श्रमण संस्कृति के अनमोल रत्न थे - आचार्य कालूगणी

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श्रमण संस्कृति के अनमोल रत्न थे - आचार्य कालूगणी

डीडवाना
श्रमण संस्कृति के अनमोल रत्न थे - आचार्य कालूगणी। कालूगणी श्रमशील, अप्रमत्त और समत्वशील साधक थे। उन्होंने तेरापंथ धर्मसंघ को गुरुदेव तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ के रूप में दो ऐसे नर-रत्न दिए जिन्होंने तेरापंथ को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान दी। आचार्य तुलसी ने आज के दिन पारमार्थिक शिक्षण संस्था एवं अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात कर महनीय कार्य किया। नैतिकता व चारित्रिक उत्थान के लिए अणुव्रत आचार संहिता मानव जाति के हित में सर्वश्रेष्ठ अवदान कहा जा सकता है। ये विचार जैन भवन में तेरापंथ के अष्टमाचार्य कालूगणी के जन्म दिवस पर मुनि चैतन्य कुमार जी ‘अमन’ ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्‍त किए। मुनि चैतन्य कुमार जी ने कहा कि आचार्यश्री कालूगणी एक महान गुरु थे। गुरु वह होता है जो अज्ञान के अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश प्रदान करते हैं। गुरु की महत्ता न केवल जैन धर्म अपितु सभी समाज में रही है। आज हम कालूगणी के जन्मदिन पर अपनी श्रद्धा समर्पित करते हुए अपनी संयम साधना के प्रति अप्रमत्त रहने की कामना करते हैं। इस अवसर पर मुनि सुबोध कुमार जी ने भक्‍तामर का पाठ करवाया। तेरापंथी सभा से सुरेश चोपड़ा, देवचंद घोड़ावत, सम्राट जैन आदि उपस्थित थे।