसी को मौत से, बुढ़ापे से, बीमारी से नहीं बचा सकता, यह दुनिया की अत्राणता, अशरणता है। व्यवहार में कोई किसी को त्राण अथवा शरण देने वाला हो सकता है, पर निश्चय में कोई त्राण-शरण देने वाला नही है।
दुनिया में धर्म एक त्राण है, उसकी आराधना करनी चाहिए। एक समय ऐसा आएगा जब सारे दु:खों से मुक्त हो, मुक्तिश्री का वरण हो सकता है। केवली प्रज्ञप्त धर्म शरण देने वाला है। अरिहन्त, सिद्व और साधु भी शरण देने वाले होते हैं। धर्म की शरण लेने वाला अक्षय अमर पद को प्राप्त कर सकता है। बुढ़ापा, बीमारी और मृत्यु ये तीन चीजें है। चन्द्रमा जब राहु ग्रस्त हो जाता है तो उसे वह स्वयं झेलता है। आदमी भी बीमारी को स्वयं झेलता है, डॉक्टर, पारिवारिक जन सेवा को तैयार हो सकते हैं पर बीमारी तो आदमी को ही झेलनी पड़ेगी।
साधु तो जीवन भर के लिए साधना में लीन हैं, गृहस्थ को भी धर्म करने का अधिकार है। गुरु से पथ दर्शन प्राप्त हो सकता है पर पुरुषार्थ तो स्वयं को ही करना पड़ेगा। माता-पिता भी बच्चे का भरण पोषण करते हैं पर बड़ा होने के बाद तो उसे खुद को ही सक्षम बनना होता है। निश्चय में तो कोई त्राण-शरण देने वाला नहीं है। व्यवहार में कोई शरण देने वाला हो सकता है पर मूल खुद की आत्मा त्राण देगी, तभी दूसरे त्राण दे सकेगें। एक धर्म-अध्यात्म ही त्राण-शरण देने वाला है जो हमारे दु:खों को दूर करने में पूर्णतया समर्थ है। हम धर्म की शरण में रहें तो कल्याण को प्राप्त कर सकेंगे। साध्वी चांदकुमारीजी के देवलोक गमन के पश्चात उनकी सहवर्ती साध्वी वृंद ने प्रथम बार पूज्यवर के दर्शन किए। पूज्यवर की अथ्यर्थना में साध्वीवृन्द ने सामूहिक गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।