अभिनंदन  स्वीकारो जी

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साध्वी दीक्षाप्रभा

अभिनंदन स्वीकारो जी

स्वर्ग से सुदंर आज धरा पर उत्सव है मनहारा जी,
हर्षित पुलकित सारा परिकर अभिनंदन स्वीकारो जी।
चिहुं दिशि बज रही है शहनाई, खिले खुशियों के जलजात,
महक उठी भैक्षव फुलवारी, आई मंद मधुर बरसात।।
नयनों में बसता स्नेहिल निर्झर वाणी सुधारस झरती है,
घीरे धीरे सतियों के आगे जो दिव्य रश्मि पग धरती है।
तव शशिधर सी श्वेतिम शोभा, जो सरस्वती साक्षात,
अरु सविता सम तेज निराला, दीपित सरदार सती का पाट।।
नव युग की नव सति शेखरा पा सौभाग्य सराएं जी,
नूतन चिंतन अभिनव सिंचन पा जीवन सरसाएं जी।
वैशाखी चवदश लाएं, संघ में स्वर्णिम प्रभात,
चरणों में मोद मनाते, तेरी आभा है अवदात।।
श्रद्धामय सुमनों से बधातें गौरव गा हर्षाते हैं,
नारी जग नेतृत्व शुभंकर, त्रि-संवत्सर मनाते हैं।
जगमग दीपो क्रोड़ दीवाली, धरणी अंबर में ख्यात,
अंतर री वन्दना आज स्वीकारो, भक्ति भाव भरा सौगात।।
लय - मिसरी सी मीठी बातां थांरी