भिक्षु की गद्दी पर बैठने वाला बन जाता है भिक्षु सा यशस्वी

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गंगाशहर।

भिक्षु की गद्दी पर बैठने वाला बन जाता है भिक्षु सा यशस्वी

गंगाशहर। उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि कमल कुमार जी, मुनि श्रेयांस कुमार जी, 'शासनश्री' साध्वी शशिरेखाजी, सेवाकेन्द्र व्यवस्थापिका साध्वी विशदप्रज्ञाजी, साध्वी लब्धियशाजी के सान्निध्य में शांति निकेतन सेवा केन्द्र में आचार्य श्री महाश्रमण जी का 16वां पदाभिषेक दिवस बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ मुनि प्रबोध कुमार जी ने भक्तामर, जप व प्रेक्षाध्यान के द्वारा किया। सभा को सम्बोधित करते हुए मुनि कमलकुमार जी ने कहा आचार्य महाश्रमण नम्रता की प्रतिमूर्ति हैं। सरलता, सहजता, विनम्रता, सजगता, अप्रमत्तता उनके जीवन का अभिन्न अंग हैं। उनकी संघनिष्ठा, आचार निष्ठा, मर्यादा निष्ठा बेजोड़ है। इन्हीं सब गुणों से प्रभावित हो आचार्य महाप्रज्ञ ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। मुनि श्रेयांस कुमार जी ने अपने भावों की अभिव्यक्ति मुक्तक व गीतिका के माध्यम से दी।
'शासनश्री' साध्वी शशिरेखाजी ने कहा - दो प्रकार के चमत्कार होते हैं- एक सिंहासन का और एक चद्दर का। भिक्षु की गद्दी पर बैठने वाला भिक्षु जैसा यशस्वी बन जाता है। साध्वी विशदप्रज्ञाजी ने कहा - आचार्य महाश्रमण जी ने जो कीर्तिमान स्थापित किए हैं, युगों-युगों तक दुनिया उसे याद करती रहेगी। आपके तीनों नाम मोहन, मुदित व महाश्रमण सार्थकता भरे नाम हैं। साध्वी लब्धियशा जी ने कहा कि आचार्य श्री का जन्म मई महीने में हुआ और आपका नाम भी 'म' से है, दोनों की राशि सिंह है। सिंह पराक्रम का प्रतीक होता है। आपकी जीवन यात्रा श्रम की अकथ कहानी है, पुरुषार्थ की परम गाथा है। 'शासनश्री' साध्वी प्रभाश्रीजी, साध्वी दीपमालाजी, साध्वी ध्रुवरेखा जी, साध्वी स्वस्थप्रभा जी, साध्वी करुणाप्रभाजी और साध्वी विधिप्रभाजी ने आचार्यप्रवर ने अपनी भावनाएं व्यक्त की। साध्वीवृंद ने समवेत स्वर में सुमधुर गीत की प्रस्तुति दी। इस अवसर पर मुनिश्री की प्रेरणा से सामायिक मौन की पंचरंगियां हुई। मुनि नमि कुमार जी ने 15 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। मुनि कमलकुमार जी ने कहा कि मात्र चार महीने में 39-23-22 की तपस्या का लक्ष्य बनाकर नमि मुनि ने आत्मकल्याण के साथ धर्मसंघ की प्रभावना बढ़ाने वाला काम किया है।