आनन्द की अमृतधारा है

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साध्वी नीतिप्रभा

आनन्द की अमृतधारा है

शान्ति सदन, सुवन सतपथ, समरस जीवन मनहारा है।
हर सांस-सांस प्रमुदित, करती अभिनन्दन तुम्हारा है।।
अरुण उगा नील गगन में विरुदावलियां गावै है,
सिन्दूरी नजमें ले रेशम, धरा आज सजावै है।
चयन दिवस पर बरसे-बरसे, आनन्द की अमृतधारा है।।
श्रमणी गण की विमल विभूति, अनुभव की अनुभूति हो,
प्रथम नियोजिका समणीगण की, इतिहास पृष्ठ पर द्यूति हो।
करुणा की अद्भूत मीनार, चरणों में वन्दन हमारा है।।
हंसती खिलती है गण कलियां सौरभ से भरी दिशाएं हैं,
भावों की रोली-मोली-चन्दन ले तुमको आज बधाएं हैं।
पुलकित प्रफुल्लित आज, नन्दन वन सारा है।।
निरखो-निरखो महाप्रज्ञ प्रभुवर, जो अमिट आलेख लिखा,
संवारा तुम्हारे पटृधर ने, अष्ट आसन समपदा दिखा।
आभारी हैं गुरूवर तेरे, भैक्षव गण सुप्यार है।।
लय - चांद सी महबूबा