
वास्तविक सुख की प्राप्ति के लिए करें आत्मा से युद्ध : आचार्यश्री महाश्रमण
मांडवी प्रवास का दूसरा दिन। परम पावन आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आत्ममंथन का संदेश प्रदान करते हुए फरमाया - दुनिया में समय-समय पर युद्ध होते रहते हैं, युद्ध के कई रूप हो सकते हैं। जैन शास्त्रों में भी युद्ध की बात कही गई है, लेकिन यह बाहरी युद्ध नहीं, बल्कि आंतरिक युद्ध है—अपने आप से संघर्ष करने का युद्ध, आत्मा से युद्ध करने का युद्ध।
आगमकारों ने कहा है – ''अपने आप से ही युद्ध करो। बाहरी युद्ध से तुम्हें क्या लेना?'' आत्मा का आत्मा से युद्ध किया जाए तो वास्तविक सुख की प्राप्ति हो सकती है। अपने आप से किया गया युद्ध धर्मयुद्ध बन जाता है। यह युद्ध बाहरी पदार्थों के लिए नहीं, बल्कि आध्यात्मिक संपदा प्राप्त करने के लिए लड़ा जाता है।
आत्मयुद्ध के तीन महत्वपूर्ण प्रश्न
आचार्यश्री ने कहा कि आत्मयुद्ध तीन मुख्य प्रश्नों पर आधारित होता है:
1. कौन युद्ध करे?
2. किसके साथ युद्ध करें?
3. युद्ध कैसे करें?
1. कौन युद्ध करे?
आगम शास्त्रों में आठ प्रकार की आत्माओं का उल्लेख किया गया है। इनमें से चारित्र आत्मा, दर्शन आत्मा और शुभ योग आत्मा युद्ध करने में समर्थ हो सकती हैं।
2. किसके साथ युद्ध करें?
युद्ध करना है कषाय आत्मा, अशुभ योग आत्मा और मिथ्यादर्शन आत्मा के साथ। ये आत्मा को नीचे गिराने वाले तत्व हैं। हमें अपने क्रोध, मान, माया और लोभ—इन चार कषायों को परास्त करना होगा।
3. युद्ध कैसे करें?
lक्रोध को उपशम से जीतें – आत्मनिरीक्षण और मौन से क्रोध पर विजय पाई जा सकती है।
lमान को मृदुता से जीतें – ज्ञान का घमंड न करें, शक्ति होते हुए भी क्षमाशील बनें।
lमाया को ऋजुता से जीतें – कथनी और करनी में समानता रखने वाला ही सदात्मा कहलाता है।
lलोभ को संतोष से जीतें – गृहस्थ जीवन में जो मिले उसमें संतुष्ट रहें, साधु भी समता और सहनशीलता बनाए रखें।
आचार्यश्री ने समझाया कि भोजन और धन में संतोष रखना चाहिए, लेकिन ज्ञान और अध्ययन में संतोष नहीं रखना चाहिए। आत्मिक उन्नति के लिए निरंतर प्रयासरत रहना आवश्यक है। ध्यान और जप में भी संतोष न करें, बल्कि सतत अभ्यास करते रहें। जब हम आत्मयुद्ध में विजयी होते हैं, तो परम अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं।
इस अवसर पर साध्वीवर्या श्री संबुद्धयशाजी ने कहा कि सच्चे गुरु में ज्ञान और गुरुता होती है। वे हमारे अज्ञान का नाश करते हैं और आत्मा से परमात्मा बनने का मार्ग दिखाते हैं। परमात्मा बनने के लिए स्वाध्याय और आत्मचिंतन आवश्यक है। जो व्यक्ति अध्यात्म को जानने और समझने का प्रयास करता है, वही वास्तविक उन्नति की ओर बढ़ता है। संसारपक्ष में माण्डवी से संबद्ध साध्वी मंगलयशाजी ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए गीत का संगान किया। बालक प्रियान और आरव ने अपनी प्रस्तुति दी।
जितेन्द्रभाई डोशी, जिग्नेश भाई शाह, चन्द्रेश भाई, अशोक भाई, मयूरभाई शाह, चिंतनभाई मेहता, भावीनभाई शाह, मेहुलभाई शाह, ‘बेटी तेरापंथ की’ कोआर्डिनेटर सेजलबेन संघवी, आयुष डोशी, भूमि संघवी ने श्रीचरणों में अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। माण्डवी ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने भावपूर्ण प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।