सम्यक् ज्ञान का सार है सम्यक् आचार : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मलासा। 25 मई, 2025

सम्यक् ज्ञान का सार है सम्यक् आचार : आचार्यश्री महाश्रमण

जिनशासन के सजग प्रहरी आचार्यश्री महाश्रमणजी आज प्रातः लगभग 12 किमी का विहार कर मलासा के मलासा यूथ प्राथमिकशाला में पधारे। उपस्थित परिषद को जिनवाणी का रसास्वादन कराते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि हमारे जीवन में ज्ञान और आचार — इन दोनों का अत्यधिक महत्व है। आगम में कहा गया है: “पढमं णाणं तओ दया” — पहले ज्ञान, फिर दया। विद्या और आचार को मोक्ष का मार्ग कहा गया है। अनेक विद्या संस्थानों में अनेक विषय पढ़ाए जाते हैं, अनेक भाषाएँ सिखाई जाती हैं। परंतु एक है — सम्यक् ज्ञान। जब सम्यक् ज्ञान के साथ सम्यक् आचार भी जुड़ जाए, तब जीवन सच्चे अर्थों में सार्थक बनता है। सम्यक् ज्ञान से अनेक तत्वों की समझ हो सकती है। ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से ज्ञान का विकास होता है। ज्ञान हो जाने के बाद आदमी के संस्कार देखे जाते हैं। आदमी के भीतर सहिष्णुता है या नहीं। आदमी के भीतर अहिंसा, सत्य, अचौर्य, संयम की चेतना है या नहीं।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि जीवन का एक भाग ज्ञान है तो दूसरा भाग आचार है। अनेक विषयों का ज्ञान प्राप्त करना भी एक विशेषता है, लेकिन आचरण उसका दूसरा और अनिवार्य पक्ष है। इच्छाओं और आवश्यकताओं में संतुलन होना चाहिए। सादगी के साथ भी जीवन जीया जा सकता है। सादा जीवन, उच्च विचार — यह मानव जीवन का श्रृंगार है। वस्त्रों, आभूषणों और बाह्य सुंदरता से कहीं अधिक ज्ञान, सद्गुण और शारीरिक स्वास्थ्य का महत्व होता है। सुंदरता की तुलना में सुकृत्यशीलता अधिक महत्त्वपूर्ण होती है। जीवन में सद्ज्ञान और सद्गुण का विकास होता है तो मानना चाहिए कि उसके जीवन का सर्वागींण विकास हो सकता है।
सद्ज्ञान सम्पन्नता और सद्गुण सम्पन्नता जीवन के लिए बहुत बड़ी सम्पत्ति होती है। तेरापंथी परिवार का कोई बच्चा है तो ध्यान दिया जाए कि वह ज्ञानशाला जाता है या नहीं? बच्चों को बचपन से ही ज्ञान के साथ अच्छे धार्मिक संस्कार दिए जाने चाहिए। स्कूल जाना आवश्यक है, पर वहाँ भी उन्हें श्रेष्ठ संस्कार मिलें — यह ज़रूरी है। जीवन-विज्ञान से बच्चों का सर्वांगीण विकास संभव है। बाल पीढ़ी में यदि ज्ञान के साथ उत्तम संस्कार आ जाएँ तो एक नई उज्ज्वल पीढ़ी का निर्माण हो सकता है। संस्कारयुक्त शिक्षा हो। बच्चों में निर्भीकता के साथ-साथ निरहंकारिता भी हो। जब ज्ञान और आचरण दोनों पुष्ट होते हैं, तो वह जीवन के लिए अत्यंत शुभ होता है। पूज्यवर के स्वागत में अध्यापक धर्मेश पटेल ने अपनी भावना व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।