शासनश्री साध्वी जयप्रभा जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार
अर्हम्
शासनश्री साध्वी विद्यावती ‘द्वितीय’
साध्वी जयप्रभा जी ने जीवन को शिखर चढ़ाया।
संयम जीवन में अनशन कर पौरुष प्रबल दिखाया।
पल-पल गुरु का साया है।
सिर पर छतर छाया है॥
श्रीडूंगरगढ़ चोरड़िया परिकर में जन्म तुम्हारा।
तुलसी गणनायक से तुमने संयम पथ स्वीकारा।
दूर प्रदेशों में यात्रा कर नैतिक दीप जलाया॥ साध्वी---॥
कला कुशलता मिलनसारिता ॠजुता है जीवन में।
सेवाभावी स्वाध्यायी तुम रहती संयम धुन में।
गुरुवर की ऊर्जा पा तुमने कठिन मार्ग अपनाया॥
सही वेदना अतुलित तुमने समता भाव निराला।
संथारा कर दिल्ली गिरिगढ़ गण का नाम उजला।
बड़ भगिनी ने अंत समय में, अनशन है पचखाया॥
धन्य-धन्य शासनश्री जयप्रभा जी तुम बड़भागी।
सफल मनोरथ हुआ तुम्हारा आत्मिक शक्ति जागी।
सिद्ध बुद्ध उन्मुक्त बनो बन जाए कंचन काया॥
लय : मायन-मायन---
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अर्हम्
साध्वी योगक्षेम प्रभा
अनशन है जयकारी।
शासनश्री जयप्रभाजी की हम जाएँ बलि-बलिहारी---॥
विपुल वेदना तन में फिर यह कैसे हिम्मतधारी।
नेह देह का तजकर जोड़ी आत्मा से इकतारी।
समता देख अनूठी सतिवर! विस्मित है नरनारी---अनशन---॥
चिन्मय से जब प्रीत जगे तब होता है संथारा।
मृण्मय से जब मोह छूटे तब बदले चिंतनधारा।
भावों की श्रेणी आरोहण है सुकृत संचारी---अनशन---॥
सुखपृच्छा सह करे वंदना, अविनय आप खमाए।
पद निर्वाण प्राप्त हो जल्दी यही भावना भाए।
मिला भाग्य से भैक्षव शासन, जिन शासन सुखकारी---अनशन---॥
क्षणभंगुर इस तन से आखिर, पूरा सार निकाला।
स्हाज मिला सुंदर सतियों का, मृत्यु को ललकारा।
विजय वरो इस कर्म समर में मंजिल पा मनहारी---अनशन---॥
लय : संयममय जीवन हो---
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अर्हम्
साध्वी कांताश्री
जय बोलो जय प्रभा सतीवर की।
संयम से जगमग ज्योति की।
कितना उज्ज्वल निर्मल जीवन।
तप-त्याग को माना उत्तम धन।
इस बड़े कीमती मोती की॥
चोरड़िया कुल में जन्म लिया।
छोटी वय में घर त्याग दिया।
जागी भक्ति गुरु चरणों की॥
तुम सहज सौम्यता सूरत हो।
तुम सहिष्णुता की मूरत हो।
सत्संस्कारों के सौरभ की॥
चेहरे पर तेज निराला है, अनशन का अमृत प्याला है।
इस तप, भूत महाशक्ति की।
भैक्षव शासन मंगलकारी।
गुरु महाश्रमण है सुखकारी।
जय बोलो इस नंदनवन की॥
लय : ॐ शांति----
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अर्हम्
साध्वी चंदनबाला
जीवन धन्य हुयो-3
धार्यो अनशन गुरु आणां स्यूं।
चढ़ता बढ़ता परिणामां स्यूं।
एगोड्ठं धार्यो प्राणां स्यूं॥1॥
तोड़ी तन री ममता सारी।
आत्मा स्यूं जोड़ी एकतारी।
हिम्मत दिखलाई थे भारी॥2॥
