
अहिंसा, संयम और तप की साधना से सुनिश्चित है कल्याण : आचार्यश्री महाश्रमण
तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास में गुजरात की धरा पर पहली बार हो रहे तेरापंथ के महाकुंभ - मर्यादा महोत्सव हेतु कच्छ के भुज नगर में तेरापंथ के महासूर्य, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का अपनी धवल सेना संग मर्यादित जुलुस के साथ इस पावन पदार्पण हुआ। लगभग 3.6 कि.मी. का विहार सम्पन्न कर पूज्य प्रवर भुज के श्री लालचंद थावर जैन महाजनवाड़ी में मर्यादा महोत्सव सहित 17 दिवसीय प्रवास हेतु पधारे।
कच्छी पूज समवसरण में मर्यादा पुरुष आचार्य प्रवर ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में मंगल की कामना की जाती है। लोग दूसरों के प्रति मंगल भावना व्यक्त करते हैं और स्वयं के मंगल की भी इच्छा रखते हैं। कार्य में निर्विघ्नता बनी रहे, कार्य सुचारू रूप से संपन्न हो जाए—यह स्वाभाविक आकांक्षा होती है। मंगल पाठ सुनने के पीछे भी मंगल की आकांक्षा हो सकती है। आचार्यों एवं चारित्रात्माओं द्वारा मंगल पाठ सुनाना और भी अधिक महत्वपूर्ण हो सकता है।
हर शुभ कार्य के लिए अच्छा मुहूर्त देखा जाता है, जिसमें मंगल भावना सन्निहित होती है। कई अन्य मंगलकारी पदार्थ भी होते हैं, लेकिन यह सभी बाहरी मंगल हैं। शास्त्रकारों ने धर्म को परम मंगल बताया है, क्योंकि धर्म ही ऐसा है जो हर समय, हर क्षण हमारे साथ रहता है। शास्त्रों में एक अद्भुत बात कही गई है कि जहाँ अहिंसा, संयम और तप है, वहीं धर्म का उत्कृष्ट मंगल विद्यमान है। जो व्यक्ति अहिंसा, संयम और तप की आराधना व साधना करेगा, उसका कल्याण सुनिश्चित है। यह एक असांप्रदायिक सत्य है, जिसे शास्त्रों ने प्रतिपादित किया है।
जिसका मन सदैव धर्म में रमा रहता है, उसे देव भी नमस्कार करते हैं। अच्छी बात का सभी जगह सम्मान होना चाहिए। हम भगवान महावीर के शासन से जुड़े जैन शासन में साधना कर रहे हैं। जैन शासन में अनेक परंपराएँ हैं। हम तेरापंथ धर्मसंघ में साधना कर रहे हैं, जिसके आद्य आचार्य, परम आराध्य आचार्य भिक्षु हुए हैं। वे तेरापंथ के जनक हैं। हमारे चतुर्थ आचार्य, श्रीमद् जयाचार्य हुए, जिन्होंने मर्यादा महोत्सव की परंपरा का सूत्रपात किया था। इसकी स्थापना 160 वर्ष पूर्व हुई थी।
हमारे सप्तम आचार्य, आचार्य डालगणी विलक्षण आचार्य हुए, जिन्हें हमारे पूर्वाचार्यों ने नहीं, बल्कि स्वयं धर्मसंघ ने आचार्य के रूप में स्वीकार किया था। मुनि जीवन में पूज्य डालगणी ने तीन बार कच्छ की यात्राएँ की थीं, वे 'कच्छी पूज' कहलाए। हमारे तृतीय आचार्य पूज्य रायचंद्रजी स्वामी, सर्वप्रथम कच्छ में पधारे थे।
आचार्यश्री तुलसी सन् 1967 में कच्छ पधारे थे, जबकि आचार्यश्री महाप्रज्ञजी कच्छ नहीं आ सके थे। आज हम विधिवत रूप से यहाँ प्रविष्ट हुए हैं। मर्यादा महोत्सव के संबंध में ही हमारा यह आगमन हुआ है। मर्यादाओं का सम्मान हमारे व्यक्तिगत जीवन, संगठन और राष्ट्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। जब तक मर्यादा में रहेंगे, तब तक व्यवस्था सुचारू बनी रहेगी, अनुशासन की परंपरा चलेगी और विकास की संभावनाएँ बनी रहेंगी। आदमी को अपनी मर्यादा में रहने का प्रयास करना चाहिए। मर्यादा के अतिक्रमण के प्रमाद से बचने का प्रयास करना चाहिए।
हमारे साथ साधु-साध्वियाँ, समणियाँ और मुमुक्षु बहनें भी हैं। हम अपने ढंग से धर्मसंघ में साधना करते रहें। हमें मर्यादा और अनुशासन का सम्मान करना चाहिए। विनय की भावना सदैव बनी रहनी चाहिए। गृहस्थों में भी मैत्री भावना हो और सभी समाजों में सौहार्द की भावना बनी रहे।
भुज प्रवेश के अवसर पर साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने कहा कि अनेक पदार्थ ठंडे हो सकते हैं, लेकिन सबसे ठंडी और शीतल वस्तु जिनवाणी होती है। अन्य पदार्थ बाह्य रूप से ठंडक पहुँचा सकते हैं, लेकिन जिनवाणी आंतरिक शीतलता प्रदान करती है। आचार्य प्रवर जिनवाणी के माध्यम से लोगों को आत्मिक शीतलता प्रदान करने के लिए भुज में पधारे हैं। आचार्यवर ने कच्छ पर जो करुणा बरसाई है, वह वास्तव में एक उदाहरण है।
मंगल प्रवचन के उपरान्त मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति-भुज के अध्यक्ष कीर्तिभाई संघवी, स्वागताध्यक्ष नरेन्द्रभाई मेहता, स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष वाणीभाई मेहता ने अपनी अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल, भुज ने स्वागत गीत का संगान किया। भुज ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति दी। भुज के सात संघों के सदस्यों ने एक साथ स्वागत गीत का संगान किया। सात संघ के प्रमुख स्मितभाई झवेरी ने अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए आचार्यश्री को अभिनंदन पत्र अर्पित किया। स्थानीय तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के अध्यक्ष स्नेह मेहता व मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति के वरिष्ठ उपाध्यक्ष चंदूभाई संघवी ने अपनी अभिव्यक्ति
दी। तेरापंथ कन्या मण्डल व तेरापंथ किशोर मण्डल ने संयुक्त रूप से अपनी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।