धर्म है उत्कृष्ट मंगल

स्वाध्याय

-आचार्यश्री महाश्रमण

धर्म है उत्कृष्ट मंगल

आगम-साहित्य के ग्यारह अंगों में पांचवां अंग है भगवई विआईपण्णती -भगवती व्याख्याप्रज्ञप्ति। इसका वर्तमान आकार अन्य आगमों की अपेक्षा अधिक विशाल है। यह तत्त्वज्ञान का कोष है। इसमें प्राचीन इतिहास पर प्रकाश डालने वाले सूत्र भी विद्यमान हैं। यह आगम संवादशैलीप्रधान अथवा प्रश्नोत्तरशैली प्रधान है। समवायांग और नन्दी के अनुसार इस आगम में छत्तीस हजार प्रश्नों का व्याकरण है। विज्ञान, मनोविज्ञान, परामनोविज्ञान, दर्शन, इतिहास आदि विभिन्न विषयों की चर्चा इसमें उपलब्ध है। कल्पना की जा सकती है कि इसका मूल नाम व्याख्या प्रज्ञप्ति है और अत्यन्त श्रद्धा के कारण नाम के साथ 'भगवती, विशेषण जुड़ गया। बोलचाल की भाषा में इसको भगवती नाम से भी जाना जाता है। विशेषण ने विशेष्य का स्थान ले लिया है। व्याख्या का अर्थ विवेचन और प्रज्ञप्ति का अर्थ है समझाना। जिसमें विवेचनपूर्वक तत्त्व को समझाया जाता है, वह है व्याख्याप्रज्ञप्ति। इस आगम का एक नाम व्याख्या भी मिलता है। इसके अध्यायों को शत (शतक) कहा जाता है। भगवती में मूल शतक ४१ हैं।
भगवती आगम-बत्तीसी में सबसे बड़ा आगम है। उसको पढ़ने से ऐसा लगता है कि इसमें सर्वाधिक प्रश्नकर्ता इन्द्रभूति गौतम, सर्वाधिक उत्तरदाता भगवान महावीर और सर्वाधिक प्रश्नोत्तर स्थल राजगृह है। विभिन्न प्रश्नोत्तरों का संकलन इस आगम के शतकों में किया गया प्रतीत होता है। इसका प्रारंभ मंगल से होता है। मंगल स्वरूप नमस्कार महामंत्र, ब्राह्मीलिपि व श्रुत को नमस्कार उल्लिखित है।
प्रश्नोत्तर की श्रृंखला में सबसे प्रथम है क्या चलमान चलित है? आदि। इसमें क्रियमाणकृत सिद्धान्त प्रतिपादित है। इस प्रकार विभिन्न प्रश्नोत्तरों से भरापूरा पहला शतक है। यह परिमाण में काफ़ी बड़ा है।
दूसरे शतक में परिव्राजक स्कन्दक का बहुत रोचक वर्णन है। गौतम और स्कन्दक का सौहार्दपूर्ण मिलन, स्कन्दक का भगवान महावीर के पास दीक्षित होना, अनशन स्वीकार करना तथा किस प्रकार का संयत जीवन स्कन्दक जीता है, उसका चित्रण बहुत प्रेरणाप्रद है। इसी शतक में उपलब्ध तुंगिया नगरी के श्रावकों का जीवन-वर्णन प्रत्येक श्रावक के लिए मार्ग-दर्शक है। शतक के दसवें उद्देशक में अस्तिकायों का वर्णन प्राप्त है। तीसरे शतक के प्रारंभ में अग्निभूति गौतम और वायुभूति गौतम भगवान महावीर से देवता संबंधी प्रश्न करते हैं और महावीर उनका उत्तर देते हैं। इसी शतक के दूसरे उद्देशक में बाल तपस्वी पूरण का वर्णन उपलब्ध है।
पांचवें शतक में अन्यान्य प्रश्नोत्तरों के साथ अतिसंक्षिप्त रूप में अतिमुक्तक मुनि की बालसुलभ चंचलता का वर्णन है। छठे शतक में तमस्काय और कृष्णराजि का प्रतिपादन भी प्राप्त होता है। सातवें शतक में अन्यान्य व्याख्या के साथ महाशिलाकंटक संग्राम और रथमुसल संग्राम का वर्णन मिलता है। आठवें शतक के अंत में जीव को पुद्गली और पुद्गल दोनों कहा गया है। नवें शतक में महावीर के मूल माता-पिता देवानन्दा ब्राह्मणी और ऋषभदत्त ब्राह्मण के बारे में भी जानकारी मिलती है। भगवान महावीर को देखने पर माता देवानन्दा का मातृस्नेह उमड़ पड़ता है, उसका सजीव चित्रण यहां मिलतां है। इसी शतक में महावीर के दामाद जमालि का वर्णन भी प्राप्त है। ग्यारहवें शतक में शिवराजर्षि और बारहवें शतक में महावीर के श्रावक 'शंख पोक्खली' का वर्णन मिलता है। जीव जगत की विविधता और विचित्रता का कारण कर्म है-यह घोष भी बारहवें शतक में प्राप्त है। स्याद् अस्ति, स्याद् नास्ति और स्याद् अवक्तव्य स्वरूप स्यादवाद के विश्लेषणात्मक सूत्र भी इस शतक में प्राप्त है। चौदहवें शतक में महावीर और गौतम के चिरकालीन संबंधों को जानकारी देने वाला एक सूत्र उपलब्ध है। पन्द्रहवें शतक में गोशालक का विस्तृत वर्णन मिलता है। इस शतक का प्रारंभ
'नमो सुयदेवयाए भगवईए' इस मंगल वाक्य से होता है।
खुले मुंह बोलने से वायुकाय की हिंसा होती है- इसका जो आगमिक आधार दिया जाता है, वह सोलहवें शतक में प्राप्त होता है। वहां इन्द्र की भाषा को सावद्य भी और निरवद्य भी बतलाया गया है। इसी शतक में स्वप्न और स्वप्नफल का वर्णन प्राप्त होता है।
अठारहवें शतक में कार्तिक सेठ का वर्णन प्राप्त है। राजगृह निवासी श्रमणोपासक मद्दुक ने अन्यतीर्थिकों को अस्तिकायों के बारे में समझाया। अमूर्त और अदृश्य का भी अस्तित्व होता है, इस बात को उसने अपने अकाट्य तर्कों से प्रतिपादित किया। भगवान महावीर ने उसकी प्रतिपादन-कुशलता की प्रशंसा की। यह सारा वर्णन भी अठारहवें शतक में उपलब्ध है।
बीसवें शतक में पांच अस्तिकायों के अभिवचन (पर्यायवाची नाम) काफी संख्या में मिलते हैं। चार वर्णवाला श्रमणसंघ भी इसी शतक में प्रज्ञप्त है। श्रमण, श्रमणी, श्रावक और श्राविका इन चारों को श्रमण संघ कहा गया है। पच्चीसवां शतक तात्त्विक ज्ञान का भण्डार है।
यह संक्षेप में भगवती का परिचयात्मक विश्लेषण है और पूर्ण पारायण की प्रेरणा है।