विजयश्री जी संकेत दिरायो।
या सपने में कोई आयो।
कांई कारण अनशण ठायो॥3॥
दृढता समता बढ़ती जावै।
भावश्रेणी निर्मलता पावै।
दिन-दिन मुक्ति नेड़ी आवै॥4॥
बडभगणी रो संबल पायो।
जीवन उपवन ने सरसायो।
सगला जय-जय घोष सुणायो॥5॥
दिल्ली रा श्रावक सौभागी।
श्रद्धायुत सारा अनुरागी।
वांकी भी किस्मत है। जागी॥6॥
गुरुवर आपां रा उपकारी।
धर्मसंघ है मंगलकारी।
करल्यो सेवा से सुखकारी॥7॥
लय : धरती धोरां री---
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अर्हम्
साध्वी संघप्रभा
सति जयप्रभा जी जयकारी।
जावां हिम्मत पर बलिहारी।
पचख्यो अनशन दृढ़ता धारी॥
डूंगरगढ़ चौरड़िया कुल में।
जनम्या शुभ बेल्यां शुभ पुल में।
बचपन स्यूं ही शुभ संस्कारी॥
युवा-वय में संयम धार्यो।
तुलसी चरणां जीवन वार्यो।
सति विजय सन्निधि मनहारी॥
अंतर मन स्यूं सेवा साझी।
स्मृतियाँ सब आज हुवै ताजी।
थे मिलनसार मृदु व्यवहारी॥
बरसां विचर्या बण अग्रगण्य।
महाप्रज्ञ महर पा बण्या धन्य।
महाश्रमण कराई रिझवारी॥
शासनश्री संबोधन पायो।
तप जप स्यूं जीवन चमकायो।
गणि-गण स्यूं राखी इकतारी॥
समता स्यूं वेदन खूब सही।
मुख स्यूं जावै के बात कही।
सतियाँ सहवर्ती सुखकारी॥
दिल्ली भारत री रजधानी।
भावी री चलगत पहचाणी।
कर ली परभव री तैयारी॥
भावां री श्रेणी अब चढ़ती।
खिण-खिण उज्ज्वलता हो बढ़ती।
मजबूती स्यूं जीतो पारी।
आ सुखद कामना है म्हारी॥
मौके पर थे आड़ा आता।
सति कानकंवर यूं फरमाता।
है संघप्रभा भी आभारी।
बरसाई वत्सलता भारी॥
लय : ॐ शांति जिनेश्वर
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अर्हम्
साध्वी उज्ज्वलप्रभा
जय-जय जयप्रभा, श्रमणी धृतिधारी।
वीरवृत्ति स्यूं अनशन धार्यो, जीवन जयकारी।
है विलक्षण हिम्मत थांरी, कमर कसकर कर ली तैयारी।
संयम जीवन रो गौरव गावै दुनिया सारी॥
गुरु तुलसी स्यूं संयम पायो।
चंद्रकला ज्यूं जीवन विकसायो।
गुरु करुणा स्यूं खिलगी, संयम फुलवारी॥
गण दरियै रो, उजलो मोती।
आब निराली, संयम ज्योति।
साध्वी श्रेय ध्येय, गुरुदृष्टि इकतारी॥
है आदर्शमय, जीवन थांरो।
समता दमता रो, संगम न्यारो।
शासनश्री दिखलायो, दृश्य ओ विस्मयकारी॥
संयम पज्जवा, निर्मल निर्मल।
भावां री श्रेणी, उज्ज्वल उज्ज्वल।
चढ़ता भावां स्यूं विजय वरो मंगलकारी॥
धन्य-धन्य सतिवर, अनशन धार्यो।
लियो भार थे पार उतार्यो।
पूर्ण हुयां मनोरथ थारां नैया तारी॥
नंदनवन सो शासन पायो।
महाश्रमण गुरुवर रो सायो।
जीवन नैया खेवणहार गुरु उपकारी॥
लय : स्वामी भीखणजी---
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अर्हम्
साध्वी उज्ज्वलरेखा
नंदनवन ओ शासन, सुरतरु नेमा नंदन।
शासनश्री साध्वी जयप्रभाजी, चढग्या अनशन स्यन्दन॥आ॥
नश्वर तन री ममता, मोह माया सब त्यागी।
