
रचनाएं
सुनकर मंगल नाम तुम्हारा
महर नजर कर महाश्रमण ने, ज्यों ही तेरा नाम पुकारा
पुलक उठा यह साध्वी-परिकर, सुनकर मंगल नाम तुम्हारा।।
प्रश्न हजारों समाधान की, आस लिए तब खड़े हुए थे,
मौन हुए सुनते ही सारे, प्रश्न वहां जो अड़े हुए थे,
पावन वैशाखी चौदस दिन, चमका नभ में नया सितारा।।
सहन सौम्यता सह दृढ़ता का, संगम हमने देखा तुम में,
सहनशीलता और धीरता, वर गांभीर्य निहारा तुम में,
सद्गुण की फुलवारी जीवन, महक रहा गुण सुमनों द्वारा।।
गुरु इंगित आराधना तत्पर, मिला समर्पण तुम्हें निराला,
गुरुत्रय का आशीर्वर अनुपम, पीते हरदम अमृत प्याला,
तप, जप, ध्यान-साधना उत्तम, संपादन लेखन मनहारा।।
योगक्षेम वर्ष है सम्मुख, जीए वे आदर्श पुराने,
श्रद्धानत हम करें प्रतीक्षा, सपनों की नव फसल उगाने,
उजले कल की उजली आभा, फैलाए चिंहुदिशि उजियारा।।