प्रभु के पथ पर चलते रहें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोरडा। 6 अप्रैल, 2025

प्रभु के पथ पर चलते रहें : आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्य भिक्षु के ग्यारहवें पट्टधर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी सिधाड़ा से लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर कोरडा गांव में स्थित सच्चिदानंद विद्यालय में पधारे। पूज्यवर ने भिक्षु अभिनिष्क्रमण दिवस पर अमृत देशना देते हुए फरमाया कि ‘दसवेआलियं’ का दसवां अध्ययन इस दिवस की भावभूमि से जुड़ा हुआ है। आज चैत्र शुक्ला नवमी है, जिसे रामनवमी के साथ-साथ भिक्षु नवमी भी कहा जाता है। भिक्षु स्वामी तेरापंथ धर्म के आद्य आचार्य हैं। तेरापंथ की स्थापना से पूर्व उन्होंने इसी दिन अभिनिष्क्रमण किया था। ‘दसवेआलियं’ के दसवें अध्ययन के श्लोकों का समापन 'सभिक्खु-सभिक्खु' शब्दों से होता है, जिसका अर्थ है—'वही है सच्चा भिक्षु'। यह अभिव्यक्ति भिक्षु स्वामी के नाम से प्रतिध्वनित होती है। अध्ययन के प्रारम्भ में भी निष्क्रमण का उल्लेख है, इसलिए यह दिन ‘अभिनिष्क्रमण दिवस’ के रूप में विशेष महत्व रखता है।
आचार्य भिक्षु का यह निष्क्रमण मारवाड़ के बगड़ी क्षेत्र से संबंधित था। उन्होंने एक आम्नाय परंपरा से बाहर निकलकर नया अध्यात्मिक मार्ग चुना। ‘तेरापंथ’ नाम भी एक सहज संयोग से प्राप्त हुआ—जोधपुर के एक गृहस्थ कवि ने रचना करते हुए इस नाम को प्रस्तुत किया। तेरह संत, तेरह श्रावक, तेरह नियम—यह त्रिगुणित तेरहों का अद्भुत संयोग ही इस नाम का आधार बना। जब यह नाम आचार्य भिक्षु तक पहुँचा, उन्होंने पट्ट से उतरते हुए प्रभु महावीर को वंदन कर कहा— 'हे प्रभो! यह तेरापंथ—यह तुम्हारा पंथ है। हम आपके पथ के पथिक हैं। पूज्यवर ने ‘प्रभो! तुम्हारे पावन पथ पर जीवन अर्पण है सारा’ गीत का मधुर संगान भी करवाया एवं कहा - यदि संकल्प दृढ़ हो, तो क्रांति की बात आगे बढ़ सकती है। शांति अच्छी है, पर जहाँ अपेक्षित हो, वहाँ क्रांति भी आवश्यक है। शांति के साथ संतुलित क्रांति की आवश्यकता है। निर्भीकता होनी चाहिए—व्यक्ति सत्य बोल सके, आवाज उठा सके—परन्तु झगड़ा न हो। जागरूकता आवश्यक है, क्योंकि यदि कोई जगाने वाला न हो, तो सोये हुए गंगा भी बहती चली जाती है।
आज रामनवमी भी है— रामराज्य की कल्पना अद्भुत है, पर उसका यथार्थ तभी संभव है जब कोई सजगता से कहने वाला भी हो। जैन दर्शन में भगवान राम को मोक्ष प्राप्त आत्मा माना गया है—वे एक सच्चे संत पुरुष थे। भिक्षु स्वामी हमारे आद्य प्रवर्तक हैं। उनके निष्क्रमण के साथ ही अनेक कठिनाइयाँ जुड़ी रहीं—दीक्षा भी बगड़ी में, अभिनिष्क्रमण भी वहीं। कभी श्मशान में निवास करना पड़ा। भगवान महावीर के साथ उनके जीवन में अनेक समानताएँ देखने को मिलती हैं। हम अपने आद्य प्रवर्तक को बारंबार सादर वंदन करते हैं। उनके जीवन में अनेकों प्रेरणादायक प्रसंग हैं। उनका साहस अद्वितीय था—विरोधों के सामने झुके नहीं, कठिनाइयों से हारे नहीं। केलवा में यक्षराज से भी नहीं घबराए। ऐसी विलक्षण साधना और तपस्या उनके जीवन की धरोहर है। उन्हीं के साहस और संकल्प से आज धर्मसंघ इतना आगे बढ़ पाया है।
तेरापंथ धर्मसंघ का 265वाँ वर्ष प्रारंभ हो चुका है। दस आचार्यों का गौरवमयी काल पूर्ण हो चुका है, और अब दूसरा दशक चल रहा है। हम आचार्य भिक्षु को बार-बार श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और यह प्रार्थना करते हैं कि हमारे भीतर भी क्रांति की वह लौ सदा प्रज्वलित रहे। श्रद्धा, आस्था, आचार-निष्ठा और आगम-श्रद्धा हमारे जीवन का हिस्सा बनें। हमारी संकल्प-शक्ति दृढ़ बनी रहे, यही कामना है। स्वागत के क्रम में अमृत शाह, दीपाली पारिख, यश पारिख, रमणीकभाई शाह, अरविन्दभाई डोशी तथा शांतिधाम आश्रम के संचालक युवराज द्वारा अपनी अभिव्यक्ति दी गई।कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।