अवसर री किम्मत ने, समझे है बड़भागी।
चमचम चमकै चेहरो, काया बणगी कुंदन॥
आत्मा री असली विभुता, पायौ रो अवसर है।
अन्तरतम री खिड्क्याँ, खुलज्यावै सुखकर है।
आई घड़ियाँ पावन, थांरो पुलकित कण-कण॥
माटी री काया रो, थे मोल चुकायो है।
इच्छा मृत्यु रो ओ, संकल्प सझायो है।
राजधानी में आयो, अवसर ओ मनभावन॥
भावां रा सौदागर बण, बाजी थे जीत रह्या।
श्रेणी आरोहण कर, मुक्ति रे निकट बह्या।
उज्ज्वल उज्ज्वल भावां स्यूं, चरणां में शत वंदन॥
लय : मेरा गीत अमर कर दो---
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अर्हम्
साध्वी पुण्ययशा
तप की जय-जयकार-3
सति जयप्रभाजी तपसण, मेटो जन्म मरण की उलझन।
जीवन बन जाए कुंदन॥
शासनश्री ने शासनश्री का, अद्भुत जोश जगाया है।
भगिनी से अनशन स्वीकारा, अवसर का लाभ उठाया है।
खड़े मौत के सम्मुख निर्भय वंदन बारंबार॥
नश्वर तन में खिलती सुंदर, तप की केशर क्यारी है।
अपनाई तुमने वीरवृत्ति, जाये हम बलिहारी है।
महानिर्जरा का यह पथ है, करता भव से पार॥
साहसी कदमों से तुमने, मृत्यु को ललकारा है।
मन में मजबूती पूरी, गुरु का सबल सहारा है।
धन्य-धन्य है जयप्रभाजी, करते निज उद्धार॥
तुलसी शताब्दी वर्ष सुहाना, सेवा का लाभ कमाया।
गणप्रभाजी का संथारा, साज दे मन हर्षाया।
अनहद गुरु कृपा पाई, तप से जीवन गुलजार॥
भागी सौभागी हम सारे, भैक्षव शासन पाया।
महातपस्वी महाश्रमण का, सिर पर पावन साया।
भगिनी मंडल सहयोगी, सतिया सब सुखकार॥
लय : जाग अरे इंसान---
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अर्हम्
साध्वी विशदप्रज्ञा
राजधानी में रंग है छाया, अनशन बेला सुहानी।
शासनश्री जयप्रभा की गूंजे, साहस की कहानी॥
उपशम आभा देखी मनहर, संयम है वरदानी।
दृढ़ता, मृदुता, ॠजुता, सहिष्णुता की एक निशानी।
गण का सुयश बढ़ाया भारी, मुख-2 आज जुबानी॥
साँसों की सरगम गाएँ, धम्मं शरणं पवज्जामि।
रजपूती पर है बलिहारी, आत्म-यौद्धा वंदामि।
आराधक पद मंगलमय हो, शांति की सहनाणी॥
करोड़ भवों के कर्म खपाए, अनशन अलख जगाई।
माटी का है मोल चुकाया, संयम-सरिता महकाई।
गुणस्थानों का आरोहण हो, जय हो शिव-सेनानी॥
रत्न-जय भगिनी निराली, सतियाँ हैं सुखकारी।
शिव-पथ का तुम द्वार खोलो, गण-पतवार जयकारी।
विशद भावों से करे कामना, सफल हो तेरी कहानी॥
लय : जन्म-जन्म का---
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अर्हम्
साध्वी अनुप्रेक्षाश्री
अद्भुत समता धारी, साधना रो सार है।
वंदन सतीवर थांनै, बारंबार है॥
तीसरो मनोरथ धार्यो, कर्यो काम भारी।
सतीवर री देख दृढ़ता सारा विस्मयकारी।
गहरा गंभीरा सतीवर गुणारा भंडार है॥
वंदन सतीवर थांनै----
उपकारी सतीवर थे तो, मैंने खूब पढायो।
योगक्षेम वर्ष में तो, समय लगायो।
