सेवा श्रद्धा चन्दन है

सेवा श्रद्धा चन्दन है

सेवा श्रद्धा चन्दन है, भिक्षु गण नन्दनवन है।
भिक्षु हो, भिक्षु आ, महाश्रमण को वंदन है।।
1. सेवा की सौरभ सुषमा, नहीं जिसकी कोई उपमा।
दसों दिशाएं हरसाए, युग आस्था में रम जाएंगे।।
2. फूल-फूल में सेवाभाव, आकर्षण का दिव्य प्रभाव।
गीत प्रीत के गाएंगे, नया सवेरा लाएंगे।।
3. महानिर्जरा पर्यवसान, सेवा है पुण्यों की खान।
आत्मशुद्धि का पैमाना, नहीं कोई है अनजाना।।
4. तीर्थकर का गोत्र बंधे, सेवा शुद्ध भाव सधे।
महावीर की वाणी है, भव्यों की सहनाणी है।।
5. नन्दीसेन मुनि ज्यों सेवा, जो करता खाता मेवा।
सेवा गण का प्राण है, संगठन महान है।।
6. हर वर्ष हो नियुक्ति, सेवा की सुदृढ़ सूक्ति।
सस्मित शीश झुकाते हैं, गुरूवर जब फरमाते हैं।
तर्ज - प्रज्ञा के दीप जलेंगे