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गुरु के प्रति हो विनम्रता एवं समर्पण के भाव
सुजानगढ़। स्थानीय तेरापंथ सभा भवन में 'शासनश्री' साध्वी सुप्रभा जी के सान्निध्य में आचार्य श्री महाश्रमण जी का 64वां जन्मोत्सव और 16वां पट्टोत्सव मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ नमस्कार महामंत्र से किया गया। मंगलाचरण साध्वी पल्लवप्रभा जी ने महाश्रमण अष्टकम से किया। 'शासनश्री' साध्वी सुप्रभा जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि गुरु के प्रति विनम्रता एवं समर्पण के भाव सभी में होने चाहिए तभी मनुष्य विकास करता है। आचार्य श्री महाश्रमण जी बहुत ही सौभाग्यशाली आचार्य हैं क्योंकि उन्हें दो-दो आचार्यों की सन्निधि प्राप्त हुई है। साध्वी पल्लवप्रभा जी ने गुरुदेव के बाल्यकाल के संस्मरणों को बताया। साध्वीवृंद ने सामूहिक गीतिका का संगान किया। साध्वी मनीषाश्रीजी ने 'जय युगप्रधान, जय पुरषोत्तम' कविता से अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। साध्वी मुकुलयशा जी ने गीतिका के द्वारा आचार्य वर के गुणों का वर्णन किया। महिला मंडल अध्यक्ष राजकुमारी भूतोड़िया ने कविता के माध्यम से और उपासिका शोभा देवी सेठिया ने गीतिका के माध्यम से अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। महिला मंडल की बहनों द्वारा सामूहिक गीतिका का संगान किया गया। सरोज देवी बैद ने कविता से अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम का संचालन साध्वी मुकुलयशा जी ने किया।