दुर्लभ मानव जीवन में न हो इंद्रियों का दुरुपयोग : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

दुर्लभ मानव जीवन में न हो इंद्रियों का दुरुपयोग : आचार्यश्री महाश्रमण

जिन शासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘कच्छी पूज समवसरण’ में अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्रों में कल्याणकारी वाणी प्राप्त होती है। जैन ग्रंथों में उत्तराध्ययन एक प्रमुख आगम है। इसके 32वें अध्ययन में इंद्रियों और मन के बारे में एक विस्तृत विश्लेषण मिलता है। मनुष्य शरीर में पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ होती हैं और पाँच कर्मेन्द्रियाँ भी होती हैं। ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से हमें ज्ञान प्राप्त होता है और ये ज्ञानेन्द्रियाँ भोग में भी सहायक होती हैं।
श्रोत्र (कान) एक ज्ञानेन्द्रिय है, जिसके द्वारा हम सुनते हैं और सुनकर ज्ञान प्राप्त करते हैं। चक्षु (आँख) से हम देखते हैं और ज्ञान प्राप्त करते हैं। घ्राणेन्द्रिय (नाक) के द्वारा हम गंध ग्रहण करते हैं और गंध से संबंधित ज्ञान प्राप्त करते हैं। रसन (जीभ) के द्वारा हम स्वाद ग्रहण करते हैं और स्वाद की जानकारी प्राप्त करते हैं। स्पर्शेन्द्रिय (त्वचा) के माध्यम से हमें स्पर्श का अनुभव होता है, जिससे ठंडे-गर्म आदि स्पर्शों का बोध होता है।
बाह्य जगत का ज्ञान प्राप्त करना इंद्रियों का कार्य है। हमारे दो जगत होते हैं—बाह्य जगत और अंतर्जगत। भीतरी जगत के ज्ञान में भी इन्द्रियां सहायक बनती हैं, किन्तु भीतरी ज्ञान मूलतः चेतना से प्राप्त होता है। हमारे जीवन में दो मूल तत्व होते हैं—शरीर और आत्मा। संपूर्ण संसार भी दो तत्वों में ही समाहित है—चेतन और अचेतन।
आत्मा और शरीर का संयोग ही जीवन है। आत्मा और शरीर का वियोग मृत्यु है। जब यह वियोग सदा के लिए हो जाता है, तो वह मोक्ष कहलाता है। यही जीवन, मृत्यु और मोक्ष की परिभाषा है। जिस प्राणी के पास पाँचों इंद्रियाँ होती हैं, उसे विकसित प्राणी माना जा सकता है। मानव जीवन को दुर्लभ बताया गया है। इस दुर्लभ मानव जीवन का हमें सदुपयोग करना चाहिए क्योंकि यह शाश्वत नहीं है, अनिश्चित है।
हमारा जीवन अनित्य और अस्थायी है, तो इसमें ऐसा क्या किया जाए कि दुर्गति में न जाना पड़े? इसका उपाय यही है कि इंद्रियों का दुरुपयोग न करें। इनके विषयों में राग-द्वेष न करें। जब समता की साधना पुष्ट होती है, तो यह मानव जीवन को सफल बनाने का एक मार्ग बन सकता है।
शब्द तो कान का स्पर्श करता है, लेकिन दृश्य आँख का स्पर्श नहीं करता। श्रोत्र और चक्षु कर्मेन्द्रियाँ हैं, जबकि नाक, जीभ और त्वचा भोगेन्द्रियाँ कहलाती हैं। इन इंद्रियों में न समता भाव उत्पन्न होता है, न विकृति आती है। चेतना में जो राग-द्वेष की वृत्ति होती है, वही जब बढ़ती है, तो हम शब्द, रूप आदि में राग भी कर लेते हैं और कभी द्वेष भी करने लगते हैं। यदि हम राग-द्वेष से बचें, तो मानव जीवन को सफल बनाने का प्रयास किया जा सकता है।
गृहस्थ जीवन में भी आध्यात्मिकता और धर्म की साधना बनी रहनी चाहिए। जीवन में नैतिकता हो, नशा-मुक्त रहें, और सबके साथ सद्भावना रखें। हम लोग अपना सारा परिग्रह त्याग कर साधु बन चुके हैं। आप लोग भी परिग्रह की मर्यादा रखें। त्याग और विसर्जन की भावना अपनाएँ। जीवन सादगीपूर्ण रहे। त्याग, साधना और धर्म की उपयोगिता सदा बनी रहती है।
हमारी यह यात्रा धर्म और संयम की यात्रा है। भुज में हमारा आगमन हुआ है, और इसी प्रवास के साथ हमारे धर्मसंघ का एक महत्वपूर्ण उत्सव—मर्यादा महोत्सव—आयोजित होने जा रहा है। मर्यादा, विधान और अनुशासन के प्रति हमारी निष्ठा बनी रहे। मर्यादा सभी के लिए हितकारी और कल्याणकारी हो सकती है। हमें मर्यादा के प्रति सदैव जागरूक रहना चाहिए।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त मुख्यमुनिश्रीे महावीरकुमारजी ने समुपस्थित जनता को सम्बोधित करते हुए कहा - कच्छ की धरा के लोगों में धर्म और धर्म गुरुओं के प्रति आदर और सम्मान का भाव है। संस्कृत साहित्य में बताया गया कि वह व्यक्ति जिसका मुखारविंद प्रसन्नता का घर है, जिसके ह्रदय में दया का भाव है, जिसकी वाणी अमृत बरसाती है और जो परोपकार करते हैं ऐसे व्यक्ति सबके लिए आदरणीय और वंदनीय होते हैं। परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ऐसे महापुरुष हैं जो सबके लिए आदरणीय और वंदनीय हैं।
आचार्यश्री के नागरिक अभिनंदन समारोह के सन्दर्भ में कच्छ के जिला कलेक्टर अमित अरोड़ा ने अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि मैं पूरे जिले की ओर से आचार्यश्री का खूब-खूब स्वागत करता हूं। भुज की नगराध्यक्ष रश्मिबेन सोलंकी, भुज के विधायक केशु भाई पटेल, पूर्व विधायक पंकजभाई मेहता, गुजरात विधानसभा की पूर्व अध्यक्ष निमाबेन आचार्य, बुलियन मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष भद्रेश भाई दोसी व चेम्बर्स ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष अनिल भाई गौर ने आचार्य प्रवर के स्वागत में अपने उद्गार व्यक्त किए। उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों ने आचार्य प्रवर को भुज नगर की प्रतीकात्मक चाबी अर्पित की। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति ऐसी सूत्रत्रयी है, जिसके माध्यम से नगर में सर्वत्र सौहार्द रह सकता है। मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति के महामंत्री शांतिलाल जैन एवं प्रभुभाई मेहता ने अपने विचार व्यक्त किए।