मुख्यमुनिर्महावीरो

गुरुवाणी/ केन्द्र

मुख्यमुनिर्महावीरो

मुख्यमुनि महावीर कुमारजी का फाल्गुन कृष्णा पंचमी, 2025 को चौबीसवां दीक्षा दिवस आया। पूज्यवर आचार्यश्री महाश्रमणजी भुज (कच्छ) में मर्यादा महोत्सव का प्रवास संपन्न कर, विहारकर आचार्य महाश्रमण इंटरनेशनल स्कूल, भुज के परिपार्श्व में विराजे। वहाँ पूज्यवर ने मुख्य मुनि प्रवर को आशीर्वाद प्रदान किया।
सायंकाल, मिरजापर गांव की कुमारशाला (विद्यालय) में, रात्रि के समय, पूज्यवर ने संतों को संस्कृत में श्लोक बनाने के लिए फरमाया—
आचार्यवर : 'मुख्यमुनिर्महावीरो', यह प्रथम चरण है, आगे की पूर्ति करो।
पूज्यप्रवर की दृष्टि की आराधना करते हुए, कई संतों ने संस्कृत में श्लोक बनाए।
पूज्यवर ने विशेष आशीर्वाद प्रदान कराते हुए तत्काल आशु कविता के रूप में फरमाया—
मुख्यमुनिर्महावीरो धर्मसंघे महामुनिः।
तेरापंथस्य सेवायां लीनस्तिष्ठेत् सदा मुदा।।
(मुख्यमुनि महावीर धर्मसंघ में महान मुनि हैं। ये प्रसन्नता के साथ तेरापंथ की सेवा में सदा लीन रहें।)
पूज्यवर ने सभी संतों के लिए भी फरमाया—
सर्वेऽपि साधवः संघे सुविनीताः सुशीलकाः।
प्रसन्नमनसः प्राज्ञाः तिष्ठेयुर्गणसेवकाः।।
(सुविनीत, सुशील, प्रसन्न मन वाले, प्राज्ञ सभी संत संघ में गणसेवक होकर रहें।)
ज्ञानध्यानसुलीनाः स्यु: तार्किकाः सूत्रपाठकाः।
विनम्राः धृतिमन्तश्च सेवा-धर्मपरायणाः।।
(ज्ञान-ध्यान में अच्छी तरह लीन, तार्किक, सूत्रपाठक, विनम्र, धृतिमान और सेवा-धर्म परायण हों।)
साधूनां वन्दनं पुण्यं, दर्शनं च पवित्रकम्।
साधुसेवा महापुण्या, धन्या धन्याः सुसाधवः।।
(सुसाधु धन्य-धन्य हैं, साधुओं को वंदन करना पुण्य है, उनके दर्शन पवित्र हैं, साधु-सेवा महान पुण्य है।)