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समता से होती है हर परिस्थिति अनुकूल : आचार्यश्री महाश्रमण
श्रमण संस्कृति के सूत्रधार आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग 12 किमी का विहार कर सामखियाली के मणिबेन रमणिकलाल धनजी छाडवा विश्रांतिगृह में पधारे। पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए शांतिदूत ने फ़रमाया कि आदमी के जीवन में अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियाँ आ सकती हैं, उनमें समता रखना एक साधना होती है। शास्त्र में कहा गया है कि लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण, निंदा-प्रशंसा, मान-अपमान—ये जो द्वंद्वात्मक स्थितियाँ हैं, उनमें साधु सम रहते हैं। गृहस्थ भी जितना समता भाव रख सके, वह उनकी आत्मा के लिए हितकर हो सकता है। प्रतिकूल स्थिति में भी गुस्सा न करना, यह एक साधना की बात हो सकती है।
आचार्य प्रवर ने आगे फ़रमाया कि वे पुरुष महापुरुष होते हैं जिनमें महानता होती है, वे लघु नहीं बनते हैं। जीवन में समता-शांति बनी रहे। किसी के कहने से आदमी नीचा या खराब नहीं होता, न ही बड़ा या अच्छा बनता है। वह तो जैसा है, वैसा ही रहता है। समता रखने से आत्मा निर्मल बनती है। यदि समस्या आ जाए, तो समाधान खोजा जा सकता है। दुःखी न बनें, यह प्रयास आदमी का रहना चाहिए। जवाब बोलकर भी दिया जा सकता है, पर उससे बढ़िया है कि अच्छे कार्य करते जाओ। अच्छे कार्यों से दूसरों को जवाब दो। निंदा-विरोध करने वालों के प्रति भी मैत्री-भाव रखो। प्रेम से सामने वाले को समझा दो। सबके प्रति सद्भावना और मैत्री-भावना रखें। सारी दुनिया को अच्छा बनाना मुश्किल है, पर स्वयं तो अच्छे बन सकते हैं। पूज्यवर के स्वागत में विश्रांतिगृह के ट्रस्टी हेमराज भाई गडा ने अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।