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प्रतिभासम्पन्न साध्वी थीं साध्वी संचितयशा जी
साध्वी श्री संचितयशा जी आज हमारे मध्य नहीं हैं, किंतु उनके साथ बिताए क्षणों की स्मृतियाँ रह-रह कर स्मृति पटल पर उभर रही हैं। संसारपक्षीय भतीजी होने के नाते मैं उन्हें बचपन से जानती थी। उनके पारमार्थिक शिक्षण संस्था में आने के बाद हमारा संपर्क अध्यात्ममय बन गया। साध्वी श्री संचितयशा जी एक प्रतिभासम्पन्न साध्वी थीं। वे शालीन, शांत और मधुर भाषिणी थीं। उनका व्यवहार माधुर्य एवं कोमलता से परिपूर्ण था। जैन तत्त्वज्ञान में भी उनकी अच्छी अभिरुचि एवं गति थी। उनके हाथों में कला का सौष्ठव था। वे एक अध्ययनशील साध्वी थीं।
जब मैं समण दीक्षा में थी, तब उनकी मुनि दीक्षा हो चुकी थी। उस दौरान उनसे अनेक बार मिलना हुआ। हमारा परस्पर आत्मीय संबंध था। पिछली बार एवं इस बार भी मुंबई प्रवास में मिलना हुआ। ऐसा सोचा नहीं था कि वे इतनी जल्दी हमसे बिछड़ जाएँगी, किंतु नियति के योग को कोई नहीं टाल सकता। 'शासनश्री' साध्वी सोमलता जी के साथ वे दीर्घकाल तक रहीं। अंतिम समय तक वे उनकी सेवा एवं चित्त समाधि में संलग्न रहीं।
स्वास्थ्य की प्रतिकूलता के कारण उन्हें पुनः मुंबई आना पड़ा। बीच में सुना था कि अब स्वास्थ्य थोड़ा ठीक है, किंतु रोग ने पुनः उग्र रूप धारण कर लिया और वे चल बसीं। प्रसन्नता की बात यह है कि वे संथारे के साथ गईं। वंदनीया साध्वी श्री शकुन्तलाश्री जी ने उन्हें संथारे का प्रत्याख्यान करवाकर उनकी आध्यात्मिक यात्रा में विशेष सहयोग दिया है। साध्वी श्री संचितयशा जी के चले जाने से ग्रुप में एक रिक्तता की अनुभूति सभी साध्वियाँ अनुभव कर रही हैं, किंतु इस स्थिति में भी चित्त समाधि बनाए रखें। दिवंगत आत्मा के आध्यात्मिक विकास की मंगल कामना। सरदारशहर के संतोकचंद चंडालिया परिवार के सभी न्यातिले सदस्य भी चित्त समाधि बनाए रखें। संघ-संघपति के प्रति पूर्ण समर्पण रखते हुए धर्म की आराधना करते रहें।