धर्म है उत्कृष्ट मंगल

स्वाध्याय

-आचार्यश्री महाश्रमण

धर्म है उत्कृष्ट मंगल

साधक उत्थित, स्थितात्मा और अन्तर्मुखी बन विहरण करे।
स्थितप्रज्ञ और स्थितात्मा वही व्यक्ति बन सकता है जिसने संयम का अभ्यास किया है, इन्द्रियों पर नियंत्रण किया है।
नाटक हो रहा था। उसे देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी। सामने के चौबारे में एक बाल मुनि बैठे थे। वे अपने लेखन कार्य में संलग्न थे। नाट्य-दर्शकों में एक वृद्ध भी था। उसकी दृष्टि बाल मुनि पर टिकी हुई थी। अन्त तक उसने देखा कि बाल मुनि ने क्षण भर भी नाट्य दर्शन नहीं किया। बाल योगेश्वर की स्थिरता और आत्मानुशासी वृत्ति से प्रभावित होकर उस वृद्ध ने भविष्यवाणी की -''तेरापंथ की जड़ें गहरी हैं। कम से कम सौ वर्षों तक इस पंथ का कुछ भी बिगड़ने वाला नहीं है।'' वे बाल मुनि ही आगे जाकर तेरापंथ के प्रभावशाली चतुर्थ आचार्य बने जिन्हें 'जयाचार्य' के नाम से पहचाना जाता है। यह आत्मानुशासन का एक उदाहरण है।
आत्मानुशासन उसी का जागता है जिसके क्रोध, मान, माया, लोभ, कृश हो गए हैं। साधना की सफलता और जीवन का आनन्द आत्मानुशासन में सन्निहित है। निज पर शासन का प्रायोगिक प्रशिक्षण न केवल संन्यासी समाज के लिए अपितु मानव मात्र के लिए अपेक्षित है। जिसका जीवन आत्मानुशासन की आलोक-रश्मियों से आलोकित हो जाता है, वही व्यक्ति परानुशासन का उपयुक्त अधिकारी बन सकता है और जन-जन का श्रद्धेय बन सकता है।
आत्मानुशासन को अभ्यास के द्वारा भी साधा जा सकता है। उसको साधने को एक प्रक्रिया इस प्रकार है-
१. लक्ष्य निर्धारण– सर्वप्रथम मुझे आत्मानुशासी बनना है। यह लक्ष्य निश्चित होना चाहिए।
२. प्रतिक्रमण-आत्मनिरीक्षण– सोने से पूर्व-15-20 मिनट तक उलटे क्रम से जब उठे थे तब तक किये गये कार्यों को द्रष्टाभाव से चलचित्र की भांति आंख बंद कर देखना। फिर यह ध्यान देना-आज मैंने वे कौन-से अकरणीय कार्य किए जिन्हें टाला जा सकता था? खैर, कल मुझे सावधान रहना है कि वे अकरणीय कार्य पुनरावृत्त न हों। इस प्रकार रोज प्रतिक्रमण एवं आत्मनिरीक्षण करना।
३. सूत्रीय साधना-क्रम– जिस दिशा में विकास करना है, जिन वृत्तियों पर नियंत्रण करना है, उनके अनुसार कुछ सूत्र निश्चित कर लेना। किसी में ज्यादा बोलने की आदत है, क्रोध ज्यादा आता है, उद्दण्डता की वृत्ति है। उसे तीन सूत्र निश्चित कर लेने चाहिए-१. अल्पभाषिता २. सहिष्णुता ३. विनम्रता। इस प्रकार उसका त्रिसूत्रीय साधना-क्रम बन जाता है। इसका अभ्यास इस प्रकार किया जाए:-
(१) आत्मनिरीक्षण के समय साधक को ध्यान देना होता है कि आज तीन सूत्रों की साधना में कोई प्रमाद तो नहीं हुआ? यदि प्रमाद हुआ है तो कल उसे नहीं दोहराऊंगा। (इयाणिं णो जमहं पुव्वमकासी पमाएण)- ऐसा संकल्प करना।
(२) प्रातः उठने के बाद पांच मिनट तक संकल्प करें-मुझे आज अल्पभाषिता, सहिष्णुता और विनम्रता का अभ्यास करना है।
(३) दिन में बार-बार उन तीन सूत्रों का स्मरण करते रहना।
(४) रात को सोने से पूर्व आत्म-निरीक्षण एवं प्रतिक्रमण के बाद ५ मिनट तक अपने आपको सुझाव देना मुझे अल्पभाषिता का विकास करना है। मुझे सहिष्णुता का विकास करना है। मुझे विनम्रता का विकास करना है। फिर सोने के बाद भी जब तक नींद न आए, इन सूत्रों को मन ही मन दोहराया जाए।
इस प्रकार अभ्यास के द्वारा आत्मानुशासन की दिशा में विकास किया जा
सकता है।