मानव जीवन का सर्वोत्तम उद्देश्य है पूर्व कर्मों का क्षय : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

वाव। 16 अप्रैल , 2025

मानव जीवन का सर्वोत्तम उद्देश्य है पूर्व कर्मों का क्षय : आचार्यश्री महाश्रमण

महातपस्वी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फ़रमाया कि हमें यह चिंतन करना चाहिए कि हम अपना जीवन निःउद्देश्य जी रहे हैं या सोद्देश्य। इतने मूल्यवान जीवन का यदि कोई श्रेष्ठ लक्ष्य बनाया जाए तो वह होना चाहिए आध्यात्मिक उन्नति। शास्त्रों में बताया गया है कि मानव जीवन का सर्वोत्तम उद्देश्य पूर्व कर्मों का क्षय करना है। कर्मों के क्षय से मोक्ष की प्राप्ति संभव है। मनुष्य जीवन ही एकमात्र ऐसा जीवन है जिसमें अध्यात्म साधना की उत्कृष्टता संभव है। अन्य योनियों में ऐसी साधना दुर्लभ है। मनुष्य ही ज्ञान को प्राप्त कर चौदह गुणस्थानों की यात्रा कर सकता है, जो अन्य योनियों में संभव नहीं है। जब लक्ष्य उच्चतम होगा तो छोटे-छोटे विषयों में उलझने की आवश्यकता नहीं रहेगी। मोक्ष प्राप्ति के लिए जीवन शैली धार्मिक और आध्यात्मिक होनी चाहिए — जिसमें अहिंसा, संयम और तप प्रमुख हों। शरीर का संरक्षण भी आवश्यक है, क्योंकि शरीर साधना का उपकरण है। अतः उसे उचित आहार, जल और वायु की पूर्ति देकर साथ चलाना चाहिए।
आचार्यश्री ने समझाया — "भूख रूपी कुतिया को टुकड़े दो तो वह शांत रहती है। वैसे ही संयमित आहार लो। ऊनोदरी (थोड़ा कम भोजन करना) का विशेष महत्व है। चौविहार साधना, 14 नियमों का पालन, शुद्ध आहार — ये सब साधना में सफलता के साधन हैं। खानपान में भी संयम रखें, जैसे जमीकंद आदि के परहेज से संयम और भी मजबूत हो सकता है।" साध्वीवर्याश्री संबुद्धयशाजी ने अपने विचार रखते हुए कहा - जो व्यक्ति कठिन तप में भी अपने स्वभाव को स्थिर रखता है, वही सच्चा हीरा बन सकता है। जीवन में अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियाँ आती रहती हैं। समभाव से जीने वाला व्यक्ति ही सच्ची सफलता प्राप्त कर सकता है। हमारा मन मूढ़ अवस्था में बार-बार बदलता रहता है, इसलिए समता साधना का अभ्यास अनिवार्य है।
पूज्यवर के स्वागत में मुमुक्षु कल्प, श्रीकेशभाई मेहता, किशोर मंडल व कन्या मंडल ने अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं। विशाल परीख ने अपने परिवार के साथ आचार्यश्री से मंगलपाठ का श्रवण कर संस्था में प्रवेश किया। परीख परिवार की ओर से समकित परीख ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। वाव संघ के प्रमुख भीखाभाई, पूर्व सरपंच व राजपूत समाज की ओर से हरीसिंह भाई, श्री जैन श्वेताम्बर वाव-पथक तेरापंथ सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष राजेश मेहता, चंपकभाई मेहता ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। शिवांगी सुरेश मेहता ने गीत का संगान किया। ऊमजी मेहता परिवार ने संघ समर्पण गाथा प्रस्तुत की। पूज्यवर ने ऊमजी मेहता परिवार को आशीर्वचन देते हुए स्मरण किया कि गुरुदेव तुलसी ने गीत में इस परिवार का विशेष उल्लेख किया था। मुंबई से समागत राजेश शर्मा ने भी अपने भावों को अभिव्यक्त किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।