
गुरुवाणी/ केन्द्र
संयम और तप रूपी पारसमणि ले जाती है स्थायी सुखों की ओर : आचार्यश्री महाश्रमण
जिनशासन के प्रकाशपुंज शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने लगभग 9 किमी का विहार कर विसनगर स्थित शाश्वत लक्जरियस प्रांगण में मंगलमय पदार्पण किया। विशाल श्रद्धालु समुदाय को संबोधित करते हुए महावीर समवसरण में महावीर प्रतिनिधि ने ज्ञान और संतत्व की महिमा का गान करते हुए फरमाया—“ज्ञान से बड़ा कोई गुरु नहीं, और संत से बड़ा कोई प्रदाता नहीं।" पूज्यवर ने बहुश्रुत ज्ञानी साधुओं की उपासना का महत्व समझाते हुए कहा कि साधु तो तीर्थ के समान होते हैं। उनका दर्शन, उनका वचन, और उनका सान्निध्य पुण्यदायक होता है।
एक प्रसंग के माध्यम से पूज्यप्रवर ने स्पष्ट किया कि ज्ञान के बिना पारसमणि भी निष्क्रिय रह जाती है, पर संत का ज्ञान — वह तो आत्मा रूपी लोहा को सोना बना सकता है। भौतिक पारसमणि क्षणिक है, पर संयम और तप की पारसमणि स्थायी सुखों की ओर ले जाती है। मनुष्य जीवन का महत्त्व बताते हुए पूज्यवर ने कहा कि “84 लाख योनियों में यह एक दुर्लभ अवसर है। हमें चाहिए कि हम इस जीवन में धर्म-अध्यात्म की उत्कृष्ट साधना करें।” उन्होंने स्वाध्याय, जप, सरलता, छल-कपट से विमुक्त जीवन, और आत्मकल्याण को लक्ष्य बनाने की प्रेरणा दी।
आचार्यप्रवर ने बताया कि संयम, तप, और आत्मा की साधना — यह सब पारसमणि से भी महान हैं। क्योंकि ये हमें परम सुख की प्राप्ति करा सकते हैं। आचार्य प्रवर की अभिवंदना में ब्रह्मकुमारी पिंकी बहन, प्रिंस पटेल, लालाभाई पटेल, फूलचंदभाई छाजेड़, जैन संघ की ओर से राहुलभाई शाह, बाबूभाई बासनवाला ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल ने गीत का संगान किया। गणधर चौपड़ा परिवार की ओर से कनक चौपड़ा ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। बालक अंश व माही छाजेड़ ने बालसुलभ प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।