आभारी मनस्यूं म्हैं तो कृपा अनपार है॥
वंदन सतीवर थांनै----
शासनश्री बड़भागिनी रो, सुखद संयोग है।
सुव्रता जी, शशिरेखा जी रो विरल योग है।
सारा ही सतिवर देखो, सेवा में तैयार है॥
वंदन सतीवर थांनै----
भैक्षव शासन री, करी खूब प्रभावना।
अंतर्मनस्यूं सतीवर म्हांरा खमतखामणा।
महाश्रमणशासनदीपै, जय-जयकार है॥
वंदन सतीवर थांनै----
लय : अब तो पधारो भगवान----
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अर्हम्
साध्वी प्रमिला कुमारी आदि साध्वियाँ
समता राखीज्यो सतिवर! वेगी मुगति मिलसी।
दृढ़ता राखीज्यो, भावां स्यूं सब संकट टलसी॥आ॥
भूख प्यास री वेदना थे, सही अनन्ती बार।
जीवन में ओ अवसर आयो, उतरो भव स्यूं पार॥
नश्वर तन री ममता छोड़ी अजर अमर पर ध्यान।
अरिहंता रो शरणों थानै, होसी झट कल्याण॥
महायात्रा रा महापथिक थे, रहो सतत् गतिमान।
समकित नौका में थे बैठ्या, करो आत्म पहचान॥
साध्वी प्रमिलाश्री देवे है, थांनै साधुवाद।
आत्मा भिन्न शरीर भिन्न है, सुणज्यो अंतरनाद॥
लय : ऊँची राखीज्यो---
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अर्हम्
साध्वी शशिकला, साध्वी उज्ज्वलयशा
साध्वी चिन्मययशा
मन में दृढ़ता पक्की धार, अंतिम पचख्यो है संथार।
भैक्षव शासन पे थे कलश चढ़ायो म्हारा सतिवर।
याद घणो आवोला, भूला ही किया जावोला॥ध्रुव॥
जीव चौरासी लाख खमाना, भावास्यूं निर्मल बन जाना।
आत्म आराधक रो सांचा पथ पाना म्हारां सतिवर॥1॥
सुरां वीरां रो ओ पंथ, ईं पर चाल्या साचा संत।
साची काया पे कुलाड़ी, वाहि थे तो म्हारा सतिवर॥2॥
भावा री क्षेणी हो चढ़वी, जाओ क्षण-क्षण आगे बढ़ती।
सारो आत्मा रा कारज, थे तो म्हारा सतिवर॥3॥
मन में समता धार्या साची, आत्म रो कारज सर जासी।
तोड़ो कर्मां री बेड़ी ने तड़तड़, थे तो म्हारा सतिवर॥4॥
शशिकला सम साधना, अनशन री आराधना।
अंतिम जीवन रो ओ सार निकाल्यो, थे तो सतिवर॥5॥
लय : याद घणां आवोला---
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अर्हम्
शासनश्री साध्वी सोमलता
श्री जयप्रभाजी जय हो।
तिविहार अनशन स्वीकार्यो नूतन सूर्य उदय हो॥ध्रुव0॥
डूंगरगढ़ रो चोरड़िया कुल गण में नाम कमायो।
चार पुत्रियां एक सुपौत्री संयम पथ अपनायो।
विजयश्री जी के चरणों में जय रो भाग्योदय हो॥
रतनश्री जयप्रभा बण्या दोनूं भगिनी अगवानी।
जठै पधार्या बठै बढ़ाई शासन री पुनवानी।
कलाकुशल व्यवहारकुशल बण कर्यो सुयश संचय हो॥
थोड़ा दिवस हिसार शहर में साथ रह्या जद जाण्यो।
हैं आचार विचार निर्मला शांत स्वभाव पिछाण्यो।
स्वस्थ शरीर काम री स्फूर्ति मधुरी जीवन लय हो॥
रोग अचानक कर्यो अटेक नहीं कोई औषध लागी।
गहरो चिंतन मंथन कर तनडै़ री ममता त्यागी।
जबरदस्त हिम्मत रो सतिवर दियो आप परिचय हो॥
