जन्मभूमि में चरम मनोरथ

रचनाएं

साध्वी योगक्षेमप्रभा

जन्मभूमि में चरम मनोरथ

शासनश्री सतिवर मदनश्री जस झंडों फहरायो है,
जन्मभूमि में चरम मनोरथ सह प्रस्थान करायो है।।
बीदाणै में जनमी सतिवर, बीदाणै ही स्वर्गप्रयाण।
महाश्रमण गुरुवर बरतारै पूर्ण जीवन-संधान।
सही वेदना शांत भाव स्यूं, पूरो लाभ कमायो है।।
कर्मकुशल- व्यवहारकुशल थे, आत्मार्थी हा शासनश्री,
सदा निरत स्वाध्याय जाप में, शांत-सौम्य हा शासनश्री।
तीन-तीन गुरुवां री सेवा, रो सौभाग्य सवायो है।।
कुछ दिन पेली दियो बुलावो बेगा आओ बीदाणै,
बाट निहारूं म्है सगलां री, बुलाऊं म्हें बीदाणै।
पिण क्यूं चाल्या आप अचानक, कहूं बुलावो आयो है।।
ही वत्सलता म्हां पर थांरी, प्रमोद भावना ही भारी,
गुण ग्राहकता देख आपरी जावां म्हैं बलि-बलिहारी।
स्हाज दिज्यो म्हानै भी सतिवर! आशीर्वाद सुहायो है।।
लय - कलियुग बैठा मार कुंडली