
गुरुवाणी/ केन्द्र
दुःख का मूल है हिंसा : आचार्यश्री महाश्रमण
जिन शासन प्रभावक, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी विसलवासना से लगभग 10 किमी का विहार कर उंझा स्थित श्री जी.एम. कन्या विद्यालय के प्रांगण में पधारे। उंझा एक ओर जीरे के वैश्विक व्यापार के लिए प्रसिद्ध है तो दूसरी ओर उमिया माता मंदिर के लिए भी विख्यात है। जैन समाज के निवासी एवं प्रवासी वर्ग की सक्रियता वाला यह क्षेत्र पूर्व में गुरुदेव तुलसी एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के पावन आगमन का साक्षी रह चुका है।
मंगल देशना में पूज्यवर ने अहिंसा यात्रा के उद्देश्यों को रेखांकित करते हुए फरमाया — “साधु विहार करता है तो वह केवल चलने के लिए नहीं, अपितु जगह-जगह अहिंसा का संदेश देने के लिए करता है। वह स्वयं भी अहिंसा को अपने जीवन में साकार करता है।” अहिंसा सुख और शांति का प्रमुख कारण है जबकि हिंसा ही दुःख का मूल कारण है। हिंसा जीवन में असंतोष, अशांति और अधोपतन लाती है। पूज्यवर ने कहा — “अहिंसा से डरो नहीं, पाप से डरो। स्वयं भी भयभीत न हो, औरों को भी भय न करो। अभय की साधना करो। शक्ति होने पर भी कोई क्षमा कर दे — यही तो सच्चा बल है। हिंसा के तीन प्रकार बताए गए हैं —
आरम्भजा हिंसा
प्रतिरोधजा हिंसा
संकल्पजा हिंसा
गृहस्थ जीवन में रहते हुए आदमी से खेतीबाड़ी के संदर्भ में, रसोई आदि में और अन्य कार्यों में जीवों की हिंसा हो जाती है। यह मानव जीवन के आवश्यक कोटि की हिंसा होती है, इसे पूर्णतया छोड़ना गृहस्थ के लिए संभव नहीं होता। अपनी रक्षा के लिए, अपने परिवार की रक्षा के लिए, राष्ट्र की रक्षा के लिए हिंसा करनी पड़े तो वह प्रतिरक्षात्मिकी हिंसा हो गई। तीसरी हिंसा होती है-संकल्पजा हिंसा। किसी के संदर्भ में यह मन बना लेना की इसे मारना ही है। क्रोध, लोभ, भय आदि कारणों से किसी निरपराध को मारना संकल्पजा हिंसा है। आदमी को ऐसी हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए।
साधु को दयामूर्ति, क्षमामूर्ति, अहिंसामूर्ति एवं समता मूर्ति कहा गया है। गृहस्थों को भी उनके जीवन से प्रेरणा लेकर अहिंसा की भावना रखनी चाहिए। गुरुदेव तुलसी द्वारा प्रवर्तित अणुव्रत आंदोलन के लघु नियमों का पालन करके सामान्य जीवन में भी अहिंसा की साधना संभव है। पूज्यवर ने कहा — “जब व्यक्ति सुधरता है तो समाज सुधरता है, और समाज के सुधार से राष्ट्र स्वयं सुधरता है।” उन्होंने अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्य — सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति — को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह मानवता के उत्थान की त्रिवेणी है। एक प्रसंग के माध्यम से पूज्यप्रवर ने समझाया कि “कूट तोल-माप, झूठ, धोखाधड़ी जैसे कार्यों से व्यक्ति तिर्यंच गति को प्राप्त कर सकता है। अतः जीवन में सत्यनिष्ठा और नैतिकता का होना आवश्यक है।”
धन और धर्म दोनों की आवश्यकता है, लेकिन केवल धन की चाह से जीवन सफल नहीं होता। पूज्यवर ने आगे कहा कि आज उंझा में आगमन हुआ है, और 2002 में इसी विद्यालय में आचार्यश्री महाप्रज्ञजी भी पधारे थे। इस भूमि पर धार्मिकता एवं नैतिकता सतत पुष्ट होती रहे, यही मंगल कामना है। पूज्यवर के स्वागत में उंझा के विधायक किरीट भाई पटेल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की धर्मपत्नी जशोदा बेन मोदी, विद्यालय ट्रस्टी कनुभाई पटेल, उंझा जैन महाजन संघ की ओर से सुरेश भाई शाह, रश्मि बरड़िया, नीतू बैद और जितेंद्र भाई जैन ने अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी द्वारा किया गया।