शासनश्रीजी शासनश्री ने पचक्खायो संथारो।
शशि शीतल कांता रोहितजी लाभ लेवे सेवा रो।
छोटा है मंदारयशाजी समझ्यो मूल्य समय हो॥
करां कामना शासनश्री जी लक्षित मंजिल पावैं।
भारत री रजधानी में अभिनव इतिहास बणावै।
सोमलता राकेश कुमारी गावै गीत उभय हो॥
श्री जयप्रभा जय हो---॥
लय : संयममय जीवन हो---
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अर्हम्
साध्वी लब्धिश्री
दीपै संथारो।
भावना सति जयप्रभा जी री आज हुई साकार॥
सौभागी गुरु तुलसी स्यूं अणमोलो संयम पायो।
डूंगरगढ़ चोरड़िया कुल रो जस झंडो फहरायो।
परिकर भागी संघ में भतीजी अरु भगिनी चार॥
चढ़ता परिणामां स्यूं पचख्यो हिम्मत किन्हीं भारी।
काया री ममता छोड़ी नै आत्मा स्यूं इकतारी।
मंगल बेला अनशनरी देवां बधाई सौ-सौ बार॥
विजयश्री जी रै तन रो कपड़ो बणकै रह्या सदा ही।
विनय, वत्सलता, मिलनसारिता पाई पग-पग वाहवाही।
गण अनुरक्ति, गुरुभक्ति, चिंतन है स्वस्थ उदार॥
असातवेदनीय उदियायो तन पर चोट करारी।
रै वे बढ़ती चढ़ती सावां री श्रेणी जयकारी।
अनशन री पावन नौका स्यूं कर धो खेवो पार॥
साध्वी रतनश्रीजी, शशिरेखाजी, शीतल साझ सुखकारी।
कांतप्रभा, रोहित, मंदार सब सतियां साताकारी।
भैक्षवगण में महाश्रमण महाश्रमणी कृपा अनपार॥
(ग्यारह सतियां से सुयोग रोहिणी (दिल्ली) बण्यो गुलजार।)
लय : चिरमी---
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अर्हम्
साध्वी मंजुलता
अनशन री ज्योति जगाई रे।
सौ-सौ साधुवाद।
भव नैय्या पार लगाई रे॥
चौरड़िया कुल में जनम्या।
तुलसी चरणां संयम रमग्या।
जीवन ने चमकायो रे॥1॥
बहिना रो योग मिल्यो है।
भतीजी संयोग खिल्यो है।
अनशन परिमल महकाई रे॥2॥
अद्भुत कार्य कुशलता थांरी।
सेवा भावना नजर निहारी।
प्रवचन शैली मनहारी रे॥3॥
शासनश्री जयप्रभा जी
जीती जीवन री बाजी।
थे मृत्यु नै ललकारी रे॥4॥
शशी शीतल कांतप्रभा जी।
रोहित मंदार यशा जी।
सहयोग मिल्यो सुखकारी रे॥4॥
अनशन झूल में झूल्या।
तन मन री ममता भूल्या।
बाजी यश री शहनाई रे॥5॥
तेरापंथ शासन पायो।
है महाश्रमण रो सायो।
अनुमोदन गीत सुणायो रे॥6॥
बारह बरसा तक पाई।
ममता वत्सलता सवाई।
है मंजुलता आभारी रे॥7॥
लय : कैसी वह कोमल काया रे---
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अर्हम्
साध्वी संयमप्रभा
संथारे की सुरभि फैली, पुलकित दशों दिशाएँ।
भैक्षव-गण तुम्हें बधाएँ॥
‘शासनश्री’ श्री जयप्रभाजी, शासन का मान बढ़ाए॥ध्रुव॥
गुरु तुलसी की आज्ञा से, ‘गिरिगढ़’ में संयम पाया।
वीतराग बन जाऊँ मैं, ऐसा संकल्प सजाया।
सहज सजगता, ध्यानमग्न, कष्टों में नहीं घबराए॥1॥
शासन दृढ़ता, सजग धैर्यता, निर्मलता, वत्सलता।
करुणामूर्त, पापभीरूता, अद्भुत पाई समता।
सौ-सौ नमन हमारा तुमको, मुक्ति-सदन चढ़ जाए॥2॥
