मर्यादित यह संघ महान

मर्यादित यह संघ महान

मर्यादा की गौरव गाथा, आज सुनाएं हम मिलकर।
'मेरं शरणं गच्छामि' का मंत्र बड़ा ही क्षेमंकर।।
1. आर्य भिक्षु की लोह लेखनी से सज्ज्ति यह संघ महान्।
मर्यादित अनुशासित गण यह, जिनशासन की उज्ज्वल शान।
मर्यादा को शीश झुकाएं, मर्यादा ही श्रेयस्कर।।
2. जयाचार्य को नमन हमारा, दिया संघ को नव उपहार।
मर्यादा और अनुशासन है, तेरापंथ के पहरेदार।
मर्यादोत्सव जयाचार्य के, नव चिन्तन का हस्ताक्षर।।
3. तेरापंथ के भव्य भाल पर, मर्यादा का सुन्दर ताज।
जन-जन के मुख पर अनुगुंजित, मर्यादा का मधुरिम साज।
महाकुंभ में अवगाहन कर, बन जाए हम अजर-अमर।।
4. मर्यादा के महादेव की, 'भुज' में सन्निधि वरदाई।
तेरापंथ की गली-गली में, गूंज रही यश शहनाई।
'भाग्योदय' से भुज ने पाया, मर्यादोत्सव का अवसर।।
तर्ज - कलियुग बैठा मार कुंडली