हर प्रवृत्ति में हो संयम की सुवास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

हर प्रवृत्ति में हो संयम की सुवास : आचार्यश्री महाश्रमण

मकर सक्रांति का दिन, सूर्य का उत्तरायण की ओर गमन प्रारंभ हुआ। जिन शासन के तेजस्वी महासूर्य टाइल्स व दीवार घड़ियों के मुख्य उत्पादन क्षेत्र - मोरबी में पधारे। मोरबी में पूज्य डालगणी ने मुनि अवस्था में चतुर्मास किए थे। मोरबी के नोबेल किड्स स्कूल में महामनीषी ने अमृतदेशना देते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में सुख और दुःख का एक युगल है। जीवन में कभी सुख मिल जाता है, कभी दुःख भी मिल सकता है। कभी संपदा तो कभी आपदा भी आ सकती है। मनुष्य दुःख मुक्त रहना चाहता है। साधु भी सर्व दुःख मुक्ति - मोक्ष की प्राप्ति हो, यह चाहता है। संपदा की खुशी भी दुःख का कारण बन सकती है।
प्रश्न है कि दुःख से छुटकारा कैसे मिले? किसी भी प्रकार का दुःख न हो। सर्वथा दुःख मुक्ति की अवस्था कैसे मिले? जीवन में मानसिक पीड़ा न हो। शास्त्र में इसका उपाय बताया गया है- पुरुष! अपनी आत्मा का अभिनिग्रह कर। तुम अपने आप का अभिनिग्रह-संयम करो। स्वयं पर स्वयं का नियंत्रण कर लो तो दुःख से मुक्त रहोगे। जिसके पास क्षमा रूपी खड़ग है, उसका दुर्जन क्या करेगा? घास-फूस के ढेर में अग्नि पड़ जाए तो ज्वाला प्रज्ज्वलित हो सकती है, अतृण पर अग्नि कैसे प्रज्ज्वलित होगी? असंयम से दुःख हो सकता है। प्रयास हो कि हर प्रवृत्ति में संयम रहे। मन, वाणी और काया का भी संयम रहे। क्रोध-आक्रोश न करें। खुद भला तो जग भला। मनुष्य को स्वानुशासन रखने का प्रयास करना चाहिए। इंद्रियों का असंयम न करें। संयम सुख का कारण है। साधु तो हर प्रवृत्ति में संयम के प्रति जागरूक रहे। संयम रखेंगे तो पाप कर्म से बच सकते हैं। अणुव्रत का प्राण तत्व है- संयम: ! खलु जीवनम्। दूसरों पर हम संयम-अनुशासन नहीं थोप सकते। अपना स्वयं का संयम करो तो बचाव हो सकता है। खुद को बदलें, दूसरों को सब जगह नहीं बदल सकते। किसी के साथ धोखाधड़ी या झूठ न बोलें।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज हमारा मोरबी में आना हुआ है। गुरुदेव तुलसी कच्छ से लौटते समय मोरबी पधारे थे और मेरा कच्छ की ओर जाते समय में आना हुआ है। यहां की जनता में खूब धार्मिकता-आध्यात्मिकता आदि के अच्छे संस्कार रहें, मंगलकामना। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने कहा कि मकर सक्रांति को शुभ माना गया है। सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर प्रस्थान कर रहा है। हमें आत्मा का आरोहण करना है। अच्छा मार्गदर्शक मिल जाता है, गंतव्य तय होता है तो हम गंतव्य तक पहुंच सकते हैं। हमें सही मार्ग को स्वीकार करना है ताकि समय पर हम गंतव्य तक पहुंच जाएँ। सही मार्ग से दुःखों से मुक्त हो सकते हैं। पूज्यवर के स्वागत में मोरबी की ओर से चेतन भंसाली, बालिका चारवी भंसाली ने अपनी भावना व्यक्त की। नोबेल स्कूल के कनकभाई सेठ ने भी आचार्यश्री का हार्दिक स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।