
‘जो प्राप्त है, वह पर्याप्त है’ स्मृति ग्रंथ का लोकार्पण
परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी के पावन सान्निध्य में कच्छ-भुज में आयोजित 161वें मर्यादा महोत्सव के प्रथम दिन, ‘संघसेवी’, ‘शासनसेवी’ एवं ‘समाजभूषण’ स्व. कन्हैयालालजी छाजेड़ के स्मृति ग्रंथ ‘जो प्राप्त है, वह पर्याप्त है’ का लोकार्पण परम पूज्य आचार्य प्रवर के कर-कमलों द्वारा संपन्न हुआ।
मंगल आशीर्वचन प्रदान करते हुए परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कहा— 'श्री कन्हैयालालजी छाजेड़ को मैं गुरुदेवश्री तुलसी के समय से देखता आया हूँ। उन्होंने हमारे धर्मसंघ में समर्पण भाव से सेवाएँ दीं। हमारे धर्मसंघ के महत्वपूर्ण कार्यों में वे एक दूत के रूप में चारित्रात्माओं से संपर्क करते और संवाद स्थापित करते थे। उन्होंने तेरापंथ धर्मसंघ की अंतरंग सेवा की तथा तीन आचार्यों के समय में विभिन्न सेवाएँ प्रदान कीं। उन्होंने जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा जैसी गरिमामयी संस्था का लंबे समय तक नेतृत्व किया एवं अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद में अध्यक्षीय भूमिका निभाई। तेरापंथ विकास परिषद में भी उन्होंने प्रमुख के रूप में अपनी सेवाएँ दीं। संभवतः ऐसे श्रावक बहुत कम होंगे, जिन्हें ‘शासनसेवी’ और ‘संघसेवी’—दोनों अलंकरण आचार्यों द्वारा प्रदान किए गए हों। वे ‘समाजभूषण’ सम्मान से भी विभूषित हुए। कन्हैयालालजी छाजेड़ जैन श्वेतांबर तेरापंथ समाज के वरिष्ठ कार्यकर्ता और समर्पित श्रावक थे। उन्होंने तेरापंथ समाज की सेवा तथा साधु-साध्वी समुदाय की आराधना की। आचार्यों के प्रवास हेतु स्थान निरीक्षण का कार्य भी वे किया करते थे। इस प्रकार, वे तेरापंथ धर्मसंघ और समाज की सेवा में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करने वाले विरले व्यक्तित्वों में से एक थे। ‘जो प्राप्त है, वह पर्याप्त है’ स्मृति ग्रंथ पाठकों को सत्प्रेरणा प्रदान करेगा। इस ग्रंथ से समाज में धार्मिक एवं आध्यात्मिक विकास को प्रोत्साहन मिलेगा।'
ग्रंथ की संपादिका डॉ. मुमुक्षु शांता जैन ने कहा— 'कन्हैयालालजी छाजेड़ एक साधारण व्यक्ति थे, लेकिन जब उन्होंने गुरुचरणों में पूर्ण समर्पण किया, तब उनका कद निरंतर ऊँचा उठता चला गया।
समाज की विभिन्न संस्थाओं में उन्होंने कर्तृत्व और नेतृत्व की मिसाल पेश की। यदि उनके व्यक्तित्व को एक वाक्य में समेटना हो, तो यही कहना पर्याप्त होगा—‘जो प्राप्त है, वह पर्याप्त है।’ इस प्रेरणा-सूत्र को उन्होंने जीवन के प्रत्येक क्षण में जिया। धर्मसंघ ने उन्हें ‘तेरापंथ का इनसाइक्लोपीडिया’ और ‘तेरापंथ का चाणक्य’ कहा।
तेरापंथ विकास परिषद के सदस्य एवं ग्रंथ के दिशा-निर्देशक पदमचंद पटावरी ने कहा— 'तेरापंथ धर्मसंघ की स्थापना से लेकर अब तक अनेक श्रावकों ने इसकी विकास यात्रा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आचार्यश्री तुलसी के शासनकाल में जन्मे कन्हैयालालजी छाजेड़ पर गुरुदेवश्री तुलसी की विशेष कृपादृष्टि थी। पूज्य आचार्यों ने अपने अनुग्रह से उन्हें जिस ऊँचाई तक पहुँचाया, वहाँ तक बहुत कम श्रावक पहुँच सके हैं।
आचार्यश्री तुलसी के महाप्रयाण के पश्चात आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने और उनके महाप्रयाण के बाद आपश्री (आचार्य महाश्रमणजी) ने उन्हें गुरुता के बंधन में सदैव बाँधकर रखा।
उनकी प्रत्येक साँस संघ को समर्पित थी। उन्होंने अनेक सभा-संस्थाओं में कार्य किया और हजारों कार्यकर्ताओं को ऊर्जा प्रदान की। इस स्मृति ग्रंथ के प्रकाशन में मुमुक्षु डॉ. शांता जैन के निष्ठापूर्ण संपादन कौशल, वीणा जैन के विशेष सहयोग एवं अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के केंद्रीय कार्यालय ‘युवालोक’ के व्यवस्थागत योगदान का विशेष योगदान रहा है।
