संदेह व्यक्ति को खोखला बना देता है

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संदेह व्यक्ति को खोखला बना देता है

आचार्य श्री महाश्रमणजी की सुशिष्या साध्वी श्री डॉ. गवेषणाश्रीजी के सान्निध्य में 'शंका - स्लो पोइजन का डंका' कार्यशाला का आयोजन जैन तेरापंथ नगर, माधावरम् के तीर्थंकर समवसरण में हुआ।
साध्वी डॉ. गवेषणाश्रीजी ने कहा कि शंका, संशय, सन्देह सभी पर्यायवाची शब्द है। शंका तत्व के प्रति, साधना के प्रति, मंत्र जाप, परिवार, समाज के प्रति भी हो सकती है। श्रीमद्‌भगवद्‌गीता में कहा गया कि संशयात्मा विनश्यति। संशयशील आदमी की आत्मा नष्ट हो जाती है। रात को सोता हुआ मन में शंका करें छत गिर गई तो, बाहर बाइक में जाये और मन में आये एक्सीडेंट हो जाये तो? यों दिमाग में शंका बनाये रखने से जीना भी मुश्किल हो जाता है। यह संदेह धीरे-धीरे जहर का काम कर लेती है, अंदर से व्यक्ति को खोखला बना देती है। साध्वी मयंकप्रभाजी ने कहा कि जहर को अमृत में बदलना है तो छोटी-छोटी बातों में न उलझे, उन्हें अपनी विचारों की गंदगी का माध्यम न बनाये। सम्यक्त्व के पांच दूषण बताये गये हैं, उनमें प्रथम है- शंका। सम्यक्त्व को मिथ्यात्व में बदलने में सबसे बड़ा कारण भी शंका है। साध्वी दक्षप्रभाजी ने सुमधुर गीतिका प्रस्तुत की। साध्वी मेरुप्रभाजी ने कार्यक्रम का संचालन किया। सज्जनबाई रांका ने 33 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। ट्रस्ट बोर्ड द्वारा तपस्वी का अभिनन्दन किया गया।