
रचनाएं
रूं रूं हर्ष अपार
प्रमुखा श्री के चयन दिवस पर रूं रूं हर्ष अपार,
महाश्रमण गुरु सूझ बूझ को सराह रहा संसार।
सराह रहा संसार खूब गण आब बढ़ाई,
साध्वी विश्रुतविभाजी नवमी प्रमुखा जी कहलाई।
प्रांजल लेखक प्रखर भाषिणी अनगिन गुण भंडार
प्रमुखाश्री के चयन दिवस पर रूं-रूं हर्ष अपार।।1।।
तुलसी गुरु के मुख कमल से संयम सुरमणी पाया,
समणी से साध्वी बनने से हुआ है काम सवाया।
हुआ है काम सवाया देश विदेश की की यात्रायें,
हिंदी संस्कृत प्राकृत इंग्लिश विविध सीखी भाषायें।
आगम का अध्ययन तलस्पर्शी सबके मन को भाया,
तुलसी गुरु के कर कमलों से संयम सुरमणी पाया।।2।।
महाप्रज्ञ ने देख योग्यता नूतन पद बक्साया,
नियोजिका पद देकर गण में नव इतिहास रचाया।
नव इतिहास रचाया खूब ही वाह-वाह पाई,
तप-जप सुश्रम करके गण की शान बढ़ाई।
सहिष्णुता व विनम्रता से वर व्यक्तित्व बनाया,
महाप्रज्ञ ने देख योग्यता नूतन पद बक्साया।।3।।
भैक्षवगण की नवमी प्रमुखा तपी तपाई आई,
हर कार्यों में देख दक्षता अणु-अणु में तरुणाई।
अणु-अणु में तरुणाई स्वास्थ्य का ध्यान रखावें,
हम भी कुछ कर सकें हमें ऊर्जा दिलवावें।
गुरु दृष्टि की पूर्णाराधक जन-जन के मन भाई,
भैक्षव गण की नवमी प्रमुखा तपी तपाई आई।।4।।