कन्हैयालालजी छाजेड़ की पौत्री एडवोकेट मनीषा राखेचा ने अपने भाव व्यक्त किए। छाजेड़ परिवार एवं परिजनों की ओर से गीतिका का संगान किया गया। उनके पुत्र लक्ष्मीपत, अशोक छाजेड़, अन्य परिजनों एवं पदमचंद पटावरी, मुमुक्षु डॉ. शांता जैन, वीणा जैन आदि ने मिलकर लोकार्पण हेतु ग्रंथ की प्रथम प्रति परम पूज्य गुरुदेव को निवेदित की।परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी के पावन सान्निध्य में कच्छ-भुज में आयोजित 161वें मर्यादा महोत्सव के प्रथम दिन, ‘संघसेवी’, ‘शासनसेवी’ एवं ‘समाजभूषण’ स्व. कन्हैयालालजी छाजेड़ के स्मृति ग्रंथ ‘जो प्राप्त है, वह पर्याप्त है’ का लोकार्पण परम पूज्य आचार्य प्रवर के कर-कमलों द्वारा संपन्न हुआ।
मंगल आशीर्वचन प्रदान करते हुए परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कहा— 'श्री कन्हैयालालजी छाजेड़ को मैं गुरुदेवश्री तुलसी के समय से देखता आया हूँ। उन्होंने हमारे धर्मसंघ में समर्पण भाव से सेवाएँ दीं। हमारे धर्मसंघ के महत्वपूर्ण कार्यों में वे एक दूत के रूप में चारित्रात्माओं से संपर्क करते और संवाद स्थापित करते थे। उन्होंने तेरापंथ धर्मसंघ की अंतरंग सेवा की तथा तीन आचार्यों के समय में विभिन्न सेवाएँ प्रदान कीं। उन्होंने जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा जैसी गरिमामयी संस्था का लंबे समय तक नेतृत्व किया एवं अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद में अध्यक्षीय भूमिका निभाई। तेरापंथ विकास परिषद में भी उन्होंने प्रमुख के रूप में अपनी सेवाएँ दीं। संभवतः ऐसे श्रावक बहुत कम होंगे, जिन्हें ‘शासनसेवी’ और ‘संघसेवी’—दोनों अलंकरण आचार्यों द्वारा प्रदान किए गए हों। वे ‘समाजभूषण’ सम्मान से भी विभूषित हुए। कन्हैयालालजी छाजेड़ जैन श्वेतांबर तेरापंथ समाज के वरिष्ठ कार्यकर्ता और समर्पित श्रावक थे। उन्होंने तेरापंथ समाज की सेवा तथा साधु-साध्वी समुदाय की आराधना की। आचार्यों के प्रवास हेतु स्थान निरीक्षण का कार्य भी वे किया करते थे। इस प्रकार, वे तेरापंथ धर्मसंघ और समाज की सेवा में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करने वाले विरले व्यक्तित्वों में से एक थे। ‘जो प्राप्त है, वह पर्याप्त है’ स्मृति ग्रंथ पाठकों को सत्प्रेरणा प्रदान करेगा। इस ग्रंथ से समाज में धार्मिक एवं आध्यात्मिक विकास को प्रोत्साहन मिलेगा।'
ग्रंथ की संपादिका डॉ. मुमुक्षु शांता जैन ने कहा— 'कन्हैयालालजी छाजेड़ एक साधारण व्यक्ति थे, लेकिन जब उन्होंने गुरुचरणों में पूर्ण समर्पण किया, तब उनका कद निरंतर ऊँचा उठता चला गया।
समाज की विभिन्न संस्थाओं में उन्होंने कर्तृत्व और नेतृत्व की मिसाल पेश की। यदि उनके व्यक्तित्व को एक वाक्य में समेटना हो, तो यही कहना पर्याप्त होगा—‘जो प्राप्त है, वह पर्याप्त है।’ इस प्रेरणा-सूत्र को उन्होंने जीवन के प्रत्येक क्षण में जिया। धर्मसंघ ने उन्हें ‘तेरापंथ का इनसाइक्लोपीडिया’ और ‘तेरापंथ का चाणक्य’ कहा।
तेरापंथ विकास परिषद के सदस्य एवं ग्रंथ के दिशा-निर्देशक पदमचंद पटावरी ने कहा— 'तेरापंथ धर्मसंघ की स्थापना से लेकर अब तक अनेक श्रावकों ने इसकी विकास यात्रा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आचार्यश्री तुलसी के शासनकाल में जन्मे कन्हैयालालजी छाजेड़ पर गुरुदेवश्री तुलसी की विशेष कृपादृष्टि थी। पूज्य आचार्यों ने अपने अनुग्रह से उन्हें जिस ऊँचाई तक पहुँचाया, वहाँ तक बहुत कम श्रावक पहुँच सके हैं।
आचार्यश्री तुलसी के महाप्रयाण के पश्चात आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने और उनके महाप्रयाण के बाद आपश्री (आचार्य महाश्रमणजी) ने उन्हें गुरुता के बंधन में सदैव बाँधकर रखा।
उनकी प्रत्येक साँस संघ को समर्पित थी। उन्होंने अनेक सभा-संस्थाओं में कार्य किया और हजारों कार्यकर्ताओं को ऊर्जा प्रदान की। इस स्मृति ग्रंथ के प्रकाशन में मुमुक्षु डॉ. शांता जैन के निष्ठापूर्ण संपादन कौशल, वीणा जैन के विशेष सहयोग एवं अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के केंद्रीय कार्यालय ‘युवालोक’ के व्यवस्थागत योगदान का विशेष योगदान रहा है।
कन्हैयालालजी छाजेड़ की पौत्री एडवोकेट मनीषा राखेचा ने अपने भाव व्यक्त किए। छाजेड़ परिवार एवं परिजनों की ओर से गीतिका का संगान किया गया। उनके पुत्र लक्ष्मीपत, अशोक छाजेड़, अन्य परिजनों एवं पदमचंद पटावरी, मुमुक्षु डॉ. शांता जैन, वीणा जैन आदि ने मिलकर लोकार्पण हेतु ग्रंथ की प्रथम प्रति परम पूज्य गुरुदेव को निवेदित की।