आचार्य महाश्रमण इंटरनेशनल स्कूल का उदयोत्सव

गुरुवाणी/ केन्द्र

आचार्य महाश्रमण इंटरनेशनल स्कूल का उदयोत्सव

महान यायावर आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भुज में 17 दिवसीय पावन प्रवास पूर्ण कर हरिपर में पदार्पण किया। पूज्य सन्निधि में महासभा के तत्वावधान में आचार्य महाश्रमण इंटरनेशनल स्कूल के उद्घाटन समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर परम पावन ने अपनी प्रेरणादायी वाणी में कहा कि एक सूक्ति है—पहले ज्ञान, फिर दया-आचरण। मनुष्य के लिए ज्ञान अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि ज्ञानपूर्वक आचरण किया जाए, तो वह सही दिशा में होता है। ज्ञान मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है—एक आध्यात्मिक ज्ञान और दूसरा लौकिक ज्ञान। आध्यात्मिक ज्ञान आत्मा-परमात्मा का बोध कराता है, जबकि लौकिक ज्ञान व्यवहारिक जीवन और विभिन्न भाषाओं एवं विधाओं का ज्ञान प्रदान करता है।
आध्यात्मिक ज्ञान हमें ग्रंथों और ऋषि-मुनियों के माध्यम से प्राप्त हो सकता है। यदि यह ज्ञान साधना और आत्मिक अनुसंधान से प्राप्त होने लगे, तो फिर कहना ही क्या! भगवान महावीर ने आत्म-साधना के द्वारा केवलज्ञान प्राप्त किया था। आध्यात्मिक ज्ञान को कुएं के जल के समान माना जाता है—जो गहरा, स्थिर और आत्मोत्थान करने वाला होता है, जबकि लौकिक ज्ञान कुंड के जल के समान सतही होता है। आज शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक विकास हुआ है। शैक्षणिक संस्थानों के माध्यम से पुस्तकों से ज्ञान प्राप्त किया जाता है। ऐसे संस्थान ज्ञान के केंद्र होते हैं।
गत वर्ष वाशी, मुंबई में मर्यादा महोत्सव की संपन्नता के बाद तेरापंथ विश्व भारती की स्थापना हुई थी, जो जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा ट्रस्ट का गरिमामय उपक्रम है। इस वर्ष मर्यादा महोत्सव भुज में संपन्न हुआ और इस बार भी वैसी ही पुनरावृत्ति सी हो गई। लायंस क्लब एक व्यापक संस्था है और तेरापंथी महासभा तेरापंथ समाज की प्रतिनिधि सभा के रूप में कार्य कर रही है। महासभा ने शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कार्य अपने हाथ में लिया है, जो तेरापंथ समाज में अभूतपूर्व योजना के रूप में देखा जा सकता है। पिछले कुछ वर्षों में महासभा निरंतर उत्थान कर रही है, उड़ान भर रही है। जीवन विज्ञान, शिक्षा के साथ-साथ संस्कारों का भी विषय है। शिक्षा के साथ संयम के संस्कार भी विद्यार्थियों में विकसित किए जाने चाहिए। महासभा को इस पर विशेष ध्यान देकर कार्य करना चाहिए। शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों में सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, नशामुक्ति, सेवा-भावना, सौहार्द और मैत्री की भावना विकसित होनी चाहिए। लौकिक ज्ञान के साथ आत्मा में संस्कारों का भी समावेश हो। संस्कारयुक्त शिक्षा का महत्व सर्वोपरि होता है। यदि शिक्षा और संस्कार दोनों साथ चलते हैं, तो विद्यार्थियों के उत्तम व्यक्तित्व का निर्माण संभव है।
पूज्य प्रवर ने आगे फरमाया - आज के दिन मुख्यमुनि महावीरकुमारजी की दीक्षा हुई थी। धर्मसंघ में श्रेष्ठ श्रुताराधक की उपाधि इन्हें प्राप्त हुई है और इन्होंने पीएचडी कर 'डॉक्टर' की उपाधि भी अर्जित की है। फाल्गुन कृष्ण पंचमी के इस दिन इन्हें दीक्षा लिए 23 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। इसी दिन साध्वीवर्याजी संबुद्धयशाजी की समणी दीक्षा भी संपन्न हुई थी। दोनों की दीक्षा आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के सान्निध्य में संपन्न हुई थी। मुख्यमुनि धर्मसंघ में ज्ञान, साधना और संस्कारों का प्रसार करते रहें। उनका स्वास्थ्य उत्तम बना रहे, जिससे वे अपने कार्यों को और अधिक प्रभावी बना सकें। साध्वीवर्याजी का भी ज्ञान-विकास सतत होता रहे, वे भी समाज और धर्मसंघ की सेवा में संलग्न रहें। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी साध्वी समाज में सर्वोच्च स्थान पर हैं और उनके नेतृत्व में साध्वी समाज एवं महिला समाज में श्रेष्ठ कार्य होते रहें।
परस्पर सहयोग से कार्य सुगमता से संपन्न होते हैं। 'परस्परोपग्रह जीवानाम्'—अर्थात, सभी प्राणियों का जीवन परस्पर सहयोग पर आधारित है। जब दो व्यक्ति या संस्थाएँ मिलकर कार्य करती हैं, तो उसमें अधिक ऊर्जा और गति आती है। आध्यात्मिक और धार्मिक सेवा निरंतर होती रहनी चाहिए। तेरापंथी महासभा और लायंस क्लब के संयुक्त तत्वावधान में यह विद्यालय केवल शिक्षा का केंद्र ही नहीं, बल्कि संयम, सच्चाई, सेवा और सौहार्द के संस्कारों का केंद्र भी बने। यह विद्यालय आध्यात्मिक उन्नयन का माध्यम बने, ज्ञान-विकास के लिए एक महत्वपूर्ण निमित्त बने—यही मंगलकामना है। कार्यक्रम के प्रारंभ में महासभा के सदस्यों ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। मर्यादा महोत्सव प्रवास व्यवस्था समिति भुज के अध्यक्ष कीर्ति भाई संघवी, दीपक पारख, लायंस चैरिटेबल ट्रस्ट के चेयरमैन संजय देसाई, राजेश मनोत एवं महासभा के प्रधान न्यासी महेंद्र नाहटा ने 'आचार्य महाश्रमण इंटरनेशनल स्कूल' के संदर्भ में अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं।