संयम की ताकत अद्भुत है
साध्वी डॉ. गवेषणाश्री जी ने कहा- भारतीय संस्कृति में संयम का अपना महत्व है। आज भी इस संस्कृति का सम्मान है। जैन, बौद्ध और वैदिक तीनों परंपरा में संयम परम्परा का महत्व है। संयम की ताकत अद्भुत है, इसके आधार पर संपूर्ण संसार टिका हुआ है। यह एक पवित्र संस्कार है। साध्वी मयंकप्रभा जी ने कहा- जैसे हिटलर और ईसा, राम और रावण, दिन एवं रात, स्फटिक और कांच में अंतर है, वैसे ही संयम और असंयम, योग एवं भोग में अंतर है। संयम का तात्पर्य है - पापकर्म से उपरत होना।
साध्वी दक्षप्रभा जी ने सुमधुर गीतिका प्रस्तुत की। कार्यशाला के अन्तर्गत सचित्त-अचित्त, सूझता- असूझता, पाडिहारिय, अहिंसा, दान आदि अनेक बातों की छोटी-छोटी जानकारियां साध्वीश्री द्वारा समझाई गई। कार्यशाला में लगभग 50 बच्चों ने भाग लिया। कार्यशाला की सुव्यवस्था में इन्द्रा रांका, नीलम आच्छा व कविता मेडतवाल की सक्रिय भूमिका रही। साधु जीवन के उपकरणों से मेमोरी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें प्रथम कुलदीप रांका, तन्मय जैन, हर्षित जैन द्वितीय तथा तृतीय दृष्टि बैद रही। धन्यवाद ज्ञापन प्रशिक्षिका नीलम आच्छा ने दिया।