
रचनाएं
बीदासर की वो लाडेसर
बीदासर की वो लाडेसर, ज्यों की त्यों धर दी चादर,
चएज्ज देहं न हु धम्मसासणं, सूक्त बना सुख का आकर।
तुम आई भैक्षव गण में, विकसाई नंदनवन में,
संयममय जीवन को है नमन।
तव जीवन आनंद का झरना, समाधि मृत्यु है गहना,
मदनश्री जी के तप को है नमन।।
तुलसी, महाप्रज्ञ, महाश्रमण, तीनों युग का साक्षात किया,
विनय समर्पण भक्ति का देखा तुममें बहता दरिया।
वैराग्य और व्यवहार संतुलन, उपशम भावों का उपवन,
उत्साह उमंगों से सज्जित, देती सबको तुम अपनापन।
तेरा गायन था मनभावन, करती थी गुण का कीर्तन,
तेरे गुण को करते हैं हम नमन।।
साता दी, सबको फिर क्यों तन पीड़ा आकर खड़ी रही,
पर समता, तन-निस्पृहता से तुम भी तो डटकर अड़ी रही।
कर्म शत्रु से लड़ने खातिर, तप-जप तेरा शस्त्र बना,
दी चित्त समाधि सेवा, साझी भाणजी सौभाग्यमना।
तव जीवन आनंद का।।
तर्ज- तेरी मिट्टी में मिल जाऊं