
रचनाएं
जीवन धन्य तुम्हारा
जीवन धन्य तुम्हारा।
जीती बाजी पचखा तुमने चौविहार संथारा।
साध्वी संचित पचखा तुमने चौविहार संथारा।।
शासनश्री सति सोमलता के पथ प्रस्थान किया है,
विपुल वेदना सह समता से परीषह जीत लिया है,
गूंज रहा मुंबई में तेरे अनशन का जयनारा।।
शांत, सौम्य, सेवाभावी थी मृदुभाषी सुखकारी,
साध्वी शंकुतला सहयोगी ग्रुप से पूरी इकतारी,
लीन रही अपनी धुन में स्वाध्याय जाप की धारा।।
एक- एक स्मृतियां कितनी उभर रही हैं मन में,
रहे संग हम गुरु चरणों में, संस्था के प्रांगण में,
रहना था इस बार साथ फिर यूं क्यूं किया किनारा।।
सुखे-सुखे प्रस्थान करो हम यही भावना भाए,
महाश्रमण गुरुवर बरतारा, विजय ध्वजा फहराए,
‘योगक्षेम’ करो आत्मा का पाओ दिव्य उजारा।।
लय - संयममय जीवन हो