यादें... शासनमाता की - (10)

यादें... शासनमाता की - (10)

15 मार्च, 2022, प्रातः करीब 7 बजे साध्वीप्रमुखाश्री के कक्ष में परमपूज्य का आगमन एवं शासनमाता को विधिवत वंदना। तदुपरांत।
साध्वीप्रमुखाश्री: गुरुदेव रोज मुझ पर कृपा करवा रहे हैं। बस इतनी कृपा और करवा दें-आप नीचे नहीं विराजें।
आचार्यप्रवर: (थोड़ा मुस्कराते हुए) कैसे हैं?
साध्वी सुमतिप्रभा: गला सूख रहा है।
आचार्यप्रवर: अब पानी पिला दिया क्या?
साध्वी सुमतिप्रभा: तहत् डॉ0 नवीन संचेती ने बताया कि ऑक्सीजन की हवा से होंठ सूखते हैं।
आचार्यप्रवर: पानी के साथ और कुछ दिया क्या?
साध्वी सुमतिप्रभा: थोड़ी सी उकाली दी है।
आचार्यप्रवर ने फिर अपने आगमन के संदर्भ में भाषा बनायी-
हम प्रातः सूर्योदय के बाद यथाशीघ्र अनुकंपा भवन में आ जाएँ और यहाँ से अपने कक्ष में चले जाएँ। फिर 7 बजे के आसपास जैसे भी सुविधा हो, साध्वीप्रमुखाश्री के पास आ जाएँ। थोड़ी सी देर ठहरकर वापस हम अपने कमरे में चले जाएँ। सूर्योदय के बाद हम प्रथम बार अधिक समय न लगाकर यहाँ से रवाना हो जाएँ। बाकी मौके पर जैसी अपेक्षा लगे, वैसा हो सकता है। फिर हम लगभग 9ः15 पर साध्वीप्रमुखाश्री के पास आ जाएँ। उसके बाद अंदाज 9ः45 के आसपास तक साध्वीप्रमुखाश्री के पास रहकर वापस यहाँ से रवाना हो जाएँ।
साध्वीप्रमुखाश्री: गुरुदेव बहुत कृपा करवा रहे हैं। बस एक कृपा और करवाएँ-नीचे विराजें नहीं।
साध्वी सुमतिप्रभा: ये अर्ज तो हम सब कर रहे हैं।
आचार्यप्रवर: (पिछली बात को जारी रखते हुए) दूसरा टाइम अपना 9ः15 वाला, तीसरा समय मोटामोटी 3ः30-4ः00 बजे तक। चौथा समय मान लें 5ः30-6ः00 बजे लगभग। बीच में जब कभी हमारी इच्छा हो जाए या साध्वीप्रमुखाश्री हमें बुला लें, हमें याद कर लें कभी भी संभवतया साध्वीप्रमुखाश्री के पास आ सकते हैं। किंचित संशोधन के साथ ये व्यवस्था रख रहे हैं। (फिर साध्वियों द्वारा वंदना का स्थान, समय भी तय करवाया)।
आचार्यप्रवर: (साध्वी कल्पलताजी से) वो होम्योपैथिक दवाई चल रही है?
साध्वी कल्पलता: तहत्।
साध्वीप्रमुखाश्री: कृपा कराई, माइतपणा करवाया।
करीब 9ः20 बजे-
आचार्यप्रवर: थोड़ा स्वाध्याय करें? कैसे है?
साध्वी सुमतिप्रभा: थोड़ी श्वास में तकलीफ है।
आचार्यप्रवर: अच्छा, आज थोड़ी ज्यादा है।
साध्वी सुमतिप्रभा: तहत् अभी थोड़ा सा बिठाया पानी के लिए मगर दो घूँट ही ले सकें।
आचार्यप्रवर: और कोई उपाय या कुछ करना?
साध्वी सुमतिप्रभा: अभी तो एक्स-रे होगा। उसके बाद ही पता चलेगा कि पानी निकालना या नहीं।
आचार्यप्रवर: अभी भी श्वास लेना कठिन लग रहा है। एक्स-रे में तो समय लग जाएगा।
साध्वीप्रमुखाश्री: एक्स-रे करने से क्या होगा? पता चलने से भी क्या होगा?
