ज्ञानपूर्वक आचरण बनाता है जीवन को सार्थक : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

ज्ञानपूर्वक आचरण बनाता है जीवन को सार्थक : आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ सापेडा में स्थित एस.आर.के. इंस्टिट्यूट परिसर में पधारे। परम पूज्य आचार्यश्री ने अपने मंगल प्रवचन में ज्ञान और आचरण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ये दोनों हमारे जीवन के महत्वपूर्ण पक्ष हैं। शास्त्रों में कहा गया है— पहले ज्ञान, फिर दया, अहिंसा और आचरण। ज्ञानपूर्वक आचरण करना ही जीवन को सार्थक बनाता है।
आचार्यश्री ने कहा कि अज्ञानता अंधकार, दु:ख और कष्ट का कारण है। गुस्से और अन्य पापों से भी अधिक हानिकारक अज्ञान होता है, क्योंकि यह व्यक्ति की चेतना को आच्छादित कर उसे हित-अहित का बोध नहीं होने देता। ज्ञान, व्यक्ति को सम्यक् दृष्टि प्रदान करता है और जब इसके अनुरूप आचरण होता है, तो वह आत्मकल्याण की दिशा में अग्रसर हो सकता है। साधु के लिए संयम और अहिंसा की आराधना तभी प्रभावी हो सकती है, जब उसे जीव-अजीव का यथार्थ ज्ञान हो। बिना तत्वज्ञान के साधना और आराधना कितनी भी गहरी क्यों न हो, वह पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सकती। 
आचार्यश्री ने आगे कहा कि ज्ञान के दो स्वरूप हो सकते हैं — एक वैदुष्य रूप में बौद्धिक ज्ञान और दूसरा मूल तात्त्विक आध्यात्मिक ज्ञान। मूल तात्त्विक ज्ञान ही साधना की सुदृढ़ नींव है। यदि यह नींव मजबूत होगी, तो संयम रूपी भवन दृढ़ता से टिक सकेगा।  सम्यक् ज्ञान को अंक 'एक' की संज्ञा देते हुए पूज्य प्रवर ने बताया कि 'शून्य' की कीमत तभी होती है जब उसके पहले 'एक' हो। इसी प्रकार, सम्यक् ज्ञान होने पर ही श्रावकत्व या साधुत्व की सार्थकता सिद्ध होती है। आचार्यश्री ने पाँच आश्रवों के भार की व्याख्या करते हुए कहा कि ज्यों-ज्यों आश्रव निरुद्ध होते जाते हैं, त्यों-त्यों बंधनों का भार हल्का होता जाता है। सम्यक्त्व प्राप्त होने पर जीव को केवल वैमानिक देव गति में पुरुष रूप में ही आयुष्य बंधन होता है। इस प्रकार, मिथ्यात्व से मुक्त होकर सम्यक्त्व की ओर बढ़ने का महत्व अत्यंत विशिष्ट है।
आचार्यश्री ने गृहस्थों को भी संयम और त्याग अपनाने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि गृहस्थ जीवन में रहकर भी कुछ नियमों का त्याग कर संयम की दृढ़ता बढ़ाई जा सकती है। बारह व्रतों को धारण करना चाहिए और जीव-अजीव के तत्वों को समझने का प्रयास करना चाहिए। यह जीवन धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है, इसलिए हमें सम्यक्त्व, संयम और चारित्र की आराधना कर आत्मा को मोक्ष की ओर अग्रसर करना चाहिए। पूज्यवर के स्वागत में एस.आर.के. इंस्टीट्यूट के प्रिंसिपल निर्देशभाई ने अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं। महिला मंडल ने अपनी भावनाएँ अभिव्यक्त करते हुए भक्ति गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।