
गुरुवाणी/ केन्द्र
प्राणी मात्र के प्रति रहे दया का भाव : आचार्यश्री महाश्रमण
संत शिरोमणि आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग नौ किमी का विहार कर बडोली के श्री आर.एच.जानी हिंगवाला हाइस्कूल में पधारे। मंगल देशना प्रदान कराते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि व्यक्ति के भीतर अनेक प्रकार की वृत्तियाँ होती हैं, भाव होते हैं। मानो भावों का एक भंडार व्यक्ति के भीतर होता है। व्यक्ति कभी क्षमा में, कभी गुस्से में, कभी मार्दव में, कभी अहंकार में, कभी संतोष में, तो कभी लालसा आदि अनेक भावों में जा सकता है। व्यक्ति के मन में दया का भाव भी होता है। दया यानी हितकर राय देना, अहिंसा रूपी रक्षा करना। मन में यह भावना रहे कि मेरी ओर से किसी को कोई तकलीफ न हो। व्यक्ति स्वयं और दूसरों की आत्मा को पापाचरण से बचाता रहे।
दुनिया में युद्ध भी चलता है, पर पहला युद्ध तो भावों में होता है, बाद में समरांगण में होता है। व्यक्ति हिंसा से बचने का प्रयास करे। निरपराध प्राणी को मारने का प्रयास न हो — यही अनुकंपा की भावना है। भगवान महावीर और मुनि मेघ के प्रसंग के माध्यम से पूज्य प्रवर ने समझाया कि भगवान ने अपने शिष्य को गिरते हुए बचा लिया। किसी गिरते हुए को बचा लेना उपकार का कार्य होता है। व्यक्ति थोड़ी सी कठिनाई से घबराए नहीं। भोले का भगवान होता है। पूर्वकृत पुण्य भी कभी विषम स्थितियों में रक्षा कर देते हैं। भगवान महावीर जैसे महान वैद्य ने ऐसी दवा दी कि मेघ मुनि को जातिस्मरण ज्ञान हो गया और वे संयम में स्थिर हो गए। हाथी में भी कितनी अनुकंपा थी कि मेरे कारण खरगोश न मर जाए। ऐसी अनुकंपा व्यक्ति में भी हो। प्राणी मात्र के प्रति दया और अहिंसा की भावना रहे।
साधु के लिए तो ईर्या समिति का नियम होता है। गृहस्थ भी चलने-फिरने में ध्यान दें। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियमों से जीवन में अहिंसा की चेतना जागृत हो सकती है। प्रेक्षाध्यान से राग-द्वेष से मुक्त होने का प्रयास किया जा सकता है। हमारे जीवन में धर्म रहे। जैन हो या अजैन, सब गुड मैन बनें। हर धर्म में अहिंसा, सच्चाई, ईमानदारी और संयम की बात बताई जाती है। जीवन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति रहे। ईमानदारी एक संपत्ति है — इससे आत्मा को पापों से बचाया जा सकता है। आज बडोली में पुनः आगमन हुआ है। बडोली की जनता में धर्म की भावना प्रबल बनी रहे।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत की आत्मा गाँवों में रहती है। पूज्य आचार्यवर अपनी यात्रा में छोटे-छोटे गाँवों का स्पर्श कर लोगों की अध्यात्म चेतना जागृत करा रहे हैं। जिस व्यक्ति का संकल्प दृढ़ होता है, वह कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है। भारतीय संस्कृति में गुरु का बड़ा महत्व होता है। जो व्यक्ति गुरु की चरण-शरण में रहता है, उसकी समस्याएँ दूर हो जाती हैं। गुरु हमारे त्राण-प्राण होते हैं। गुरु के द्वारा नई दिशा और दृष्टि मिल सकती है।
पूज्यवर के स्वागत में मितेश श्रीश्रीमाल, स्कूल प्रिंसिपल दीपकभाई पटेल ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेरापंथ महिला मंडल ने गीत की प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला ज्ञानार्थियों ने पच्चीस बोल पर प्रस्तुति दी। प्रेक्षा, अल्पा और संगीता दुगड़ ने चार कषायों पर सुंदर प्रस्तुति दी। स्थानीय बहू मण्डल, युवक मण्डल ने पृथक-पृथक गीतों का संगान किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।