
गुरुवाणी/ केन्द्र
साधु की पर्युपासना है तिरने में सहायक : आचार्यश्री महाश्रमण
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ लगभग 8 किमी का विहार कर बालिसाना के सरकारी औद्योगिक तालीम संस्था (Govt. ITI) के प्रांगण में पधारे। मंगल देशना प्रदान करते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि — साधु की पर्युपासना करने से क्या लाभ मिल सकता है, यह विचारणीय प्रश्न है। जब भी व्यक्ति कोई कार्य करता है, तो यह चिंतन अवश्य करता है कि इससे क्या लाभ होगा। ऐसे में यदि साधु की पर्युपासना की जाती है, तो निश्चय ही उसका प्रभावकारी फल मिलता है।
त्यागी पुरुषों के दर्शन भी पुण्यदायक होते हैं। वे तीर्थ के समान होते हैं। साधुओं के दर्शन से ही पाप झड़ने लगते हैं। साधु के पास रहने से श्रवण का अवसर प्राप्त होता है। श्रवण ही कानों का आहार है। शब्द से कानों में जागरूकता आती है। किनके शब्द हैं और उन शब्दों का महत्व कितना है — यह भी विचारणीय होता है। अधिकृत व्यक्ति के वचनों का विशेष महत्व होता है। ऐसे शब्दों के श्रवण से ज्ञान प्राप्त होता है। प्राचीन काल में श्रवण के माध्यम से ही ज्ञानार्जन होता था। आज के युग में ग्रंथ और अन्य संसाधन उपलब्ध हैं, पर श्रवण का महत्त्व आज भी बना हुआ है।
ज्ञान मिलने से विज्ञान, यानी विशेष ज्ञान प्राप्त होता है — हेय क्या है, उपादेय क्या है — इसका बोध होता है। यह बोध प्रत्याख्यान में सहायक बनता है। जो त्याज्य है, उसे छोड़ा जाता है। प्रत्याख्यान से संयम आता है। संयम से अव्रत समाप्त होता है और अनाश्रव होता है, यानी नए कर्मों का बंधन रुक जाता है। फिर संवर होता है। संवर के पश्चात तप का उदय होता है। संयम से व्यवधान कम होता है और तप के द्वारा पूर्व कर्मों की निर्जरा होती है। धीरे-धीरे व्यक्ति अक्रिया की ओर अग्रसर होता है — अयोगी, शैलेषी अवस्था आती है। अंततः मोक्ष की स्थिति प्राप्त होती है।
इस प्रकार साधु की पर्युपासना करने से अनेक लाभ होते हैं। व्यक्ति त्यागी, महाव्रती साधु की पर्युपासना करे, क्योंकि साधु सीमित संबंधों वाले, निर्ग्रंथ, संन्यासी होते हैं। बड़े से बड़ा गृहस्थ भी उन्हें वंदन करता है। धर्मस्थान में धर्माराधना का विशेष महत्व होता है, वहां का वातावरण भी विशेष होता है। साधु की पर्युपासना से दस प्रकार के लाभ संभव हैं। इनसे हम तिरने की स्थिति की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
पूज्यवर ने कहा कि आज सरकारी आईटीआई में आगमन हुआ है। यदि यहां तकनीकी प्रशिक्षण के साथ अध्यात्म का प्रशिक्षण भी मिले, तो प्रशिक्षुओं में समग्र विकास हो सकता है। पूज्यवर के स्वागत में आईटीआई के प्रिंसिपल एस. जे. प्रजापति, पी. एम. पटेल एवं एस. एन. ठक्कर ने संयुक्त रूप से अपनी भावनाएं अभिव्यक्त कीं। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।