नवम् साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा जी के चतुर्थ दिवस पर मुखर हुए अभिवंदना के स्वर...

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वैशाख शुक्ल चतुर्दशी, 11 मई 2025, सिद्धपुर, गुजरात

नवम् साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा जी के चतुर्थ दिवस पर मुखर हुए अभिवंदना के स्वर...

परम पावन आचार्य श्री महाश्रमण जी की मंगल सन्निधि…...
आचार्य प्रवर ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन मार्ग में अनेक ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं, जिनमें आरोह, अवरोह और संघर्ष होते हैं। पूर्व कर्मों का दबाव भी होता है और कभी-कभी वह निर्माण का कारण भी बन जाता है। इसी निर्माण में कोई-कोई साधुता की ओर अग्रसर हो जाते हैं। एकाकी साधना और संघबद्ध साधना दोनों की अपनी-अपनी उपयोगिता है। संघबद्ध साधना में साध्वीप्रमुखा की व्यवस्था की भी अपनी उपयोगिता है। एकरूपता के लिए कुछ जोड़ा जाता है और कुछ छोड़ा जाता है, जिसमें विवेक अपेक्षित होता है, जो संगठन को संपोषण देने वाला सिद्ध होता है। मेरे जीवन से भी महाश्रमण पद को जोड़ा गया।
साध्वीप्रमुखा, महासती की व्यवस्था का प्रारंभ चतुर्थ आचार्य जयाचार्य ने किया। आचार्य तुलसी ने तीन महासती झमकू जी, लाडां जी और कनकप्रभा जी को मनोनीत किया। साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा को साधिक 50 वर्षों तक साध्वियों की व्यवस्था करने का अवसर मिला। साध्वीप्रमुखा की नियुक्ति का अवसर हर आचार्य को नहीं मिलता। संघ की अपेक्षा के अनुरूप व्यवस्था करना आचार्य का सर्वोपरि कार्य है। साध्वी समुदाय से जुड़ा हुआ व्यक्तित्व कभी-कभी संकरी गली से गुजरता है। आचार्य प्रवर की दृष्टि का ध्यान, साध्वियों की मांग, खुद का चिंतन — इन त्रि-आयामी स्थितियों से गुजरना होता है। हर परिस्थिति को सावधानी से पार करना होता है और आचार्य प्रवर के इंगित का भी ध्यान रखना होता है। साध्वीप्रमुखा को पढ़ने की रुचि होती है, पर समय नहीं मिलने पर कभी संघर्ष होता है; अपनी रुचि का त्याग करना भी एक साधना है। प्रायः दिन में एक बार आचार्य की उपासना करनी होती है और ठिकाना भी कभी-कभी दूर होता है। साध्वीप्रमुखा के रूप में सेवा का कार्य हर किसी के बस की बात नहीं है। अर्हता, योग्यता और पुण्याई — तीनों का योग होता है, तभी यह संभव होता है।
साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा अनेक रूपों से जुड़ी हुई हैं — समणी, साध्वी एवं साध्वी प्रमुखा। शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता रहे, मन में समाधि रहे, थोड़ी कठिनाई भी आए तो उसे झेलने का प्रयास करें। मन में शांति, चित्त में समाधि और स्वास्थ्य अच्छा रहे।
मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि साध्वीप्रमुखा जी का चिंतन दूरदर्शी है। जयाचार्य ने एक नई नवीन खोज की — मुखिया साध्वी की। इसी क्रम में साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा जी अपना मार्गदर्शन प्रदान कर रही हैं। बचपन में आचार्य महाप्रज्ञ जी के सान्निध्य में प्रातराश में ये हमें नाश्ता परोसती थीं। आचार्य महाप्रज्ञ जी ने आपको मुख्य नियोजिका पद पर प्रतिष्ठित किया। आचार्य महाश्रमण जी ने भागलपुर में आपको मुख्य नियोजिका के रूप में अंतरंग व्यवस्था से जोड़ा और सरदारशहर में साध्वीप्रमुखा के रूप में मनोनीत किया। आपकी गुरु भक्ति, गुरु दृष्टि की आराधना विलक्षण है। आप एक विदुषी साध्वी हैं। अंग्रेजी भाषा में लेखन, वक्तव्य देना, साहित्य साधना, प्रवचन में विशिष्टता है। आपकी भावना रहती है कि आपको सदा गुरु की सन्निधि मिलती रहे। आप एक तपस्वी साध्वी हैं। महीने में कितने ही उपवास करती हैं। आज यही मंगलकामना करते हैं कि आप निरामय रहती हुई, गुरु सन्निधि में रहती हुई, आचार्यप्रवर को दीर्घकाल तक सेवाएँ प्रदान करती रहें। साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी ने कहा कि साध्वीप्रमुखा के तीन रूप हैं —