आचार्यप्रवर: मूल तो अभी अल्ट्रासाउंड करने से पता चले लेकिन वो नहीं कर सकते तो एक्स-रे से पता चल जाएगा कि पानी कितना कहाँ है? निकलना जरूरी लगेगा तो फिर डॉ0 निकालेंगे।
साध्वीप्रमुखाश्री: कृपा करवाई।
दोपहर करीब 3ः30 बजे
आचार्यप्रवर: कैसे हैं?
साध्वी सुमतिप्रभा: साँस थोड़ा भारी तो है।
आचार्यप्रवर: (साध्वी कल्पलताजी से) वो रिपोर्ट कैसे आई?
साध्वी कल्पलता: रिपोर्ट डॉ0 ने ऐसा बताया कि आज पानी नहीं निकालेंगे।
आचार्यप्रवर: अगर बोलें तो अरुचिकर तो नहीं लगेगा?
आचार्यप्रवर ने आराधना की छठी ढाल का पाठ शुरू करवाया। दुष्कृत की निद्रा तथा सुकृत की प्रशंसा-जीव अनंत काल से संसार में है। कोई जीव पाप करता है तो उसका फल भी भोगना पड़ता है। पाप हो गए तो हो गए, उनकी निंदा करने से उन पर चोट लगती है।
दसवेंआलियं में बार-बार ‘पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि---’ पाठ आता है।
आराधना की छठी ढाल में बताया गया कि भ्रमण करते-करते जीव ने मिथ्यात्व को भी धारण कर लिया हो, ऊँची सरधा (उल्टी श्रद्धा) ली हो तो निंदा करता हूँ। मैंने तो ली जो ली, दूसरों को भी उल्टी श्रद्धा करवाई तो उसकी भी निंदा करता हूँ। 5 आश्रवों का सेवन किया हो तो उनकी भी निंदा करता हूँ। हिंसा, झूठ, चोरी आदि आश्रव हैं। मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय आदि पाँचों का सेवन किया हो, जो दुर्गति के कारण हैं, उनकी भी निंदा करता हूँ। वीतराग का मार्ग ढका हो, कुमार्ग का मार्ग खोला हो तो सरलतापूर्वक उनकी भी निंदा करता हूँ। कोई परिवार का दोषण किया-कराया हो जैसे आश्रम आदि में खाना बाँट दिया हो आदि तो उसकी भी निंदा करता हूँ। तीन योगों से जो पाप किए हों तो उन सबकी मैं निंदा करता हूँ। दृष्कृत की निंदा के साथ सुकृत की प्रशंसा भी करनी चाहिए। ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की अनुमोदना, अ0सि0आ0उ0सा0 को नमन की अनुमोदना, सामायिक आदि छहों आवश्यक तथा सूत्रों की अनुमोदना, 5 समिति, 3 गुप्ति, 5 महाव्रतों की अच्छी तरह आराधना की हो तो उनकी अनुमोदना एवं दान, शील, तप, भाव का सेवन किया हो तो उनकी भी अनुमोदना करता हूँ।
साध्वीप्रमुखाश्री: कृपा करवाई, माइतपणा करवाया, शुभ दृष्टि करवाई। गुरुदेव विराजे हुए हैं, मैं सोयी हुई हूँ।
आचार्यप्रवर: कामना कर रहे हैं कि आप भी विराजें, स्वस्थ होकर विराजें, यही कामना करते हैं।
आचार्यप्रवर: आहार में क्या लिया? (साध्वियों से)
साध्वी कल्पलता: जो भी लेते हैं, बहुत थोड़ा ही लेते हैं।
आचार्यप्रवर: जो भी जितनी भी रुचि हो, गवेषणा करके ला दें।
साध्वीप्रमुखाश्री: गुरुदेव के प्रताप से कमी किसी की भी नहीं है।
फिर मंगलपाठ आदि का उच्चारण कर आचार्यप्रवर अपने प्रवास स्थल पर पधार गए।

(क्रमशः)