
रचनाएं
सतिवर संचित की जय-जय
साध्वीश्री संचितयशाजी ने जीवन सफल बनाया।
संथारा कर निज आत्मा को कुन्दन सम चमकाया।
सतिवर संचित की जय-जय-2
श्री सरदारशहर भूमि है सचमुच ही बड़भागी,
चण्डालिया कुल की यह लाल लाडली है सौभागी।
लक्ष्मी मानो घर आईऽऽ, परिजन मन हर्ष सवाया।।
चन्देरी की पुण्य धरा पर संयम जीवन पाया,
गुरु तुलसी की मिली सन्निधि मन उपवन सरसाया।
महाश्रमण की कुशल शासनाऽऽ, जीवन धन्य बनाया।।
साध्वी सोमलता जी की सेवा साधी सुखदाई,
सहज, सरल मुस्काता चेहरा दीप रही पुण्याई।
प्रबल दीपती पुण्याई कोऽऽ, सादर शीष झुकाया।।
तन में देखी प्रबल वेदना पर मन में थी समता,
अपनत्व भाव था बड़ा गजब का सबके मन को हरता।
साध्वी शकुंतला रक्षितऽऽ, जाग्रत ने साझ दिराया।।
सोई शक्ति जगाकर शूर वीरता है दिखलाई,
मन मजबूत बनाकर अनशन से है प्रीत लगाई।
मुम्बई महानगरी में तुमनेऽऽ, नव इतिहास रचाया।।
महातपस्वी महाश्रमण से शासन माली पाए,
मोक्ष मार्ग पर चलने की शक्ति गुरु हमें दिराए।
अमित शक्ति का परिचय देकरऽऽ, आत्म चमन सरसाया।।
लय : माइन-माइन