
ज्ञान प्राप्ति के लिए आवश्यक है परिश्रम और समर्पण : आचार्यश्री महाश्रमण
करुणा के सागर आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आगम वाणी का रसास्वाद कराते हुए फरमाया कि मनुष्य के जीवन में शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान होता है। सरकार भी शिक्षा की अनेक व्यवस्थाएँ करती है। विदेशों में भी बच्चे पढ़ने जाते हैं। लोगों में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ रही है। शिक्षा दो प्रकार की होती है—लौकिक शिक्षा और आध्यात्मिक शिक्षा। लौकिक शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति अपने विषय में प्रवीण बन सकता है। यह भी उपयोगी होती है और इसका लाभ भी होता है। वहीं, आध्यात्मिक शिक्षा में धार्मिक शिक्षा, धार्मिक शास्त्रों का अध्ययन, आत्मा से संबंधित सिद्धांतों की शिक्षा जैसे आत्मवाद, लोकवाद, कर्मवाद, क्रियावाद आदि अध्यात्म से जुड़े विषय आते हैं। संन्यास की भी अपनी शिक्षा होती है। ये सभी आध्यात्मिक जगत की शिक्षा के अंतर्गत आते हैं।
किसी भी प्रकार की शिक्षा ग्रहण करने के लिए परिश्रम और समर्पण आवश्यक होता है। जिसे शिक्षा प्राप्त करनी हो, उसे रुचि और लगन होनी चाहिए। इसके लिए प्रतिभा भी आवश्यक है, साथ ही एक योग्य शिक्षक और अच्छा विद्यार्थी होना चाहिए। यदि अच्छी शिक्षा सामग्री और साधन उपलब्ध हों, तो व्यक्ति शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है। इन सभी में प्रतिभावान विद्यार्थी सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि वही विद्वान बन सकता है। विद्यार्थी की समझने की शक्ति अच्छी होनी चाहिए, साथ ही उसे परिश्रमी भी होना चाहिए। सफलता का पौधा परिश्रम रूपी जल से सिंचित होता है। ज्ञान प्राप्त करने की ललक होनी चाहिए, और ज्ञान के प्रति विनम्रता तथा आकर्षण होना आवश्यक है। विद्या विनय से शोभित होती है। ज्ञान देने वाले गुरु के प्रति अच्छा व्यवहार होना चाहिए।
जो विद्यार्थी विद्या प्राप्ति की अभिलाषा रखते हैं, उन्हें पांच बांधाओं से बचने का प्रयास करना चाहिए। पहली बाधा है-अहंकार। अहंकार से बचने का प्रयास करना चाहिए। दूसरी बाधा है-क्रोध। जिस विद्यार्थी को ज्यादा गुस्सा आता है, वह भी ज्ञान प्राप्ति में बाधा है। तीसरी बाधा है-प्रमाद। विद्यार्थी को प्रमाद से बचने का प्रयास करना चाहिए। चौथी बाधा है-बीमरी। शरीर स्वस्थ होता है तो ज्ञान का अभ्यास अच्छा हो सकता है। पांचवीं बाधा है-आलस्य। अगर विद्यार्थी में आलस्य हो तो भला वह कितना ज्ञान अर्जित कर सकेगा। इसलिए विद्यार्थियों को इन पांच बाधाओं से बचने का प्रयास करना चाहिए और ज्ञानार्जन के क्षेत्र में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
गुरुदेव श्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के पास अपार ज्ञान था। उन्होंने अनेकों को शिक्षा दी, आगम संपादन जैसा महान कार्य किया, और उनका साहित्य भी विशाल है। ज्ञान की गहराई में जो उतर सकता है, वही प्रज्ञा को प्राप्त करता है। ग्रहण शक्ति और आंतरिक स्फुरणा आवश्यक है। ज्ञान भी दो प्रकार का होता है—एक कुंड के पानी के समान, जो बाहर से ग्रहण किया जाता है, और दूसरा कुएँ के पानी के समान, जो भीतर के स्रोत से स्वयं स्फुरित होता है। विद्यार्थी को सुख की लालसा छोड़कर अभ्यास में मन लगाना चाहिए, तभी वह अच्छा ज्ञान अर्जित कर सकता है।
तेरापंथ किशोर मंडल ने पूज्यवर की सन्निधि में अपनी सुंदर प्रस्तुति दी। जीतो एपेक्स के सचिव ललित डांगी ने अपनी भावना व्यक्त की और अप्रैल में 'विश्व नवकार दिवस' के आयोजन की जानकारी प्रस्तुत की। समणी ख्यातिप्रज्ञाजी व समणी निर्मलप्रज्ञाजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।