अहिंसा के सतपथ पर चलने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अहिंसा के सतपथ पर चलने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

जिन शासन के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी टंकारा से लगभग दस किलोमीटर का विहार कर वीरपर स्थित श्री चंपापुरी तीर्थ में पधारे। पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए युवा मनीषी ने फरमाया कि नौ तत्वों में पांचवा तत्व आश्रव है। पुण्य अथवा पाप के रूप में आत्मा के जितने भी कर्म लगते हैं, उसमें आश्रव की उत्तरदायित्वता संपूर्णतया होती है। पुण्य और पाप दोनों रूपों में कर्मों का ग्रहण होता है। जो कर्म बंधते हैं, उनका यथा विधि फल भी प्राणी को मिलता है।
पुण्य का फल मिलता है तो पाप का फल भी मिलता है। पिछले किस कर्म का फल कब मिलेगा, यह कहा नहीं जा सकता। कर्मवाद का सिद्धांत है- जैसी करनी, वैसी भरनी। आदमी को पाप कर्म से, अशुभ कार्य से ज्यादा से ज्यादा बचना चाहिए और आत्म शुद्धि के लिए अच्छी प्रवृत्ति करनी चाहिए। कर्म किसी को छोड़ता नहीं है। किए हुए कर्मों को वेदने अथवा तपस्या के माध्यम से निर्जरा करने से कर्म कटते हैं। पुण्य कर्म का संचय होता है और उसका प्रभाव होता है तो एक सामान्य परिवार का व्यक्ति देश का राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी बन सकता है।
हम कर्मों पर ध्यान दें, हमारे निंदनीय पाप कर्म न बंधें। हम अहिंसा के सतपथ पर चलने का, धर्म के मार्ग पर चलने का प्रयास करें। आज यहां हम भगवान वासुपूज्य के स्थान पर आए हैं। पूज्य प्रवर ने जयाचार्य द्वारा रचित 'वासुपूज्य स्तवन' का आंशिक संगान करवाया। पूज्यवर के स्वागत में चंपापुर तीर्थ की ट्रस्टी दीपाबेन शाह ने भावाभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।