
गुरुवाणी/ केन्द्र
जीवन में एक बार सम्यक्त्व आ जाए तो मुक्ति है निश्चित : आचार्यश्री महाश्रमण
तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी विसनगर से लगभग 10 किमी का विहार कर वडनगर के बी. एन. हाईस्कूल प्रांगण में पधारे।वडनगर एक ऐतिहासिक नगर है। यह हमारे देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्रभाई मोदी की जन्मस्थली भी है। अमृत देशना प्रदान करते हुए महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि — 'मैं कौन हूं?' यह एक प्रश्न है, जिसे कोई भी व्यक्ति स्वयं के लिए उठा सकता है। एक दार्शनिक संत से एक लड़के ने पूछा — “जो शरीर दिखाई दे रहा है, क्या वही मैं हूं या कुछ और हूं?” संत ने उत्तर दिया — “मैं आत्मा हूं। तुम चेतनावान जीव हो।” पूज्य प्रवर ने संत एवं लड़के की बातचीत के माध्यम से नौ तत्वों और सम्यक्त्व के बारे में सरलता से समझाया।
पूज्यप्रवर ने आगे कहा — जीवन में सम्यक्त्व का बड़ा महत्व है। सम्यक्त्व के समान कोई बड़ा रत्न नहीं है, न बड़ा मित्र है, न बंधु, और उसके जैसा कोई बड़ा लाभ नहीं है। अध्यात्म में सम्यक्त्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। वही सत्य और निशंक है जो जिनेश्वर भगवान ने प्रवर्तित किया है। सम्यक्त्व के बिना चाहे कितनी भी आचार-क्रिया कर लो, विशेष लाभ नहीं होगा। जीवन में एक बार सम्यक्त्व आ जाए तो मुक्ति निश्चित है। व्यक्ति का दृष्टिकोण सम्यक् हो।
भगवान महावीर से मेरा कोई पक्षपात नहीं है, न ही कपिल आदि से द्वेष भाव है। जिसका वचन युक्तिमान है, उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। यथार्थपरक दृष्टिकोण हो, यथार्थ पर विश्वास हो। सम्यक्त्व पुष्ट रहेगा तो चारित्र भी मिलेगा। हमें सम्यक्त्व और चारित्र की आराधना करते रहना चाहिए। आज हम वडनगर में आए हैं, यहां भी सब अच्छा रहे। साध्वी प्रमुखाश्रीजी ने कहा कि नदी और संत को सर्प की उपमा दी गई है। ये सीधे न चलकर भी आगे बढ़ते रहते हैं। संत तो पादविहारी होते हैं। वे छोटे-छोटे गांवों में जाकर लोगों का उद्धार करते हैं। आचार्यवर भी भुजंगी चाल चलते हुए आज वडनगर पधारे हैं।
उनका उद्देश्य भी यही है — जनकल्याण। वडनगर में तेरापंथ के आचार्यों का यह प्रथम पदार्पण है। नव तत्वों को जाने बिना व्यक्ति हिंसा-अहिंसा को नहीं समझ सकता। हम सबमें सम्यक् ज्ञान का जागरण होता रहे। पूज्यवर के स्वागत में पंकज बाफना, श्री बी.एन. विद्यालय के प्रिंसिपल जितेन्द्रभाई मोदी ने अपने उद्गार व्यक्त किए। स्थानीय महिला शक्ति ने गीत का संगान किया। नैतिक, ध्वनि, जैनम् और आंचल बाफना ने अपनी प्रस्तुति दी। जैन संघ से नीलेशभाई शाह, ज्योत्स्ना बेन शाह, और मेहसाणा कॉलेज की व्याख्याता डॉ. नीलम शाह ने अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।
नोट : पूज्यप्रवर के इस प्रवचन का विस्तारित लेख पढ़ें अगले अंक में।