
श्रवण शक्ति का उठाएं सर्वोच्च लाभ : आचार्यश्री महाश्रमण
भैक्षव गण के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी मिर्जापुर कुमारशाला से लगभग 12 किमी विहार कर नारणपर के कन्या विद्यालय में पधारे। परम पूज्य ने फरमाया—शास्त्रों में सुनने के महत्व को विशेष रूप से बताया गया है। सुभाषितों को सुनकर तथा आचार्य की अप्रमत भाव से सेवा करते हुए शिष्य अनेक गुणों की आराधना करता है और अनुत्तर सिद्धि को प्राप्त कर सकता है। सुभाषितों को सुनना मानो कानों को श्रेष्ठ और शुद्ध करने जैसा है। यदि किसी व्यक्ति के पास सुनने की क्षमता है, तो उसे यह विचार करना चाहिए कि वह क्या सुने, क्यों सुने और कैसे सुने। मानव शरीर में नौ छिद्र होते हैं, जिनमें से दो कान भी सम्मिलित हैं। इनके माध्यम से ध्वनि को ग्रहण किया जाता है। शरीर अनित्य, अशाश्वत एवं अशुचिमय है, जबकि मोक्ष शाश्वत एवं पवित्र स्थान है।
शरीर में पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ एवं पाँच कर्मेन्द्रियाँ होती हैं। इनमें से श्रोत्रेन्द्रिय विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। व्यक्ति को दो कान और एक मुंह प्राप्त हुआ है, जिसका तात्पर्य है कि उसे अधिक सुनना और कम बोलना चाहिए। सुनने का उपयोग स्वयं और दूसरों के कल्याण के लिए होना चाहिए। अच्छे भजन, ज्ञानमयी बातें, जिन शासन की प्रेरणाएँ और आचार्यों की कल्याणमयी वाणी का श्रवण करने का प्रयास करना चाहिए।
यदि कोई व्यक्ति किसी अच्छी बात को सुनने का अवसर प्राप्त करता है, तो उसे उसे ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए। व्यक्ति सुनकर कल्याण को भी जान लेता है और पाप को भी जान लेता है। अप्रमत भाव से शास्त्र-वचन सुनने से अपार लाभ प्राप्त हो सकता है। सुनी हुई बातों को अपने जीवन में आत्मसात करने का प्रयास करना चाहिए। प्रवचन एवं धर्मकथा के श्रवण से जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान मिल सकता है और जीवन की दशा एवं दिशा बदल सकती है। कभी-कभी किसी दुःखी व्यक्ति का दुःख सुनना भी महत्वपूर्ण होता है, तो कभी किसी की सलाह और सीख को ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए। यदि हम अपने कानों का सही उपयोग करें, तो वे अत्यंत सार्थक सिद्ध हो सकते हैं।
इस अवसर पर समणी ख्यातिप्रज्ञाजी ने पूज्यवर के स्वागत में अपनी भावनाएँ श्रीचरणों में समर्पित कीं। महिला मंडल ने मधुर गीत की प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला के विद्यार्थियों द्वारा विशेष प्रस्तुति दी गई। हार्दिक खंडोल, विनोदभाई डोषी, सांघवी डोषी, भरतभाई गौर, सुरेशभाई, मेघजीभाई भूरिया एवं प्रिंसिपल अनिलभाई रूपारेल सहित अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने पूज्य प्रवर के स्वागत में अपने उद्गार व्यक्त किए। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।