वीतरागकल्प आचार्य महाश्रमण

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साध्वी कनकरेखा

वीतरागकल्प आचार्य महाश्रमण

नव-सृजन के श्रेष्ठ पुष्पों की पराग लुटाने, शुभ भावों का अर्घ्य चढ़ाने, परम पावन पवित्र पलों का अमृतपान करने अध्यात्म-रस पिपासु भक्तों ने भगवान की अर्चना की, अभ्यर्थना की।
अभिवादन में कहा —
त्वदास्यलासिनी नेत्रे, त्वदुपास्ति करौ-करौ।
त्वद्‌गुणश्रोत्रिणी श्रोत्रे, भूयास्तां सर्वदा मम।।
अर्थात् —
प्रभो! आपकी वीतराग मुखमुद्रा में मेरे नेत्र, आपकी उपासना में मेरे हाथ, आपके गुण-श्रवण में मेरे कान संलग्न रहें।
क्योंकि —
ये मूर्ति तव पश्यतः शुभमयी, ते लोचने-लोचने।
या ते वक्ति गुणावलिं निरुपमां, सा भारती-भारती।।
या तो न्यंचति चति पादयोर्वरदयोः, सा कन्धरा-कन्धरा।
यत्ते ध्यायति नाथ! वृत्तमनद्यं, ते मानसं-मानसं।।
अर्थात् —
जो पवित्र वीतराग रूप को देखते हैं,
वे ही नेत्र-नेत्र हैं।
जो वाणी आपका गुणानुवाद करती है,
वही वाणी-वाणी है।
जो आपके चरणों में झुकती है,
वही ग्रीवा-ग्रीवा है।
जो आपके निर्दोष जीवनवृत्त का ध्यान करता है, वही मन-मन है।
वीतराग स्वरूप चिंतन, अनुचिंतन की अनुप्रेक्षा से वीतराग की दिशा में निरन्तर गतिशील तीर्थंकर के सक्षम प्रतिनिधि, वीतरागकल्प आचार्यश्री महाश्रमणजी ने विश्व की विरल विभूतियों में सर्वोच्च स्थान पाया है।
कलियुग में सतयुग-अवतारी सिद्धपुरुष आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी नैसर्गिक क्षमताओं को विश्व-मानचित्र पर नई पहचान दी। प्रगति के खुले आकाश में विकास की दिशाएँ उद्घाटित कर, अपने महनीय कर्तृत्व में इन्द्रधनुषी रंग भरे।
तेरापंथ के ताज महाश्रमण सरताज ने अपने अप्रतिम पुरुषार्थ से जिंदगी के कोरे कागज पर ऐसी लकीरें खींची, जो सृजन के नित नए स्वस्तिक उकेर रही हैं। आपका हर चरण श्रेयस् की ओर गतिमान है। युगीन विचारों को नई दिशा प्राप्त हो रही है। आपका हर चिंतन समाज सुधार का नव संदेश देता है। पुरुषार्थ की सतत परिक्रमा से संघ के उजले दर्पण में मुनि मुदित से महातपस्वी आचार्य महाश्रमणजी का व्यक्तित्व स्फटिक के समान निर्मल है, स्वच्छ है, पवित्र है, पारदर्शी है।
किसी विचारक ने कहा — 'स्मार्ट वर्क बुद्धिमान व्यक्ति ही कर सकता है। नई ऊंचाइयाँ छूने का जज्बा उसके भीतर पैदा होता है। उसके सामने सारी असफलताएँ बौनी हो जाती हैं।'
सच में, एक अलौकिक अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के कर्तृत्व को उजागर करता है उसका Smart Work। उसके तीन पैरामीटर बताए गए हैं —
Peaceful Mind
मदर टेरेसा के शब्दों में — Peace begins with a Smile.
'शांति की शुरुआत मुस्कान से होती है।'
