धर्म स्थान के साथ कर्म स्थान में भी हो धर्म : आचार्यश्री महाश्रमण
धर्म धुरन्धर आचार्यश्री महाश्रमणजी सूरजवाड़ी स्थित आदिनाथ जैन उपाश्रय से लगभग 11 किलोमीटर विहार कर जूना कटारिया स्थित जैन तीर्थ में पधारे। तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें पट्टधर का ग्यारह वर्षों बाद पुनः कच्छ पदार्पण के अवसर पर कटारिया जैन तीर्थ में कच्छ प्रवेश स्वागत समारोह का भव्य आयोजन किया गया। मंगल देशना प्रदान कराते हुए आचार्यवर ने फरमाया कि शास्त्र में कहा गया है धर्म उत्कृष्ट मंगल है। आदमी अपने जीवन में मंगल की कामना करता है। स्वयं का भी वह मंगल चाहता है और दूसरों का भी मंगल चाहता है। मंगल के लिए प्रयास भी किया जाता है। प्रश्न होता है कि मंगल के लिए क्या करना चाहिए? संसार में मंगल के लिए अच्छा मुहुर्त देखा जाता है। कुछ पदार्थ भी मंगल के लिए दिए जाते हैं। परन्तु सबसे बड़ा मंगल धर्म है। जिसके साथ धर्म है, उसके पास मानो परम मंगल है। प्रश्न होता है कि कौनसा धर्म मंगल है? शास्त्रकार ने बढ़िया बात बता दी कि अहिंसा, संयम और तप धर्म है और इनकी जो साधना करेगा उसके पास मंगल है। आध्यात्मिक धर्म सर्वरूपेण इन तीन में समाविष्ट हो गया है।
आचार्यश्री ने बतलाया कि अहिंसा धर्म व्यापक धर्म है। संयम सबके लिए कल्याणकारी है। तपस्या अच्छी भावना से कोई करे तो उसका हित हो सकता है। अहिंसा भीतरी सुख देने वाली है, हिंसा दुःख का कारण है। अणुव्रत का कहना है कि इन्सान अच्छा इन्सान बने। चाहे वो किसी भी धर्म-जाति वाला हो। अहिंसा, संयम, नैतिकता को मानने वाला अणुव्रतों को स्वीकार कर सकता है।आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने अहिंसा यात्रा के अन्तर्गत अहिंसक चेतना का जागरण और नैतिक मूल्यों के विकास की बातें सामने लाई थी। हम सबको आत्म तुल्य समझें और अहिंसा के पथ पर चलने का प्रयास करें।
आचार्यश्री ने आगे बताया कि अहिंसा के साथ संयम जुड़ा हुआ है। मन, वचन और काया पर संयम रखें। आदमी झूठ, कटु और फालतु न बोले, सोचकर बोले। मन में किसी के प्रति बुरा विचार न आए। अच्छा सोचो, अच्छा बोलो, अच्छा देखो, अच्छा सुनो और अच्छा करो, इच्छा भी करो तो अच्छी इच्छा करो। धर्म की चर्चा करते हुए पूज्य प्रवर ने आगे फरमाया कि संयम के साथ तप भी समाविष्ट हो जाते हैं। तपस्या के अनेक प्रकार हैं, उससे निर्जरा होती है। अहिंसा, संयम और तप यह व्यापक धर्म है, मानो सम्प्रदायातीत धर्म है। उपासना करना भी धर्म है पर आचरणों में भी धर्म होना चाहिए। धर्म स्थान में तो धर्म होता ही है पर कर्म स्थान में भी धर्म हो। धर्म तो आदमी के साथ हर जगह रहना चाहिए। जीवन में अहिंसा, नैतिकता है तो आत्मा का कल्याण हो सकता है। जिसका मन हमेशा धर्म में रमा रहता है, देवता भी उसको नमस्कार करते हैं। अहिंसा हमारी चेतना में, मन, वाणी और व्यवहार में रहे यह काम्य है। कच्छ में हमारा प्रवेश हो गया है। कच्छ में भी हमारे प्रवास में धार्मिक लाभ उठाने का प्रयास हो। खूब आध्यात्मिकता धार्मिकता रहे।
पूज्यवर के कच्छ प्रवेश स्वागत समारोह के अवसर पर भुज मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति अध्यक्ष कीर्ति भाई संघवी, कच्छ पंचायत सभा की ओर से जनकसिंह जाड़ेजा, कच्छ जिला पंचायत प्रमुख जनक सिंह जाड़ेजा, पूर्व विधायक पंकज भाई मेहता, गुजरात भाजपा सेल संयोजक हितेश भाई खांडोल, कटारिया जैन तीर्थ के मुख्य ट्रस्टी कमल भाई मेहता, स्वागताध्यक्ष नरेंद्र भाई मेहता, सभा अध्यक्ष बाड़ी भाई, तेयुप अध्यक्ष महेश भाई, महिला मंडल अध्यक्षा मंजू संघवी, महिला मंडल से अमिता मेहता, अणुव्रत समिति से महेश प्रभुभाई मेहता, तेरापंथ सभा अध्यक्ष अशोक संघवी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। आराध्य का अभिनंदन करते हुए कच्छ क्षेत्र की साध्वी हेमलता जी ने वक्तव्य दिया एवं अन्य साध्वियों ने सामूहिक गीत का संगान किया। इस अवसर पर ज्ञानशाला गांधीधाम, भुज ज्ञानशाला, कन्या मंडल की सदस्याओं ने पृथक–पृथक प्रस्तुति दी। भुज की बेटियों ने भी अपनी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।