•कुशल प्रशासिका — मैं आपकी गुरु भक्ति, संघभक्ति, सहिष्णुता, विनम्रता, प्रशासन शैली को वंदन करती हूँ। आप साध्वी समाज, महिला समाज की सारणा-वारणा करती रहती हैं। आप आज्ञा और नियमों के प्रति सदैव जागरूक रहती हैं। साध्वियों को भी ध्रुवयोगों के प्रति जागरूकता बनाए रखने की प्रेरणा देती हैं।
कुशल साधिका — आपकी साधना का स्तर उच्च है। आपके पास ध्यान योग, जप योग और स्वाध्याय योग है। प्रातः ध्यान और आगम स्वाध्याय करते हैं। तप साधना में महीने में 5-5 उपवास। आपकी उपशम साधना विलक्षण है, आप मृदुता से ही फरमाती हैं।
कुशल अध्यापिका — आप अध्ययन एवं अध्यापन में रुचि रखती हैं। मुख्य नियोजिका के रूप में आपने साधु-साध्वियों के लिए अनेक कोर्स का निर्माण किया। प्रतिदिन आगम स्वाध्याय, वाचन का क्रम रहता है। आपकी अध्यापन शैली को वंदन करती हूँ।
साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा जी ने चयन दिवस पर अपने भाव प्रस्तुत करते हुए कहा कि जीवन सबको मिलता है, किंतु जीवन में विकास के अवसर सबको उपलब्ध नहीं होते। जीवन में गुरु सबको नहीं मिलते। मुझे गुरु मिले, सेवा का अवसर मिला और विकास का अवसर प्राप्त हुआ। आचार्यश्री तुलसी ने नए मार्ग पर ऊँगली पकड़कर चलना सिखाया था। अनेक विकास के अवसर दिए। आचार्य महाप्रज्ञ जी की भी विशेष कृपा रही और अध्ययन के क्षेत्र में मुझे आगे बढ़ाया। महाश्रमणी कनकप्रभा जी के साथ रहने का अवसर मिला। उन्हें अध्यापन की रुचि थी और मुझे भी विद्यार्थी बनने का अवसर मिला। मेरे subconscious mind में उनके संस्कार सदैव रहेंगे। आचार्य श्री महाश्रमण जी के बारे में क्या कहूँ? शब्दकोश में शब्द ही नहीं हैं। उनकी कृपा, अनुग्रह — सेवा का अवसर मिला, जो मुझे पूर्व में कभी नहीं मिला।
साध्वियों की व्यवस्था बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, जिसे निभाते हुए गुरु दृष्टि की आराधना सदैव करती रहूँ। आचार्य प्रवर पूछते हैं — डर लगता है क्या? डर बस इस बात का ही लगता है कि कभी आचार्य प्रवर को हमें उपालंभ न देना पड़े। आचार्यप्रवर का अनुग्रह, मार्गदर्शन मेरे जीवन की अमूल्य धरोहर है। बहुत कुछ जानने, सीखने और अपनाने को मिला। आचार्य प्रवर के दीक्षा दिवस पर यही मंगलकामना करती हूँ कि हम भी आपकी भांति अपनी इंद्रियों का निग्रह, मन निग्रह और निरतिचार आचार पालन करते रहें। संयम के पर्यवों को उज्ज्वलतम बनाते रहें।प्रातःकाल आयोजित इस कार्यक्रम में मुनि दिनेशकुमार जी, मुनि योगेशकुमार जी ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। साथ ही साध्वी वृंद ने गीतिका का संगान किया। चहुँ ओर से बधाइयों के स्वर गुंजायमान हुए।
साध्वीवर्याजी के समायोजकत्व में आयोजित मध्यान्ह चयन दिवस के कार्यक्रम के अंतर्गत साध्वी लब्धिश्री जी, साध्वी हेमरेखा जी, साध्वी मुदितयशा जी, साध्वी श्रुतयशा जी, साध्वी सुमतिप्रभा जी तथा समणी निर्मलप्रज्ञा जी ने वक्तव्य के माध्यम से अपनी भावाभिव्यक्ति दी। साध्वी शारदाश्री जी तथा साध्वी श्रुतयशा जी आदि साध्वियों ने गीत के संगान द्वारा साध्वीप्रमुखाजी की अभिवंदना की। साध्वी वंदनाश्री जी तथा साध्वी सिद्धांतश्री जी आदि साध्वियों ने प्रस्तुति के द्वारा भावना व्यक्त की। वहाँ उपस्थित सकल साध्वी समाज ने लूर के संगान से अभिवंदना की। इन्द्र बैंगाणी ने वक्तव्य, सिद्धपुर कन्या मंडल ने कार्यक्रम, अहमदाबाद कन्या मंडल ने गीत के संगान के माध्यम से भावनाएँ व्यक्त कीं। अखिल भारतीय महिला मंडल ने शब्दचित्र की प्रस्तुति की। कार्यक्रम का कुशल संचालन साध्वी तन्मयप्रभा जी ने किया।