आत्मा भिन्न, शरीर भिन्न है, यही मंत्र अपनाया।
कैसे टूटे भव-भव बंधन, सही राज है पाया।
ली संयम पतवार हाथ में, भव-सागर तर जाए॥3॥
संलेखन कर खुशी-2, कुल पर कलश चढ़ाया।
बड़ी भगिनी रत्नश्रीजी, संथारा पचखाया।
मिली साध्वियाँ सहज सुखद, जीवन बगिया खिल जाए॥4॥
तेरापंथ सा धर्मसंघ, सौभाग्यशाली पाता।
महाश्रमण की आर्षवाणी से, चित्त निर्मल बन जाता।
‘संयम’ समता सुर-सरिता में, नित उठ स्नान कराए॥5॥
लय : यह भारत देश हमारा---
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अर्हम्
साध्वी डॉ0 परमयशा, साध्वी धर्मयशा
नये सृजन की नई प्रभाती नया सवेरा लाहां।
संथारा संलेखना से नव इतिहास रचाएं।
ॐ णमो अरहंताणं, ॐ णमो श्री सिद्धाणं॥
शासनश्री जी जयप्रभजी जीवन धन्य बनाएं।
हार्दिक समता संयम से तप त्यौहार मनाएं।
शत-शत वंदन अभिनंदन नव जागृति पाठ पढ़ाएं।
ॐ णमो आयरियाणं, ॐ णमो उवज्सायाणं॥
जिनशासन के महायान से अजर अमर पद पाएं।
भिक्षु गण के नीलांबर में नव पद्चि बनाएं।
पंचाचार के वैभव से श्री संपन्न है कहलाएं।
ॐ णमो लोह सव्व साहूणं----॥
जीवन की सुंदर पोथी में नवपद पावन बसता।
सांस-सांस में रोम-रोम में भिक्षु बाबा रहता।
तन में शासन मन में शासन साध्य शिखर चढ़ाएं।
एसो पंच णमोक्कारो---॥
देश प्रदेशों की यात्रा से नवोन्मेष सजाएं।
प्रवचनशैली अद्भुत पावन जन-जन के मनभाएं।
महावीर की जिनवाणी से श्री सुषमा बढ़ाएं।
सव्व पाव पणासणो----॥
भगिनी साध्वी ने गुरुकृपा से स्वर्णिम अवसर पाया।
शशिरेखाजी आदि ने प्रज्ञा का दीप जलाया।
संस्कारों की छत्रछांह में गण गुलशन खिलाएं।
मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं, हवर मंगलम्॥
लय : माइन-माइन----
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अर्हम्
साध्वी संयमलता
अनशन री अलख जगाई, नश्वर देही थे सजाई।
दीपै है थांरी अनशन साधना हो सतिवर मुक्ति पथ री आ ही आराधना॥
भाग्यशाली श्रीडूंगरगढ़ री चोरड़िया परिवार जी-2
चार-चार बहनां भतीजी शसन में संयम धार जी-2
कुल रो थे नाम दीपायो, मन रो संकल्प जगायो, हुई अनशन री पूरी भावना॥
कार्यकुशलता मधुरभाषिता और व्यवहार विनय कौशल-2
गुरुभक्ति गण अनुरक्ति आचारनिष्ठ संस्कार विमल-2
संयम में सहज सजता, त्यागी थे तन री ममता, खूब बढ़ी है संघ प्रभावना॥
गुरु तुलसी कर कमला संयम महाश्रमण युग संथारो-2
आत्मा भिन्न शरीर भिन्न अजपाजप मंत्र बणे थारो-2
ऊँची भावा री श्रेणी, जीवन नैया ने खेणी, वरज्यो मंजिल म्हां सब री कामना॥
भगिनी द्वय आदि अनेक सतियां से शुभ संयोग मिल्यो-2
कर दृष्टि आराधन शशि शीतल कांता मंदार खिल्यो-2
अनशन में साज दिरायो, पूरो कर्तव्य निभायो, धन-2 है जागृत थांरी चेतना॥
लय : प्रज्ञा के दीप जलेंगे---