मर्यादा के बंधन से संभव है मुक्ति

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मर्यादा के बंधन से संभव है मुक्ति

मर्यादाएँ हमारे जीवन को निर्माण, सुगंध, सौंदर्य और सुसंस्कार प्रदान करती हैं। जो व्यक्ति मर्यादा की लक्ष्मण रेखा में रहता है, वह श्रेष्ठता को प्राप्त करता है। इन विचारों को कडलूर जैन संघ भवन में तेरापंथ धर्मसंघ के 161वें मर्यादा महोत्सव के अवसर पर 'मर्यादा अपनाएँ - जीवन सजाएँ' विषय पर आयोजित धर्मसभा में मुनि हिमांशुकुमार जी ने व्यक्त किया।
मुनिश्री ने कहा कि भगवान महावीर की शिक्षा है कि जो भी नियमों और मर्यादा के सूत्र में बंधा रहता है, सीमित आचरण में रहता है, वह मुक्ति को प्राप्त कर सकता है।
250 वर्ष पूर्व आचार्य भिक्षु ने एक नेक और स्वच्छ मार्ग पर चलते हुए आचार क्रांति, विचार क्रांति और संघीय क्रांति का सूत्रपात किया। संघ और संगठन की मजबूती के लिए उन्होंने मर्यादाओं का निर्माण कर एक संविधान की स्थापना की। मुनि श्री ने पाँच मूल मर्यादाओं का वाचन और विश्लेषण करते हुए बताया कि ये मर्यादाएँ आज भी धर्मसंघ में यथावत बनी हुई हैं। साधु-संतों और श्रावक समाज के आध्यात्मिक एवं सामाजिक उत्थान में ये मर्यादाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
मुनिश्री ने श्रावक समाज को संबोधित करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को निम्नलिखित पाँच लक्ष्मण रेखाओं में रहना चाहिए—
1. भ्रमण रेखा – हमें यह सदैव विचार करना चाहिए कि हम कहाँ, कब और किसके साथ जा रहे हैं।
2. मनोरंजन रेखा – ऐसे मनोरंजन से बचें जो हमारी संस्कृति और संस्कारों को नुकसान पहुँचाए।
3. वस्त्र रेखा – ऐसे वस्त्र धारण न करें, जो स्वयं या सामने वाले के मन में चंचलता उत्पन्न करें।
4. संबंधों की रेखा – हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि किसके साथ, कितना और कैसा संबंध रखना उचित है।
5. विवाद रेखा – विशेषकर परिजनों के साथ वाद-विवाद होने पर भी संवाद बनाए रखें और कोर्ट-कचहरी के मामलों से बचें।
मुनि हेमंत कुमार जी ने कहा कि जब मर्यादाओं को खुशी-खुशी स्वीकार किया जाता है, तो वे सुखद बन जाती हैं। जीवन को उन्नत बनाने के लिए मर्यादाओं को हृदय से अपनाना आवश्यक है। इससे पूर्व नमस्कार महामंत्र के समुच्चारण के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। स्थानीय महिलाओं ने मंगलाचरण गीत प्रस्तुत किया।
तेरापंथ उपसभा संयोजक सोभागमल सांड ने स्वागत भाषण देते हुए आभार व्यक्त किया।