सच में, आचार्यश्री महाश्रमणजी की मुस्कान हर पल बरकरार है। आपकी सहज, सरल, शांत, सौम्य मुखमुद्रा; सुधा बरसाता हुआ चेहरा; आशीर्वाद से उठे हाथ; वात्सल्य बरसाते नयन; करुणा का वर्षण करती वाणी — हर इंसान के मन-मस्तिष्क में आत्म-शांति की गहरी अनुभूति करवाती है। आपकी उपासना में पहुंचने वाला हर व्यक्ति शांतिरूपी समृद्धि का वरण करता है।
अन्तर्यात्रा के विविध प्रयोगों से मस्तिष्क के प्रत्येक Neurons को सक्रिय कर आपने उसे Peaceful बनाया।
एक मार्मिक श्लोक —
विहाय कामान् यः सर्वान्, पुमां श्चरति निस्पृहः।
निर्ममो निरहंकारः, स शान्तिमधिगच्छति।।
जो सर्वकामनाओं को त्यागकर किसी भी प्राणी या पदार्थ से निस्पृह हो विचरता है, अहंकार-ममकार से मुक्त होता है — वही शांति को प्राप्त करता है।
सचमुच, शांति का परमधाम है आचार्यश्री महाश्रमण का जीवनदर्शन।
Powerful Mind
ब्रह्म मुहूर्त, अमृतवेला के पवित्र समय में, प्रकृति प्रदत्त पीयूषभरे आहार का अमृतपान कर अमृत पुरुष ने उज्ज्वल आभामंडल का निर्माण किया। आपके चरणकमलों से निकलती हुई पावरफुल ऊर्जा को प्राप्त करने वाला व्यक्ति नई शक्ति, नई ऊर्जा व नई ताजगी का अनुभव करता है। आपके अवग्रह में प्रवेश करने वालों की आपदा-विपदा, बाधाएँ दूर हो जाती हैं। अशुभ योग और अशुभ चिंतन — शुभ भावों में परिवर्तित हो जाते हैं। आत्मा के आसपास प्राणशक्ति का नियोजन कर आपने शक्तिशाली कवच धारण किया है।
'आत्मवत् सर्वभूतेषु'— इस आर्षवाणी को चरितार्थ कर —
जयं चरे जयं चिट्ठे, जयमासे जयं सए।
जयं भुंजंतो भासंतो, पावकम्मं न बंधई।।
जीवन में पापभीरुता के इस शुक्ल पक्ष से आपने अध्यात्म के अक्षुण्ण वैभव को प्राप्त किया है।
Positive Mind
प्रतिकूलता के झोंकों में भी अनुकूलता की शीतल बयार का अहसास कराते हैं — ज्ञान के अक्षयकोष आचार्यश्री महाश्रमणजी। आपकी Positivity इतनी Strong है कि संघर्ष हो या तूफान, कोरोना हो या भूकंप — हर परिस्थिति में सम रहकर, हर सफलता के उजले शिखर पर आरोहण किया है। सकारात्मक सोच से उठी मस्तिष्क की प्रत्येक तरंगें 'सत्यम् शिवम् सुंदरम्' के रूप में आपके जीवन का श्रृंगार बन गई हैं।
'कामयाबी के हर शिखर पर आपका नाम है,
आपके हर कदम पर दुनिया का
सलाम है।
हिमालयी संकल्पों को पूरा करना आपका काम है,
आपके जीवन का हर पल अभिराम है।'
श्रद्धेय के प्रति अनन्य श्रद्धा समर्पित—
अष्टगणी संपदा के धारक — यश, कीर्ति, प्रतिष्ठा अहर्निश आपके पद की परिक्रमा करते हैं। सफलता आपके चरण चूमती है। धर्मचक्र आपके आगे-आगे चलता है। चहुँदिशाओं में विजय ध्वज फहराया जाता है। यशोगान से सारा भूमंडल गुंजायमान है —
'जय-जय ज्योतिचरण, जय-जय महाश्रमण!'